प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (२७)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (२८) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ... :-
गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-
रेशमा भी प्रत्युत्तर में किसी उद्घोषिका के अंदाज़ में चाँद की ओर अपना रुख़ करके ...
रेशमा - " हाँ - हाँ .. ठीक है .. अब कल मिलते हैं .. एक छोटे से 'ब्रेक' के बाद .. " और फिर मन्टू की ओर मुख़ातिब होकर - " मन्टू भईया चलिए .. अब तो हमलोग भी चलें .. काफ़ी देर हो गयी है आज तो .. आपकी आज की बोहनी करवानी है .. "
गतांक के आगे :-
गतांक के आगे अपनी बतकही की अगली श्रृंखला परोसने के पहले यह स्पष्ट कर दें कि .. हालाँकि पहले भी हमारी स्वीकारोक्ति रही है कि हम एक अकुशल पाठक हैं या हम यूँ कहें कि हम पाठक हैं ही नहीं और .. ना ही अच्छा रचनाकार .. बस यूँ ही .. स्थिति-परिस्थितिवश मन में जो भी भावनाएँ .. अच्छी या बुरी भी .. पनपती हैं उसे यथास्थिति परोस भर देते हैं .. बस यूँ ही ...
परन्तु हमारे उपरोक्त अवगुणों से इतर .. यदि आप सुधीजन पाठकों / पाठिकाओं द्वारा हमारी इस बतकही वाले साप्ताहिक धारावाहिक की श्रृंखलाओं को निरन्तर तन्मयता के साथ पढ़ी गयी होगी, तो आप सभी को ज्ञात होगा ही कि .. हमारी बतकही के पात्रों में से एक- रेशमा है .. जोकि एक किन्नर है .. सात किन्नरों की गुरु, चाँद- भाड़े पर अपनी 'कार' चलाने वाला 'टैक्सी ड्राइवर', भूरा - घर-घर से कचरे एकत्रित करके शहर से दूर यथोचित तयशुदा स्थान पर निष्पादन के लिए ले जाने वाली नगर निगम की बड़ी वाली गाड़ी के पिछले हिस्से में खड़ा-खड़ा हर घर के दरवाजे पर गाड़ी रुकने पर उस घर से कचरे की पोटली या बाल्टी लेकर गीले व सूखे कचरों को अलग-अलग करने का काम साथ-साथ करता जाता है और .. साथ ही घरों से कचरे के रूप में मिले खाली और अनुपयोगी टिन के डब्बों, बोतलों, कार्टूनों को अलग एकत्रित करता जाता है .. जिसे बाद में चंदर कबाड़ी को बेच कर .. कुछ उचित ऊपरी कमाई कर लेता है। "ऊपरी कमाई" के पहले "उचित" विशेषण इसलिए चिपकाना पड़ा है, क्योंकि .. बहुधा सरकारी नौकरियों में "ऊपरी कमाई" से तात्पर्य "अनुचित कमाई" को ही समझा जाता है .. शायद ...
वैसे तो लब्बोलुआब यही है कि भूरा एक सफाई कर्मचारी है।
इन सभी के अलावा .. मयंक और शशांक अपनी स्नातक तक की पढ़ाई अपने क्षेत्र से ही पूरी करके .. सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने हेतु यहाँ आने के बाद मोनिका भाभी के पी जी में रह कर 'कोचिंग' कर रहे हैं। हमने एक अन्य पात्र- ललन चच्चा की चर्चा तो अभी हाल ही में की थी। बाकी तो .. रसिक चाय दुकान (?) का मालिक- रसिकवा, उसी के दुकान में "बाल मजदूरी (निषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986" को अँगूठा दिखलाता हुआ .. काम करने वाला तेरह वर्षीय- कलुआ, मुहल्ले भर की दुलारी गली की काली कुतिया- बसन्तिया, शनिचरी चाची, सुधीर, रामचरितर, रामभुलावन, बुद्धनवा, रमरतिया, परबतिया,चंदर कबाड़ी, मेहता जी, सक्सेना जी, 'नर्सिंग कोर्स' करने वाली निशा, वक़ील साहब, उनकी धर्मपत्नी, पेशकार, माखन पासवान, मंगड़ा, सुगिया, असग़र अंसारी, उसकी सौतेली अम्मी और उसका बड़ा भाई, सिपाही जी, सतरुधन (शत्रुघ्न) चच्चा व चच्ची, 'प्रोफेसर' साहब, 'स्टोरकीपर' साहब, लावारिस रेशमा का पालन-पोषण करने वाली मंजू माँ .. जो अब इस दुनिया में नहीं रहीं .. मन्टू- टोटो गाड़ी चला कर जीवकोपार्जन करने वाला ड्राइवर, उसकी रज्ज़ो .. जो सबकी रजनी है, एक 'प्राइमरी स्कूल' के संस्थापक- मेहता जी व उनकी धर्मपत्नी और पुष्पा .. परन्तु इन सभी पात्रों के बारे में विस्तारित रूप से फ़िलहाल तो हम कुछ भी बतलाने नहीं जा रहे हैं .. क्योंकि उपरोक्त सभी पात्रों के बारे में पहले के ही धारावाहिकों में विस्तारपूर्वक बतला चुके हैं हम तो .. और इन सब के अलावा .. रंजन .. जो कोरोनाकाल के दूसरे दौर में काल-कवलित हो चुका है और उसकी प्रेमविवाह वाली विधवा- अंजलि व उन दोनों का तीन वर्षीय बेटा- अमन .. जिसे सभी अम्मू कह कर बुलाते हैं .. इनके तीनों के बारे में भी तो फ़िलवक्त विशेष करके दुबारा चर्चा नहीं करनी हमको .. वैसे यदि इन सब के बारे में जानने की आपकी तनिक भी रूचि हो, तो .. इसके लिए हमारी बतकही वाले अब तक के सारे धारावाहिकों को क्रमवार पढ़ने जैसा एक उलझन भरा काम आपको शायद करना पड़ेगा .. बस यूँ ही ...
तो अब .. गतांक के आगे के परिदृश्य को निहारने के पहले .. आज प्रसंगवश ये भी बतलाना हमें आवश्यक लग रहा है, कि .. अब तक "पुंश्चली .. (१)" से लेकर "पुंश्चली .. (२७)" तक में .. आपने गौर किया होगा, कि .. अब तक के सारे के सारे धारावाहिकों के घटित घटनाक्रम .. किसी एक ही दिन की सुबह-सुबह के हैं और एक ही स्थान के भी हैं .. वो स्थान है भी तो- रसिक की चाय दुकान के ही इर्द-गिर्द के .. शायद ...
अब मन्टू अपनी हवा हवाई गाड़ी, जिसे टोटो गाड़ी या ई रिक्शा भी कहा जाता है, की ओर जा रहा है और साथ में रेशमा एवं उसकी सात किन्नरों की टोली भी। दरअसल रेशमा .. एक किन्नर होने के नाते .. अपनी टोली के साथ अभी सुबह-सुबह लगभग प्रतिदिन की भाँति मन्टू की टोटो गाड़ी में पीछे के 'पैसेंजर सीटों' के साथ-साथ 'ड्राइवर सीट' पर भी आगे-पीछे ठूँस-ठूँस के बैठ कर दो-तीन 'नर्सिंग होम' जा रही है। वो दोनों चलते-चलते बातों को आगे बढ़ाते हुए ..
मन्टू - " तुम्हारे मुँह से ये दकियानूसी सोच वाली बातें अच्छी नहीं लगती .. "
रेशमा - " मन्टू भाई .. अक्खा हिन्दुस्तान बोहनी को मानता है, तो .. अपुन लोगों को भी इद्रिच मानना माँगता है, वर्ना .. अपुन लोग बिरादरी से निकाल दिए जायेंगे .. " - बम्बईया (मुम्बईया) अंदाज़ में बोलते हुए ठहाके लगा कर रेशमा हँस रही है और प्रतिक्रियास्वरुप मन्टू भी मुस्कुरा रहा है।
मन्टू - " रेशमा .. पर आँखें मूँद कर अंधपरम्पराओं को सहर्ष या फिर किसी जाने-अन्जाने भयवश स्वीकार कर लेना भी तो हमारे बुद्धिजीवी होने पर एक प्रश्नचिन्ह चिपकाता महसूस होता है .. वो भी चेहरे की सुन्दरता बढ़ाने वाले तिल की तरह नहीं, बल्कि चेचक के दाग़ जैसे .. "
रेशमा - " आप मानो या ना मानो .. समाज के लोग तो मानते हैं .. बोहनी और जतरा जैसी मान्यताओं को .. है कि नहीं ? .."
मन्टू - " माना कि लोग मानते हैं और अगर हमने भी अपनी आँखें मूँदें वही सब मान लिया तो .. समाज में परिवर्तन क्योंकर आएगा भला ? .. जबकि सभी ये भी तो मानते हैं कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है .. है कि नहीं ? बोलो ! .. "
बातें करते-करते सभी टोटो गाड़ी में लद गए हैं।
रेशमा - " मन्टू भाई आज पहले चलते हैं आशीर्वाद नर्सिंग होम .. ठीक है ना ? " - अपनी टोली के समर्थन के लिए रेशमा उन सभी की ओर भी देख रही है। प्रतिक्रियास्वरूप कोई तो अपनी मुंडी उर्ध्वाधरतः ऊपर-नीचे हिला कर और कोई "हूँ" या "हाँ" बोलकर अपना समर्थन दे रहे हैं।
मन्टू की टोटो गाड़ी अब निकल पड़ी है .. आशीर्वाद नर्सिंग होम के लिए .. दरअसल किन्नर होने के नाते लगभग रोज सुबह रेशमा अपनी टोली के साथ मिलकर मन्टू के टोटो गाड़ी से शहर के अलग-अलग हिस्से के विभिन्न 'नर्सिंग होम' में जा-जाकर वहाँ उपलब्ध 'रजिस्टर' से नवजात शिशुओं के निवास स्थान का पता मालूम करती है। उसके बाद ये लोग चार-चार की दो टोलियों में बँटकर अलग-अलग मुहल्लों में नवजात शिशुओं के घर-घर जाकर मान्यता और परम्परा के अनुसार शिशु को गोद में लेकर उसे अपने आशीर्वचनों से सजाते हैं। साथ ही ढोलक की थापों पर सभी नाचते-गाते हैं और नवजात शिशु के घर वालों से नेग लेकर जाते हैं। यही नेग उनके जीवकोपार्जन का साधन होता है, क्योंकि अन्य कमाने के अवसरों से उन्हें हमारे समाज ने वंचित रखा हुआ है .. शायद ...
अपनी टोटो गाड़ी को चला कर आशीर्वाद नर्सिंग होम की ओर बढ़ते हुए ...
मन्टू - " रेशमा ! .. तुमने बड़े-बड़े 'ब्रांडों' के 'शोरूम' में या उससे अटे पड़े 'मॉल' में भी बोहनी जैसे चोचले देखे या सुने हैं कभी ? .. "
रेशमा - " ना .. नहीं तो ! .. "
मन्टू - " वुडलैंड, तनिष्क, रेमण्ड इत्यादि के 'शोरूम' जैसे जगहों पर तो बोहनी वाली बात नज़र नहीं आती .. तो क्या इनके धंधे कमजोर होते हैं ? नहीं ना ? .. आम दुकानों से ज्यादा ही ये लोग दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करते जाते हैं .. ये सब पोंगापंथी हम 'मिडिल क्लास' लोगों में ही ज्यादा है रेशमा "
रेशमा - " हाँ .. सो तो है .. पर .. समाज-बिरादरी भी तो कुछ .. "
मन्टू - " ये समाज-बिरादरी वाले चोचले भी हम जैसे 'मिडिल क्लास' लोगों में ही ज्यादा है, वर्ना .. 'सेलिब्रिटी' लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उनकी दूसरी-तीसरी शादी कर लेने पर भी या फिर अन्तर्जातीय विवाह कर लेने पर भी लोग उन्हें बिरादरी से बाहर निकाल देंगे या कि .. कुछ और भी .. उल्टे .. इसी समाज के लोग उन्हें हाथों-हाथ लेते भी हैं और .. इतना ही नहीं .. उनके उन कृत्यों का चटखारे ले-लेकर बखान भी करते हुए मिल जाते हैं .. "
रेशमा - " हाँ .. ये भी सही है .. ऐसे तो सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं अपने इस देश-समाज में ही .. कुत्ते-कमीनों के ख़ून पीने वाले 'हीरो' और धन्नो नामक घोड़ी से अपनी इज़्ज़त बचाने की गुहार लगाने वाली 'हीरोइन' की जोड़ी भी तो कुछ ऐसी ही है .. है ना ? "
मन्टू 'नर्सिंग होम' के सामने 'ब्रेक' लगाते हुए ..
मन्टू - " लो भई .. आ गयी आप सब की आज की पहली मंज़िल .. "
रेशमा - " चलो .. आ जाओ जल्दी-जल्दी .. "
तभी अचानक 'नर्सिंग होम' से बाहर आती हुई अंजलि और अम्मू पर रेशमा और मन्टू की भी नज़र पड़ गयी है ...
【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को .. "पुंश्चली .. (२९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】