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Sunday, December 22, 2019

भला कौन बतलाए ...

कर पाना अन्तर हो जाता है मुश्किल
न्याय और अन्याय में रत्ती भर भी 
हो जब बात किसी की स्वार्थसिद्धि की
या फिर रचनी हो कड़ी कोई नई सृष्टि की
ये न्याय है या अन्याय .. भला कौन बतलाए ...

जिसे कहते हैं माँ हम शान से बड़े ही
कब सुन पाते हैं भला हम चीत्कार धरती की
अनाज की ख़ातिर चीरते हैं इसकी छाती
चलाते हैं हल बेझिझक रौंद कर इसकी मिट्टी
ये न्याय है या अन्याय .. भला कौन बतलाए ...

और कब महसूस कर पाते हैं हम भला
पीड़ा मूक कसमसाती शीलभंग की
अनदेखी की गई रिसते लहू में मौन
पीड़ा पड़ी जब कभी भी है छटपटाती
ये न्याय है या अन्याय .. भला कौन बतलाए ...

हाँ .. कर ही तो देते हैं अनदेखी
हर बार चित्कार हर प्रसव-पीड़ा की
वो जानलेवा दर्द .. वो छटपटाहट .. और
चीखें अक़्सर नव-रुदन में हैं दब जाती
ये न्याय है या अन्याय .. भला कौन बतलाए ...

"अरुणा शानबाग " .. बलात्कृत एक नाम
रही जो 42 सालों तक 'कोमा' में पड़ी
तब भी क़ानून से इच्छा-मृत्यु नहीं मिली
अपनों (?) से उपेक्षित वर्षों लाश बनी रही
ये न्याय है या अन्याय .. भला कौन बतलाए ...

"सुकरात" हो या फिर "सफ़दर हाशमी"
"निर्भया".. "गौरी लंकेश" हो या "कलबुर्गी"
फ़ेहरिस्त तो है इनकी और भी लम्बी
क्षतिपूर्ति है क्या दोषी को सजा मिलना भर ही
ये न्याय है या अन्याय .. भला कौन बतलाए ...

वैसे भी भला न्याय की उम्मीद कैसी
जहाँ हुई जाती है हर बार ये तो दुबली
भुक्तभोगी से भी ज्यादा चिन्ता में
अपराधीयों के मानवाधिकार की
ये न्याय है या अन्याय .. भला कौन बतलाए ...

(निश्चेतवस्था-कोमा-Coma)



Saturday, December 21, 2019

मूर्ति न्याय की ...

हम सुसभ्य .. सुसंस्कृत .. बुद्धिजीवी ..
बारहा दुहाई देने वाले सभी
अपनी सभ्यता और संस्कृति की
अक़्सर होड़ में लगे हम उसे बचाने की
बात-बात में अपनी मौलिकता पर
अपनी गर्दन अकड़ाने वाले
क्या सोचा भी है हमने फ़ुर्सत में कभी .. कि ...

हमारे न्यायालयों में आज भी
मिस्र की "मात" से "इसिस" बनी
तो कभी न्याय की मूर्त्ति -"थेमिस्" ग्रीक की
कभी यूनानी "ज्यूस" की बेटी .. "डिकी" बनी
तो कभी तय कर सफ़र प्राचीन रोम की
परिवर्तित रूप में "जस्टिसिया" तक की
जाने-अन्जाने .. ना जाने .. कब ..
आकर औपनिवेशिक भारत में
आँखों पर बाँधे काली पट्टी
और कभी पकड़े तो .. कभी त्यागे तलवार ...
हाथ में तराजू लिए आ खड़ी हो गई
हमारे तथाकथित मंदिरों में न्याय की
बन कर न्याय की देवी .. तथाकथित मूर्ति न्याय की ...

और .. न्यायलयों में न्यायाधीश आज भी
वहाँ के वक़ील और चपरासी तक भी
अंग्रेजों के दिए उधार पोशाकों में अपनी
अपनी बजाए जा रहे हैं ड्यूटी
और मुजरिमों को बुलाने के ज़ुमले -
"मुज़रिम हाज़िर हो....." भी
मुग़लों से है हमने वर्षों पहले उधार ली हुई ...