जब कभी भी तुम ..
रचना कोई अपनी रूमानी
और तनिक रूहानी भी,
अतुकान्त ही सही, पर ...
बटोर के चंद शब्दों को
किसी शब्दकोश से,
जिन्हें .. टाँक आती हो,
मिली फुरसत में हौले से,
नीले आसमान पे, किसी वेब पन्ने के;
तूतिया मिली अपनी अनुभूति की,
भावनाओं की गाढ़ी लेई को
लपेसी हुईं मन की उंगलियों से
और फिर .. औंधी पड़ी बिस्तर पर या
सोफ़े पर, मन ही मन मुस्कुराती हो,
या .. कभी 'बालकॉनी' में खड़ी,
गुनगुनाती हो, तो ..
तो उग ही आते हैं हर बार,
महसूस कर-कर के स्वयं को उनमें,
सितारे .. ढेर सारे .. टिमटिमाते,
आँखें मटकाते, मानो .. आश्विन महीने के,
धुले और खुले आकाश में,
एक रात की तरह, अमावस वाली .. बस यूँ ही ...
हरेक पंक्ति होती है जिसकी, मानो ..
हो शाम से तर क्यारी कोई,
चाँदनी में जेठ की पूनम की,
मंद-मंद सुगंध बिखेरती,
रात भर खिली रजनीगंधा की।
या फिर सुबह-शाम वैशाख में
हों सुगंध बिखेरते क्षुप कईं मेंथा° के,
सभी खेतों में बाराबंकी या बदायूँ के।
नज़र आते हैं, झूमते .. हरेक शब्द भी,
जैसे .. पसाने के बाद माँड़,
मानो .. करने के लिए फरहर°°भात,
झँझोड़ने पर भात भरे तसले को,
अक़्सर .. झूमते हैं झुमके
या कभी झूमतीं हैं,
जुड़वे कानों में तुम्हारे,
लटकीं तुम्हारी जुड़वीं बालियाँ।
नज़र आते हैं हर अनुच्छेद,
थिरकते हुए अनवरत,
मानो थिरकते हैं अक़्सर ..
'शैम्पू' किए, तुम्हारे खुले बाल,
जब कभी भी तुम, किसी सुबह या शाम,
खुली छत पर अपनी, कूदती हो रस्सी .. बस यूँ ही ...
【 मेंथा° = हमारे देश- भारत के उत्तर प्रदेश राज्य वाले बाराबंकी और
बदायूँ ज़िले में पुदीना की ही एक संकर प्रजाति के "मेंथा"
नामक क्षुप की खेती होती है, जिससे देश के कुल
उत्पादन का आधे से अधिक "मेंथा का तेल" उत्पादित
किया जाता है।
इस तेल का लगभग तीन-चौथाई भाग निर्यात किया जाता
है। इसी के रवाकरण (Crystallization) से पिपरमिंट
(Peppermint) बनाया जाता है। इसके खेत दूर से ही
एक सुकून देने वाले महक से महकते हैं। वैसे .. पिपरमिंट
मिले कुछ खाद्य पदार्थों के स्वाद तो आप सभी ने ही ..
चखे ही होंगे .. शायद ...
फरहर°° = फरहर = फरहरा = चावल से पका ऐसा भात जो एक-
दूसरे से लिपटा या सटा हुआ न हो , ( फार = अलग -
अलग )। 】