आज की रचना/विचार " कब लोगे अवतार " के पहले कुछ बातें आज के ख़ास दिवस " विश्व पर्यावरण दिवस " के बारे में कर लेते हैं .. है ना !? ...
◆ पहले आज की कुछ-कुछ बात ◆ :-
आज .. अभी अगर आपके पास दो पल का समय हो तो आइए .. हमलोग एक बार अपने घर या मकान, अपार्टमेंट के फ्लैट या ड्यूप्लेक्स को ग़ौर से देखते हैं .. निहारते हैं। आइए न .. देखते हैं कि ...
अचरज का विषय तो तब लगता है, जब शहर के विकास, मुहल्ले/कॉलोनी के विस्तार या सड़क के चौड़ीकरण के लिए किसी पेड़ के काटने पर शाब्दिक आँसू बहाए जाते हैं।
चलते-चलते एक नज़र विस्तार से विश्व पर्यावरण दिवस पर .. वैसे तो सर्वविदित है कि 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस को पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 1974 से मनाया जा रहा है। वैसे तो इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ ( United Nations Organisation ) द्वारा पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु 1972 में ही की गईं थी।
तो आइए .. मिलकर पहले अपने घर के और अपने भीतर झांकें और फिर बाहरी पर्यावरण की बात करें तो शोभा देगा .. शायद ...
◆ अब आज की रचना/विचार की कुछ बातें ◆ :-
भारत के 28 राज्यों में से एक- उत्तर प्रदेश जो वर्तमान में सबसे ज्यादा जिलों यानि 75 जिलों वाला राज्य है। इन जिलों में से एक- वाराणसी जिला प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों वाला शहर है।
यहाँ स्थित संकट मोचन मंदिर में, वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन और दशाश्वमेध घाट पर 7 मार्च ' 2006, मंगलवार के दिन बम विस्फोट हुए थे। इस सीरियल (धारावाहिक) बम धमाके में लगभग 28 लोगों की जान चली गई थी और लगभग 101 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे। बाद में जाँच में पता चला था कि इस नापाक दुष्कर्म में लश्कर-ए-तोएबा नामक आतंकवादी संगठन का हाथ था।
उस घटना हताहत मन में एक सवाल कुलबुलाया था, जिस ने बाद में इस निम्नलिखित रचना/विचार का रूप धारण किया था। कुछ दिनों बाद झारखण्ड के धनबाद जिला से प्रकाशित होने वाले हिन्दी दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" के सहायक पृष्ठ पर 28.03.2006 को इस रचना/विचार को स्थान भी मिला था।
तो फिर अब देर किस बात की ? आपकी नज़रों के लिए प्रतिक्षारत है ये रचना/विचार .. बस यूँ ही ...
कब लोगे अवतार ?
आस्था से भरा संकटमोचन
श्रद्धालुओं की भीड़ भरी एक शाम
दिन भी था पावन मंगलवार,
न जाने किया किस नराधम ने
पवित्र धाम पर अमंगल वार।
इधर क्षत-विक्षत छितरायी चहुँओर
वीभत्स लाश होंकर लहूलुहान,
कहीं आतंकित, तो कहीं असहाय
ख़ून से लथपथ घायल इंसान,
उधर केसरिया सिन्दूर से लिपटे
गदाधारी मूक प्रस्तर हनुमान,
रहा है सदा ही ऊहापोह
हरेंगे कब संकट भक्तों के
ये संकटमोचक भगवान ।
जला कर विस्फोटों की होलिका
सदा खेलते ख़ून की होली
जाने कब थकेंगे उनके हाथ ?
चीत्कारों, सुलगती लाशों और
फिर सिसकियों से भला
वे लोग कब तक साधेंगे स्वार्थ।
सुनों ! हे विष्णु के अवतार !
महाभारत के अनुपम सूत्रधार !
कलियुग में कब लोगे अवतार ?
हो हक्का-बक्का ढूँढ़ रहा है तुम्हें,
आज आपका निरीह अकेला पार्थ।
◆ पहले आज की कुछ-कुछ बात ◆ :-
आज .. अभी अगर आपके पास दो पल का समय हो तो आइए .. हमलोग एक बार अपने घर या मकान, अपार्टमेंट के फ्लैट या ड्यूप्लेक्स को ग़ौर से देखते हैं .. निहारते हैं। आइए न .. देखते हैं कि ...
1) हमारे घर या फ़्लैट या ड्यूप्लेक्स में इमारती लकड़ी के चौखट से जड़े वार्निश से, किसी एनामेल पेंट से या सनमाइका की परत चढ़ी चमचमाती हुई .. इमारती लकड़ी या फिर प्लाईवुड के दरवाज़े या खिड़कियों के पल्ले हैं या नहीं ?
2) इसके अलावा अन्य क़ीमती फर्नीचरों में .. मसलन- सोफे, डाइनिंग टेबल के सेट, बुक सेल्फ़, कपबोर्ड, दीवारों से जड़ी बड़ी-बड़ी अलमारियां, पूजे की फैंसी अलमारी, पलँग-दीवान इत्यादि लकड़ियों से निर्मित हैं या नहीं ?
3) हमारे घर में भौतिक सुख देने वाले विदेशों में आविष्कार किए गए आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों में .. मसलन- रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर में आज भी ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाली गैस क्लोरो-फ्लोरो कार्बन ( Chlorofluorocarbons / CFCs) गैस या हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (Hydrochlorofluorocarbon / HCFC ) गैस भरी है या फिर उसकी जगह पर ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुँचाने वाली हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ( Hydrofluorocarbon / HFC ) गैस भरी है ?
2) इसके अलावा अन्य क़ीमती फर्नीचरों में .. मसलन- सोफे, डाइनिंग टेबल के सेट, बुक सेल्फ़, कपबोर्ड, दीवारों से जड़ी बड़ी-बड़ी अलमारियां, पूजे की फैंसी अलमारी, पलँग-दीवान इत्यादि लकड़ियों से निर्मित हैं या नहीं ?
3) हमारे घर में भौतिक सुख देने वाले विदेशों में आविष्कार किए गए आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों में .. मसलन- रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर में आज भी ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाली गैस क्लोरो-फ्लोरो कार्बन ( Chlorofluorocarbons / CFCs) गैस या हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (Hydrochlorofluorocarbon / HCFC ) गैस भरी है या फिर उसकी जगह पर ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुँचाने वाली हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ( Hydrofluorocarbon / HFC ) गैस भरी है ?
ऐसे और भी कई सवाल हैं, पर .. आज और अभी इतना ही। इनमें से अगर एक भी सवाल का आपका जवाब "हाँ" में है और हमने वेव-पन्नों पर आज विश्व पर्यावरण दिवस पर कुछ भी पोस्ट करके अपने कर्त्तव्य-पालन का निर्वाह मान कर अपनी गर्दन अकड़ायी है या फिर आसपास के सच में या किसी काल्पनिक पेड़ के कटने पर वेव-पन्नों पर शाब्दिक आँसू बहाए हैं तो आप को ऐसा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए .. शायद ...
अब सोशल मीडिया के वेव पन्नों पर आज या यूँ कहें कि पिछले कई दिनों से पर्यावरण की तरंगीय (वेब - Wave ) सुरक्षा और संरक्षण की जा रही है। आज तो विशेषतौर पर, कारण कि .. आज ही तो विश्व पर्यावरण दिवस है। अच्छी बात भी है। अच्छा सन्देश भी है। ज़ाहिर-सी बात है कि अगर पर्यावरण प्रदूषित या नष्ट होगा तो किसी भी प्राणी, खास कर हम मानवों (?) का जीवन दूभर या असम्भव हो जाएगा। यहाँ तक सोचना .. इसकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए प्रयासरत होना .. बिल्कुल उचित है।
अचरज का विषय तो तब लगता है, जब शहर के विकास, मुहल्ले/कॉलोनी के विस्तार या सड़क के चौड़ीकरण के लिए किसी पेड़ के काटने पर शाब्दिक आँसू बहाए जाते हैं।
ज़नाब ! इतने आँसू न बहाइए .. पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के अंतर्गत हमें जल संरक्षण भी करने हैं .. है ना ?
तनिक तो सोचिए .. जब शहरीकरण का विस्तार होगा या कभी हुआ होगा, नया फ्लैट या अपार्टमेंट बनेगा या जब कभी भी बना होगा तो जंगल, बाग़ीचे या खेत कम किए गए होंगे। नहीं क्या ?
जिस लकड़ी के सोफे, पलँग या मेज-कुर्सी पर पालथी मार, लेट कर या पैर लटका कर और हिला-हिला कर आप तरंगीय आँसू वेव-पन्नों पर चुआ रहे होंगे, उसके लिए भी किसी ना किसी पेड़ को काटा ही गया होगा। है ना ? तो फिर अब किसी पेड़ के कटने पर इतनी हाय-तौबा का मतलब ?
माना आपके पोस्ट को ढेर सारे लाइक, कमेंट्स, स्माइली मिल भी गए .. आप गिनती बटोर कर खुश भी हो गए .. और रात में अपने ए. सी. वाले कमरे में दीवान या पलँग पर दोहर ओढ़ कर और टाँग पसार कर, नाक बजाते हुए सो भी गए तो .. पर्यावरण का आपने कौन सा भला कर दिया .. भला ?
अरे ज़नाब ! कटने पर आँसू बहाने के बजाय युवा पीढ़ी को पेड़ लगाने की सीख देना और खुद लगाना ही सही-सही पर्यावरण दिवस ही नहीं, हमारी दिनचर्या में शामिल होना चाहिए। नहीं क्या ?
अरे ज़नाब ! कटने पर आँसू बहाने के बजाय युवा पीढ़ी को पेड़ लगाने की सीख देना और खुद लगाना ही सही-सही पर्यावरण दिवस ही नहीं, हमारी दिनचर्या में शामिल होना चाहिए। नहीं क्या ?
चलते-चलते एक नज़र विस्तार से विश्व पर्यावरण दिवस पर .. वैसे तो सर्वविदित है कि 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस को पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 1974 से मनाया जा रहा है। वैसे तो इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ ( United Nations Organisation ) द्वारा पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु 1972 में ही की गईं थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ या संयुक्त राष्ट्र एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका उद्देश्य है - अंतरराष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने में सहयोग देना, अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, मानव अधिकार और विश्व शांति के लिए कार्यरत रहना। इस की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकारपत्र पर 50 देशों, जिनमें हमारा परतंत्र देश तत्कालीन भारत भी था, के हस्ताक्षर होने के साथ हुई थी। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में विश्व के लगभग सारे अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त 193 देश हैं। इसका मुख्यालय अमेरिका ( The United States of America/ USA) के न्यूयॉर्क शहर के मैनहटन शहर में है, जो हडसन नदी के मुहाने पर मुख्य रूप से मैनहटन द्वीप पर स्थित है। संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाएँ अरबी, चीनी, अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी, रूसी, और स्पेनी हैं। यहाँ भी हमारी हिन्दी नहीं है।
विस्तृत रूप में पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के अंतर्गत भूजल संरक्षण, वायु प्रदूषण से बचाव, ओजोन परत का बचाव, भूमि व मृदा संरक्षण, मानव खाद्य श्रृंखला में जहरीले रसायन से बचाव, खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान इत्यादि आते हैं।
विस्तृत रूप में पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के अंतर्गत भूजल संरक्षण, वायु प्रदूषण से बचाव, ओजोन परत का बचाव, भूमि व मृदा संरक्षण, मानव खाद्य श्रृंखला में जहरीले रसायन से बचाव, खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान इत्यादि आते हैं।
तो आइए .. मिलकर पहले अपने घर के और अपने भीतर झांकें और फिर बाहरी पर्यावरण की बात करें तो शोभा देगा .. शायद ...
◆ अब आज की रचना/विचार की कुछ बातें ◆ :-
भारत के 28 राज्यों में से एक- उत्तर प्रदेश जो वर्तमान में सबसे ज्यादा जिलों यानि 75 जिलों वाला राज्य है। इन जिलों में से एक- वाराणसी जिला प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों वाला शहर है।
यहाँ स्थित संकट मोचन मंदिर में, वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन और दशाश्वमेध घाट पर 7 मार्च ' 2006, मंगलवार के दिन बम विस्फोट हुए थे। इस सीरियल (धारावाहिक) बम धमाके में लगभग 28 लोगों की जान चली गई थी और लगभग 101 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे। बाद में जाँच में पता चला था कि इस नापाक दुष्कर्म में लश्कर-ए-तोएबा नामक आतंकवादी संगठन का हाथ था।
उस घटना हताहत मन में एक सवाल कुलबुलाया था, जिस ने बाद में इस निम्नलिखित रचना/विचार का रूप धारण किया था। कुछ दिनों बाद झारखण्ड के धनबाद जिला से प्रकाशित होने वाले हिन्दी दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" के सहायक पृष्ठ पर 28.03.2006 को इस रचना/विचार को स्थान भी मिला था।
तो फिर अब देर किस बात की ? आपकी नज़रों के लिए प्रतिक्षारत है ये रचना/विचार .. बस यूँ ही ...
कब लोगे अवतार ?
आस्था से भरा संकटमोचन
श्रद्धालुओं की भीड़ भरी एक शाम
दिन भी था पावन मंगलवार,
न जाने किया किस नराधम ने
पवित्र धाम पर अमंगल वार।
इधर क्षत-विक्षत छितरायी चहुँओर
वीभत्स लाश होंकर लहूलुहान,
कहीं आतंकित, तो कहीं असहाय
ख़ून से लथपथ घायल इंसान,
उधर केसरिया सिन्दूर से लिपटे
गदाधारी मूक प्रस्तर हनुमान,
रहा है सदा ही ऊहापोह
हरेंगे कब संकट भक्तों के
ये संकटमोचक भगवान ।
जला कर विस्फोटों की होलिका
सदा खेलते ख़ून की होली
जाने कब थकेंगे उनके हाथ ?
चीत्कारों, सुलगती लाशों और
फिर सिसकियों से भला
वे लोग कब तक साधेंगे स्वार्थ।
सुनों ! हे विष्णु के अवतार !
महाभारत के अनुपम सूत्रधार !
कलियुग में कब लोगे अवतार ?
हो हक्का-बक्का ढूँढ़ रहा है तुम्हें,
आज आपका निरीह अकेला पार्थ।