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Monday, January 13, 2020

निगहबान मांझा ... - चन्द पंक्तियाँ - (२१) - बस यूँ ही ...

(१)*

ठिकाना पाया इस दरवेश ने
तुम्हारे ख़्यालों के परिवेश में ...

(२)*

माना ..
घने कोहरे हैं
फासले के बहुत
दरमियां हमारे-तुम्हारे ...

है पर ..
रोशनी हर पल
'लैंप-पोस्ट' की
एहसास के तुम्हारे ...

(३)*

जब .. जहाँ हो जाऊँ
कभी भी मौन सनम!
हो जाना मत
चुप तुम भी ...
कर देना आरम्भ
उस पल ही
कुछ तुम ही बोलना ...

बस यूँ ही
पल भर भी
थमे नहीं
ताउम्र कभी भी ...
हमारे मन में प्यार की
सुरीली अंत्याक्षरी का
मधुर सुरीला सिलसिला ...

(४)*

नीले ..
खुले ..
आसमान में
दिख जाते हैं
जब कभी
उड़ते ..
रंग-बिरंगे ..
दो पतंग
इठलाते ..
गले मिलते ..
अक़्सर ...

अनायास
आते हैं
तब
याद
कुछ सगे ..
कुछ अपने ..
मिले थे
जो गले
कभी
मेरे
बनकर ...

(५)*

आस के आकाश में
संग कच्चे-धागे मन के
पतंग तुम्हारे स्वप्न के
उड़ते अविराम बारहा ...

साथ पल-पल तुम्हारे
अनवरत लिपटा रहूँ मैं
तेरे मन के कच्चे-धागे से
बना निगहबान मांझा ...