"एक अवतार पत्थर से परे" के सफ़र में अंक-0 और अंक-1 के बाद आज हमारे समक्ष हैं - "एक अवतार पत्थर से परे ... (2)" .. पर आज के अवतार की चर्चा करने के सन्दर्भ में एक बार हमारे देश में उपलब्ध B.A.M.S. की डिग्री के बारे में एक संक्षिप्त उल्लेख कर लें तो बेहतर होगा .. शायद ...
यूँ तो सर्वविदित है कि हमारे देश में M.B.B.S. के अलावा चिकित्सा की एक और भी डिग्री है - B.A.M.S. यानि “Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery” जिसे हिन्दी में “आयुर्वेदिक चिकित्सा और सर्जरी का स्नातक” कहा जाता है। जिसे 12वीं कक्षा (Intermediate) के बाद साढ़े पाँच वर्ष की अवधि में पूरी की जाती है, जिसमें एक वर्ष का इंटर्नशिप (Internship) भी शामिल रहता है। B.A.M.S. का डिग्रीधारी व्यक्ति भारत में कहीं भी प्रैक्टिस कर सकता है। इस में शरीर-रचना विज्ञान (Anatomy), शरीर-क्रिया विज्ञान (Physiology), चिकित्सा के सिद्धान्त, रोगों से बचाव तथा सामाजिक चिकित्सा, औषधि शास्त्र (Pharmacology), विष विज्ञान (Toxicology), फोरेंसिक चिकित्सा, कान-नाक-गले की चिकित्सा, आँख की चिकित्सा, शल्यक्रिया के सिद्धान्त आदि के पठन-पाठन के साथ-साथ ही आयुर्वेद की भी शिक्षा दी जाती है। सम्भवतः आने वाले दिनों में B.A.M.S. और M.B.B.S. का एकीकरण भी हो सकता है .. शायद ...
महाराष्ट्र राज्य के सतारा जिले में एक छोटे से गाँव के एक मध्यम वर्गीय परिवार के एक अभिभावक दम्पति अपने बेटे की पढ़ाई-लिखाई के बाद उसके बेहतर भविष्य की आशा में अपना सब कुछ उसकी पढ़ाई में निवेश कर देते हैं।
उनका बेटा भी उनकी उम्मीद पर खड़ा उतरते हुए, BAMS की पढ़ाई 1999 में तिलक आयुर्वेद महाविद्यालय,पूना (पुणे) से पूरी कर तो लिया पर उसे कोई यथोचित नौकरी नहीं मिल पायी। दूसरी तरफ अपने परिवार की आर्थिक तंगी के कारण वह अपना किसी भी तरह का क्लीनिक खोलने में भी असमर्थ था। तब वह आज की आधुनिक बाज़ारवाद की रणनीति के तहत दर-दर ( Door to door ) जाकर मुहल्ले, सोसाइटी (अमूमन बड़े शहारों में अपार्टमेंट को सोसायटी नाम से बुलाते हैं) के लोगों के दरवाज़े पर दस्तक देकर या उपलब्ध कॉल बेल बजा कर उन से उनके परिवार के किसी भी सदस्य की किसी भी तरह की बीमारी के लिए चिकित्सकीय आवश्यकता के बारे में पूछता और आवश्यकता होने पर सशुल्क सेवा प्रदान करने लगा था ताकि घर चलाने के लिए उसे चार पैसे की आमदनी हो सके। इस दौरान वह चिकित्सा सम्बन्धी अपने सारे उपकरण के साथ-साथ परिश्रावक ( Stethoscope ) वग़ैरह एक बैग में लेकर चलता था। ऐसे में कुछ लोग तो अपनी आवश्यकतानुसार अपना इलाज करवाने लगे और कुछ लोग उन्हें अपमानित करते हुए अपने दरवाजे से भगा देते कि इतने सम्मानित डिग्रीधारी डॉक्टर हो कर भी इस तरह दर-दर घुमने की क्या जरूरत है भला !
समय का पहिया घुमता रहा, समय गुजरता गया और आज वह अपनी धर्मपत्नी, जो स्वयं एक BAMS डॉक्टर हैं, के साथ पुणे की गलियों में, सड़कों पर, मंदिरों-मस्जिदों के आगे या अन्य और भी कई सार्वजनिक स्थानों पर भीख माँगने वाले, बेघर लोगों या झुग्गी-झोपड़ियों में अपनी गुजर-बसर करने वाले बुज़ुर्ग, बेसहारा लोगों को या फिर यूँ कहें कि किसी भी जरूरतमंद को मुफ़्त जाँच और मुफ़्त दवाइयाँ उन तक जाकर उन्हें मुहैया कराते हैं। सड़क के किनारे बैठे भिखारियों की निःशुल्क जाँच करके निःशुल्क दवाएँ देकर उपचार करने के साथ-साथ ऐसे सभी लोगों की भी निःशुल्क सेवा करते हैं, जिनके परिवार वालों ने उनकी देखभाल से मुँह मोड़ लिया है। यह नेक काम हर सोमवार से शनिवार तक हर सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक घूम घूम कर चलता है। ये सिलसिला यहीं नहीं थमता, बल्कि जब वे जरूरतमंद लोग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं तो उन्हें ये चिकित्सक दम्पति प्यार से समझाते हैं और बताते हैं कि भीख माँगना कोई अच्छी बात नहीं है। इस प्रकार उनका भीख मँगवाना छुड़वा कर उन्हें यथासंभव आर्थिक सहायता देकर अपना कोई भी यथोचित छोटा-मोटा काम-धंधा करने के लायक बना देते हैं। इस कोशिश में लगे लोगों की आर्थिक के अलावा और भी अन्य प्रकार की मदद के लिए भी हर वक्त ये युगल तत्पर रहते हैं। उन के अनुसार ऐसा करके उन्हें खुशी मिलती है। लोग उन्हें " भिखारियों का डॉक्टर " (“Doctor For Beggars”) कह कर बुलाते हैं। उन्हें खुद को ऐसा कहलाने में कोई उलझन या परेशानी भी नहीं होती है।
लगभग 44 वर्षीय पुणे के उस अवतारस्वरूप डॉक्टर का नाम है - डॉ अभिजीत सोनवणे और उनकी धर्मपत्नी हैं - डॉ मनीषा सोनवणे जो दिनरात उनके साथ योगदान करती हैं। शाम 3 बजे से मनीषा अपना सशुल्क क्लिनिक चलाती है, जिसकी आमदनी भी जरूरतमंदों पर खर्च की जाती है।
आज इनके द्वारा चलाया जा रहा सोहम् न्यास (Soham Trust) नामक एक न्यास समग्र पुणे में सामाजिक स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिए व्यापक स्वास्थ्य देखभाल परियोजना का काम करता है। शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के जरूरतमंदों के अलावा युवा वर्ग में भी यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बंधित जागरूकता फैलाते हैं। गर्भवती महिलाओं और उसके परिवार को स्वच्छता के तरीके बतलाते हैं। साथ ही गरीबों में आम बीमारी - रक्ताल्पता (Anaemia) की बीमारी की भी जाँच और उपचार करते हैं।
हम अक़्सर अपने तथाकथित सभ्य और सुसंस्कृत समाज में अपने घर-समाज के युवाओं से जिन विषय पर बात करते हुए झेंपते हैं या बात करना नहीं चाहते या फिर इसे गन्दी बात कह कर टाल देते हैं, उस विषय पर भी युवाओं से ये बातें करके उसकी बुराईयों से अवगत कराते हैं। युवाओं के साथ-साथ व्यवसायिक यौनकर्मियों को भी HIV/AIDS से बचने के प्रति सजग करते हैं और साथ ही व्यवसायिक यौनकर्मियों को इस संक्रमण रोग से बचने के उपाय, मसलन- कंडोम वग़ैरह , उन्हें मुफ़्त में उपलब्ध कराते हैं। समय-समय पर गरीब और बेसहारा बुजुर्गों के अलावा गरीब कुपोषित बच्चों को भी पोषण पूरक (Nutritional Supplements) मुफ़्त में देते हैं। अब तक हज़ारों लोगों की मदद कर चुका है, इनका ये गैर लाभकारी संगठन (Non Profit Organization)। गरीबों-बेसहारों के लिए मसीहा के तरह हर पल तत्पर खड़ा है - "सोहम् न्यास" (Soham Trust)। कुछ वर्षों पहले सोहम् न्यास (Soham Trust) आरम्भ करने के बाद अब तक इन दम्पति ने लगभग सैकड़ों जरूरतमंदों के मोतियाबिंद का मुफ़्त ऑपरेशन किया है। लगभग इतने ही असहाय, वृद्ध भिखारियों से उनके भीख माँगने की दिनचर्या छुड़वा कर उनके जीवकोपार्जन का अन्य साधन भी जुटा चुके हैं।
अब ऐसे में किसी भी शहर के लड्डू-पेड़े और कहीं-कहीं सोने-चाँदी या अन्य धन-दौलत के चढ़ावे वाले और तिलकधारी तोंदिले के संरक्षण वाले ऊँचे कँगूरे से सजे हजारों मन्दिरों, भभूत वाले सैकड़ों मज़ारों, मस्जिदों, आज भी सलीब पर प्रतीकात्मक मसीहे को लटकाए गिरजाघरों से तो बेहतर है कि हर शहर और हर गाँव में इन डॉ अभिजीत सोनवणे और उनकी धर्मपत्नी डॉ मनीषा सोनवणे के जैसे ही आज के पत्थर से परे जीवित अवतार-दम्पति हों ताकि कुछ तो जनकल्याण हो सके। ऐसे पत्थर से परे अवतारों को कोटि-कोटि ही नहीं अनगिनत नमन कहना चाहिए .. शायद ... बस यूँ ही ...