(1)
तमाम उम्र मैं
हैरान, परेशान,
हलकान-सा,
तो कभी लहूलुहान बना रहा
हो जैसे मुसलमानों के
हाथों में गीता
तो कभी हिन्दूओं के
हाथों का क़ुरआन बना रहा....
(2)
तालियाँ जो नहीं बजी
महफ़िल में तो शक
क्यों करता है
हुनर पर अपने
गीली होंगी शायद अभी ...
मेंहदी उनकी हथेलियों की ....
(3)
बन्जारे हैं हम
वीराने में भी अक़्सर
बस्ती तलाश लेते हैं
आबादी से दूर
भले हवा में ही अपना
आशियाना तराश लेते हैं ...
तमाम उम्र मैं
हैरान, परेशान,
हलकान-सा,
तो कभी लहूलुहान बना रहा
हो जैसे मुसलमानों के
हाथों में गीता
तो कभी हिन्दूओं के
हाथों का क़ुरआन बना रहा....
(2)
तालियाँ जो नहीं बजी
महफ़िल में तो शक
क्यों करता है
हुनर पर अपने
गीली होंगी शायद अभी ...
मेंहदी उनकी हथेलियों की ....
(3)
बन्जारे हैं हम
वीराने में भी अक़्सर
बस्ती तलाश लेते हैं
आबादी से दूर
भले हवा में ही अपना
आशियाना तराश लेते हैं ...