Thursday, December 12, 2019

जींसधारी से लेकर जनेऊधारी तक...

"सत्यमेव जयते" की तिलक अपने माथे पर लगाए अन्य भारतीय सरकारी संस्थानों या अदालतों की तरह बिहार की राजधानी पटना में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय  का क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय (Government of India, Ministry of External Affairrs, Regional Passport Office, Patna) यानि पासपोर्ट सेवा केन्द्र (Passport Seva , Service  Excellence) एक बड़े से signboard के साथ Vaus Springs, Block-ll, Lower & Upper Ground Floor,Ashiana-Digha Road,Patna के पता पर स्थित है।
हमारा वहाँ जाने के कारण की चर्चा फिर कभी। फ़िलहाल वहाँ की झेली गई कुछ परेशानियों के बहाने कई बातें दिमाग में कौंध आती हैं।
अगर आप पटना में पासपोर्ट बनवाने कभी गए हैं तो इन परेशानियों से अवश्य रूबरू होना पड़ा होगा या भविष्य में पड़ सकता है। इसकी सभी परेशानीयाँ लगती तो केवल इसकी अपनी हैं, पर हैं सार्वभौमिक।
मसलन -  यहाँ मुख्य गेट के अन्दर तो आप अपने वाहन ले ही नहीं जा सकते हैं और बाहर सड़क पर कहीं पार्किंग की सुविधा है ही नहीं। जैसा कि अमूमन कई शहरों में यह असुविधा आम है। नतीज़न - बस ... फुटपाथ पर किनारे आप अपनी वाहन चाहे वह दुपहिया हो या चारपहिये वाली - खड़ी कर सकते हैं। विशेषतौर से यहाँ कार्यालय के भवन के सामने की सड़क पूरी तरह खस्ताहाल में है, जहाँ बेमौसम भी जलजमाव आम दृश्य है।
खैर ! अब आते हैं .. एक और सार्वभौमिक मूलभूत समस्या पर। पटना के इस कार्यलय के पास ही नहीं, पूरे शहर में ही और कई अन्य शहरों में भी सार्वजनिक मूत्रालय का अभाव देखा जा सकता है। नतीज़न - पुरुष तो जैसे-तैसे पढ़ाई के दिनों वाले एक श्लोक के "श्वान निद्रा" को ध्यान में रखते हुए "श्वान मूत्रा" यानि मूत्र-त्यागने के लिए कुत्ते की तरह कहीं भी सड़क किनारे शुरू हो जाते हैं। पर सार्वजनिक स्थल पर तलब लगने पर महिलाओं के लिए तो जैसे आफ़त वाली ही बात होती है। यहाँ भी उनकी धैर्य-क्षमता नमनीय ही है। हाँ .. गाँव की बात अलग है।
शहर में तो कई जगह दीवारों पर इधर-उधर मूत्र नहीं त्यागने की हिदायत लिखी होती है। कई जगह तो मूत्र त्यागने वाले के लिए गालियाँ या गधा का सम्बोधन तक लिखा होता है।
इस केंद्र सरकार के कार्यालय के बाहर भी यही समस्या व्याप्त है। नियमानुसार यहाँ पूर्व में ही दिए गए निर्धारित समय-सीमा के अंदर ही भीतर जाने दिया जाता है। एक तरफ आप उस शहर के हैं, तब भी बुलाए गए समय से कुछ समय पहले तो आपको जाना ही होता है। दूसरी तरफ बाहर अन्य शहर से आए लोग तो अंजान शहर में नए पता के लिए भटकने के डर से समय से पहले पहुँच ही जाते हैं।
समस्या यहीं शुरू होती है। अगर आपको मूत्र त्यागने की तलब लगी है तो पास ही फोटो-कॉपी, चाय-नाश्ता, पान-सिगरेट के दुकानों में से एक दुकान वाले ने अंदर में अस्थायी व्यवस्था कर रखी है, जहाँ आप दस रूपये की सेवा-शुल्क देकर हल्का हो सकते हैं। कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। कारण कि यह स्थान एक पॉश कॉलोनी है और आप वहाँ फूटपाथ पर खड़ा हो कर कहीं भी शुरू नहीं हो सकते हैं। सच-सच कहूँ तो इसकी कीमत सुनकर ही मेरी तो तलब गायब हो गई। और ... मैं अपना ध्यान बँटा कर अन्दर जाने वाले समय का इंतज़ार करने लगा।
ये अलग बात है कि अंदर की व्यवस्था तो काफी चुस्त-दुरुस्त और साफ़-सुथरी किसी पांचसितारा होटल या हवाई-अड्डे के वाशरूम की एहसास कराती है आपको।
कई जगह तो दीवारों पर ज्ञान लिखा होता है कि "यहाँ पेशाब नहीं करें। मूत्रालय में करें।" पर नगर-निगम का मूत्रालय नदारद रहता है। फलस्वरूप लोग वही शुरू हुए दिख जाते हैं, जहाँ इसकी मनाही लिखी होती है। अब आदमी करे भी तो क्या करे। कई दफ़ा तो दुर्लभ परिस्थिति में आपातकालीन विकट समय में सभ्य लोगों को भी अपनी सभ्यता त्याग कर सार्वजनिक मूत्रालय के अभाव में ऐसा करना पड़ता है। परन्तु आमरूप से प्रायः लोग लोकलज्जा त्याग कर ऐसा करते हुए दिख जाते हैं।  कामकाजी या कभी-कभार घरेलु कामों से बाहर निकल कर रास्ते में चलने वाली सभ्य महिलाओं को शर्म से या सभ्यतावश ऐसे दृश्यों से रोज दो-चार होना पड़ता है और आँखें चुरानी पड़ती है।
इस बेशर्मी भरे कृत्य में जींसधारी से लेकर जनेऊधारी तक शामिल हैं। सवाल है - दोषी कौन ?  नगर निगम या आमजन ?
फ़िलहाल ऐसे सभ्यजनों के साथ-साथ नगर निगम को भी नमन !!!













Tuesday, December 10, 2019

सूरज से संवाद ...

( चूंकि सर्वविदित है कि मैं आम इंसान हूँ .. कोई साहित्यकार नहीं .. अतः इसकी "विधा" आप से जानना है मुझे। प्रतीक्षारत ...)

हे सूरज भगवान (पृथ्वी पर कुछ लोग ऐसा मानते हैं आपको) ! नमन आपको .. साष्टांग दण्डवत् भी आपको प्रभु !
हालांकि विज्ञान के दिन-प्रतिदिन होने वाले नवीनतम खोजों के अनुसार ब्रह्मांड में आपके सदृश्य और भी अन्य .. आप से कुछ छोटे और कुछ आप से बड़े सूरज हैं। ये अलग बात है कि हमारी पृथ्वी से अत्यधिक दूरी होने के कारण उनका प्रभाव या उनसे मिलने वाली धूप हम पृथ्वीवासियों के पास नहीं आ पाती।
अब ऐसे में तो आप ही हमारे जीवनदाता और अन्नदाता भी हैं। आपके बिना तो सृष्टि के समस्त प्राणी यानि जीव-जंतु, पेड़-पौधे जीवित रह ही नहीं सकते, पनप ही नहीं सकते।पृथ्वी की सारी दिनचर्या लगभग ठप पड़ जाएगी और हाँ .. बिजली की बिल भी दुगुनी हो जाएगी। है ना प्रभु !?
हाँ .. वैसे तो आप पूरे साल यानि 365 या 366 यानि सब दिन आते ही हैं सुबह-सुबह .. आकाश में बादल वाले बरसात के मौसम को छोड़ कर।  पर विशेष कर उन चार दिनों के लिए तो विशेष नमन आपको। जिस दौरान हमारे बिहार क्या .. अब तो सुना है अन्य कई स्थानों में भी लोग आपके लिए छठ नाम का त्योहार मनाते हैं और आपके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। वैसे तो आप अन्तर्यामी हैं, फिर भी आपको बतला देते हैं कि उन चार दिनों में हमारे राज्य की राजधानी पटना में तो हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री जी की "स्वच्छ भारत अभियान" चीख-चीख कर अपने अस्तित्व का एहसास कराती है।इन दिनों मुहल्ले के युवा और कुछ नालायक बुजुर्ग भी शरीफ़ बन जाते हैं। ना बीड़ी, ना सिगरेट, ना खैनी और दारू पर तो वैसे भी तीन साल से "कागज़ पर" क़ानूनन पाबन्दी है। सालों भर मांसाहारी रहने वाला भी पूरा का पूरा परिवार कुछ दिनों के लिए पूर्णरूपेण शाकाहारी बन जाता है। पूर्णरूपेण मतलब पता भी है आपको ? आयँ !?हम बतलाते हैं - मतलब .. लहसुन-प्याज भी खाना बंद कर देते हैं। आपको तो पता ही होगा कि हमारे तरफ लहसुन-प्याज खाने से भी पाप लगता है। छठ में अगर कोई भी ये सब किया तो मर कर नर्क का निवासी बनता है। अरे .. अरे ... ये हम नहीं कह रहे, हमारे समाज के बुद्धिजीवी लोग कहते हैं। जानते हैं - हमको बड़ा मजा आता है , जब चौथे दिन ठेकुआ खाने के लिए मिलता है। वैसे तो 'डायबीटिक' हूँ, पर आपके प्रसाद के नाम पर थोड़ा-बहुत खाने के लिए मिल ही जाता है। और अगर 'शुगर' बढ़ भी गया तो आप हैं ना प्रभु !? आयँ !?
ये सारी बातें जो मैं कह रहा हूँ, आपको तो पता ही होगा। पर मुख्य रूप से आज मैं आपसे कुछ शिकायत करने के लिए आपसे संवाद कर रहा हूँ।
जब हमलोग इतनी श्रद्धा से करते हैं आपकी पूजा और आपके लिए व्रत रखती हैं हमारी महिलायें .. कुछ पुरुष भी , तब " सोलर पैनल्स " का आविष्कार अपने बिहार या भारत में क्यों नहीं करवाए आप!? बोलिए !! विदेशियों द्वारा करवाए आप । आपका बिना पूजा किए ही आप तो हमलोगों को छोड़ कर उनलोगों को रोज यहाँ रात कर के धूप बाँटने भी चले जाते हैं। यहाँ पर भी दूसरे सम्प्रदाय वाले को भी बिना आपका पूजा किए ही उन्हें आप सबको धूप बाँट देते हैं।ये गलत बात है। पूजा-व्रत करें हमलोग और धूप बाँटे आप पूरे विश्व को। मतलब कर्म करें हमलोग और फल बाँटें आप सब लोग को। है ना !? जब हमारा देश, धर्म, जाति, सम्प्रदाय .. सब अलग है तो सब का अलग-अलग सूरज भी होना चाहिए कि नहीं ? सुना है कि आपकी दो-दो पत्नियाँ हैं। तब तो आपकी तरह यानि आपके डी एन ए वाली आपकी संतान भी तो होगी ना ? पता है .. हमलोग तो सब भिन्न-भिन्न भगवान (?) के डी एन ए से ही उत्पन्न हुए हैं। उदाहरणस्वरूप - कहते हैं कि चित्रगुप्त नामक भगवान के डी एन ए से कायस्थ नामक प्राणी का जन्म हुआ है। वो प्राणी आज भी पृथ्वी पर पाया जाता है। वैसे उनको कोई पुत्री नहीं थी। अब मालूम नहीं उन प्राणियों में महिलाओं का आगमन कहाँ से हुआ होगा!.. खैर ! उस विषय से दूर भागते हैं।
दरअसल मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि अगर आपकी शादी हुई थी और संतान भी होगी ही .. तो फिर उन्हें अन्य सम्प्रदाय या देश के लिए क्यों नहीं भेज देते धूप बाँटने। ताकि हम छठ-पूजा करने वाले को विशुद्ध रूप से आपकी किरणें मिला करे। और आप हमलोगों के बुद्धिजीवियों से भी कुछ आविष्कार करवा सकिए।

जैसे आप सोलर पैनल्स का आविष्कार करवा आये जाकर फ़्रांस में एक फ़्रांसिसी वैज्ञानिक - एलेक्जेंडर एडमंड बैकेलल से 1839 में।

" कांच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय
होई ना बलम जी कहरिया, बहंगी घाटे पहुंचाय-२ "

जबकि हमलोग आपके लिए प्रसाद से भरा भारी-भारी दउरा (टोकरी) अपने सिर पर ढो-ढो कर तालाब-नदी किनारे घाट तक लेकर गए। हमारे बुद्धिजीवी लोग जो घर-गाँव छोड़ कर बाहर कमाने-खाने जाते हैं, ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिलने पर भी ट्रेन में भीड़ का धक्का खा-खा कर, टॉयलेट के दरवाजे के पास रात भर बैठ-सो कर अपने-अपने गाँव-शहर छठ-पूजा करने आते हैं और अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। करें भी क्यों नहीं भला !! .. आप ही की कृपा से उनका "मनता-दन्ता" (मन्नत) वाला जन्म हुआ होता है, आप ही की कृपा से वे 'पास' करते हैं, आप ही की कृपा से उनको छोटी या बड़ी नौकरी मिलती है। अब हमारे बुद्धिजीवी लोग अपने सिर पर आपका दउरा ढोते हैं और .. आप हैं कि विदेशियों को ज्ञान और धूप बाँट आए। गलत है ये सब तो ... चिंटू की भाषा में बोले तो .. सरासर चीटिंग है।

" बाट जे पूछेला बटोहिया, बहंगी केकरा के जाय
तू तो आन्हर होवे रे बटोहिया, बहंगी छठ मैया के जाय "

हम रास्ते में मिलने वाले और आपके दउरा के बारे में टोकने वाले को अँधा हो जाने तक का श्राप (?) दे दिए गुस्सा में। पर आप हमीं लोगों को धत्ता बता कर बेवकूफ़ बना दिए।
आप की गलती नहीं शायद .. है ना प्रभु !? हमलोग आप से मांगते भी तो यही सब है ना ? बेटा, पोता, .. जो हमारा तथाकथित वंश-बेल बढ़ाए और तथाकथित मोक्ष प्राप्ति का कारण बने, फिर उसका साल-दर-साल "पास" होना .. उ (वो) भी अच्छे 'नंबर' से ताकि अच्छी नौकरी मिल सके .. आई ए एस, आई पी एस, डॉक्टर, इंजिनियर बन सके, ना तो कौनो ( कोई भी ) सरकारी नौकरी मिल जाए, ऊपरी कमाई और मन लायक जगह में "पोस्टिंग" हो तो सोना में सुहागा .. और किस्मत फूट जाए तो कोई 'प्राइवेट' नौकरी ही सही ताकि कमा-खा सके ताकि दहेज़ विरोधी अधिनियम होने के बावजूद भी दहेज़ ले-दे के शादी-विवाह हो सके। उसके बाद नौकरी की कमाई के मुताबिक़ मोटरसाइकिल, कार, फ्लैट, इत्यादि खरीद सके। कोई केस-मुकदमा चल रहा हो तो हम गलत हो कर भी जीत जाएँ। जितना बड़ा "डील" , उतना बड़ा "दउरा" और उतनी ही ज्यादा "सूप" की गिनती। अब डील बड़ा हो तो कभी-कभी चाँदी-सोना के सूप में भी अरग (अर्ध्य) देते हैं ना हम लोग आपको। है ना!?

" रुनकी-झुनकी बेटी मांगीला, पढ़ल-पण्डितवा दमाद, हे दीनानाथ ! दर्शन दिहिं ना अपन हे दीनानाथ "

एक तरफ हम लोग गा-गाकर बेटी-दामाद मांगते रह गए आपसे और आप रूस, अरूबा, हांगकांग जैसे देश और पुर्तगाल, यूक्रेन, एस्टोनिया जैसे शहर में नर-नारी में नारी यानि बेटी का अनुपात ज्यादा दे दिए। और तो और .. कम-से-कम धर्म वाले यूरोपी देश - बेलारूस में भी।
और .. इतना ज्यादा आपका पूजा-पाठ करने पर भी भारत में आप दिन पर दिन अनुपात घटाते जा रहे हैं। 2011 में जो 1000 में 940 नारी/लड़की का अनुपात था , वह 2017 में घटता हुआ 1000/896 हो गया है। हरियाण में तो 1000/833 है। वैसे हम इतने ज्ञानी नहीं हैं , ये सब सरकारी आंकड़े बोलते हैं। और हाँ .. आजकल 'गूगल' नाम के ज्ञानी के पास ये सब सारी जानकारी उपलब्ध है।

" ऊ जे केरवा जे फरेला घबद से,
 ओह पर सुगा मेड़राए
  मरबो रे सुगवा धनुख से,
  सुगा गिरे मुरझाए
  ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से
  आदित होइहें ना सहाय "

इतना मेहनत करते हैं हमलोग कि धनुष से तोते को मार-मार के गिराते रहते हैं ताकि वो आपका प्रसाद वाला केला, नारियल ( इसमें थोड़ा शक है कि तोता नारियल में चोंच मार पाता भी होगा कि नहीं ) , अमरुद, शरीफा, सेब .. सब जूठा ना हो। इस चक्कर में उसकी मादा - बेचारी तोती जुदाई में रोती रहती है। वैसे भी .. हमारे समाज में विधवा की क्या दुर्दशा है, आपको तो पता ही होगा। है ना !?
आपका तो हम लोगों ने मानवीकरण .. ओह! .. सॉरी .. भगवानिकरण कर रखा है। सुना है कि आप का एक रथ है, जिसको सात घोड़े मिलकर दौड़ाते है आपको। है ना !?
आप एक फर्स्ट क्लास मँहगी 'ए सी कार' क्यों नहीं खरीद लेते ? दिन भर गर्मी में खुद बेहाल होते ही हैं और हमलोगों को भी करते रहते हैं।
एक बात तो है कि अगर आप नहीं पूजे जाएंगे तो फिर बुद्धिजीवी लोग सब सिर पर दउरा लिए ,अर्ध्य देते हुए तरह-तरह की भाव-भंगिमाओं में  अपनी सेल्फियां सोशल मिडिया पर कैसे चमकायेंगे भला! है ना !?
फिर मीडिया वाले सप्ताह भर या उस से ज्यादा अपना 'टी आर पी' कैसे बढ़ाएंगे भला !? है ना !?
जाने दीजिए .. दुनिया जैसे चल रही है, चलने दीजिए। हमको और आपको क्या करना भला !?
है ना !?
जय राम जी की प्रभु !!!