अपने सुहाग की दीर्घायु और
मंगलकामना करती हुई
तीज-त्योहार मनाने के बहाने
सम्प्रदाय विशेष की सारी सुहागिनें
निभाती हैं पुरखों की परम्परा और
विज्ञान की मानें तो बस अंधपरम्परा
साथ ही चौबीस वर्षों से
लाख रोकने पर भी
इसी समाज का एक अंग -
मेरी धर्मपत्नी भी मेरी बातों
और सोचों की कर के अवहेलना ...
मीठे-सोंधे मावा-सी अपनी
अनकही कई बातें जो
अपने मन की पूड़ी में बंद कर
गढ़तीं हैं यथार्थ की गुझिया
और अपनी दिनचर्या की
मीठी-मीठी लोइयों को
ससुराल की दिनचर्या के
काठ वाले साँचे में ढालने जैसी
थापती हैं साँचे पर ठेकुआ
कभी गर्म तवे या फिर कढ़ाई से
या कभी-कभी पकौड़ियाँ
या मछली तलते समय
गर्म तेल के छींटों से
अपनी हथेलियों या बाहों पर
कलाई से केहुनी तक उग आये
अनचाहे जले के कई दागों को
मेंहदी रच-रच के छुपाती हैं
कर के तीज-त्योहार का बहाना
सोचती हुई कि कभी-कभार ही सही
तीज-त्योहार में ही सही
साल भर संभाल कर रखे हुए संदूकों
या फिर ड्रेसिंग-टेबल के दराजों से
निकाले और खोले गए
शादी की सिन्दूरी रात वाले
काठ के सिंधोरे की तरह
काश ! ... कभी-कभार ही सही
निकाल पातीं ... खोल पातीं ...
सबके सामने बस बेधड़क
मन का कुछ अनकहा-अनजिया सपना
पर हर साल ... एक ही सवाल ...
अपनी धर्मपत्नी से तीज की शाम
आप सबों से भी है इस साल कि ...
"बचपन में होश सँभालने के बाद से
वैसे तो मेरे जन्म के पहले से ही
अपनी शादी वाले साल ही से
अम्मा हर साल तीज "सहती" थीं
आज पिछले बारह सालों से
काट रहीं हैं विधवा की दिनचर्या
क्यों भला !???...
कोई भी बतलाओ ना जरा !!!!!!!! ...
पड़ोस की "शबनम" चाची आज भी तो
खुश हैं पापा के उम्र के खान चाचा के साथ
बिना किसी भी साल तीज किये हुए
और वो "मारिया" आँटी भी तो
जो लगभग हैं अम्मा के उम्र की
जॉन अंकल के साथ जा रहीं चर्च
बिना नागा हर रविवार .. लगातार
बिना मनाए कभी भी तीज-त्योहार
क्यों भला !???...
कोई भी बतलाओ ना जरा !!!!!!!! ...
चलते-चलते मुझ बेवकूफ़ का
और एक सवाल पुरखों से कि
क्यों नहीं बनाए आपने एक भी
परम्परा पूरे वर्ष भर में ... जिसमें
पुरुष-पति भी अपनी नारी-पत्नी की
दीर्घायु और मंगलकामना की ख़ातिर
करता हो कोई तीज-त्योहार !??? ...
मंगलकामना करती हुई
तीज-त्योहार मनाने के बहाने
सम्प्रदाय विशेष की सारी सुहागिनें
निभाती हैं पुरखों की परम्परा और
विज्ञान की मानें तो बस अंधपरम्परा
साथ ही चौबीस वर्षों से
लाख रोकने पर भी
इसी समाज का एक अंग -
मेरी धर्मपत्नी भी मेरी बातों
और सोचों की कर के अवहेलना ...
मीठे-सोंधे मावा-सी अपनी
अनकही कई बातें जो
अपने मन की पूड़ी में बंद कर
गढ़तीं हैं यथार्थ की गुझिया
और अपनी दिनचर्या की
मीठी-मीठी लोइयों को
ससुराल की दिनचर्या के
काठ वाले साँचे में ढालने जैसी
थापती हैं साँचे पर ठेकुआ
कभी गर्म तवे या फिर कढ़ाई से
या कभी-कभी पकौड़ियाँ
या मछली तलते समय
गर्म तेल के छींटों से
अपनी हथेलियों या बाहों पर
कलाई से केहुनी तक उग आये
अनचाहे जले के कई दागों को
मेंहदी रच-रच के छुपाती हैं
कर के तीज-त्योहार का बहाना
सोचती हुई कि कभी-कभार ही सही
तीज-त्योहार में ही सही
साल भर संभाल कर रखे हुए संदूकों
या फिर ड्रेसिंग-टेबल के दराजों से
निकाले और खोले गए
शादी की सिन्दूरी रात वाले
काठ के सिंधोरे की तरह
काश ! ... कभी-कभार ही सही
निकाल पातीं ... खोल पातीं ...
सबके सामने बस बेधड़क
मन का कुछ अनकहा-अनजिया सपना
पर हर साल ... एक ही सवाल ...
अपनी धर्मपत्नी से तीज की शाम
आप सबों से भी है इस साल कि ...
"बचपन में होश सँभालने के बाद से
वैसे तो मेरे जन्म के पहले से ही
अपनी शादी वाले साल ही से
अम्मा हर साल तीज "सहती" थीं
आज पिछले बारह सालों से
काट रहीं हैं विधवा की दिनचर्या
क्यों भला !???...
कोई भी बतलाओ ना जरा !!!!!!!! ...
पड़ोस की "शबनम" चाची आज भी तो
खुश हैं पापा के उम्र के खान चाचा के साथ
बिना किसी भी साल तीज किये हुए
और वो "मारिया" आँटी भी तो
जो लगभग हैं अम्मा के उम्र की
जॉन अंकल के साथ जा रहीं चर्च
बिना नागा हर रविवार .. लगातार
बिना मनाए कभी भी तीज-त्योहार
क्यों भला !???...
कोई भी बतलाओ ना जरा !!!!!!!! ...
चलते-चलते मुझ बेवकूफ़ का
और एक सवाल पुरखों से कि
क्यों नहीं बनाए आपने एक भी
परम्परा पूरे वर्ष भर में ... जिसमें
पुरुष-पति भी अपनी नारी-पत्नी की
दीर्घायु और मंगलकामना की ख़ातिर
करता हो कोई तीज-त्योहार !??? ...