'बिस्कुट' .. हाँ, हाँ, .. साहिबान ...
याद आयी अभी-अभी और भी एक बात ये,
होते ही ज़िक्र अभी 'बिस्कुट' के,
महज दशमलव पाँच-पाँच प्रतिशत यानी
मात्र पाँच-पाँच ग्राम हर एक किलो में,
गोया कि .. आधे-आधे प्रतिशत 'मल्टीग्रेन' वाले,
'बिस्कुट' को पहना कर किसी मुखौटे की तरह
लुभावने रंगीन 'रैपर' 'फाइव ग्रेन बिस्कुट' वाले
किसी 'मल्टीनेशनल कम्पनी' के दावे
या फिर वादे की मानिंद भी आप हैं लगते,
'कैमरे' की ओर जब-जब मुँह उठाए, अपने दाँतें निपोड़े,
अदाओं भरी अपनी-अपनी 'सेल्फ़ियों' में
या सामने किसी के हाथ में मुँह फाड़े कैमरे के आगे,
रोपते हुए किसी पौधे को या बस .. केवल थामे हुए,
अकेले या फिर किसी जनसमूह की भीड़ में
पौधे पकड़े हुए किसी हाथ की कोहनी भर पकड़े हुए,
दावा या दिखावा करते हुए एक पर्यावरण प्रेमी होने के
बस यूँ तो हर एक पर्यावरण दिवस पे .. बस यूँ ही ...
या फिर यूँ कहें कि कभी-कभी तो नज़र हैं आते
आप मानिंद एक मशहूर पुराने 'फ़िल्मी' गीत के,
इकबाल हुसैन उर्फ़ इकबाल अहमद मसऊदी
उर्फ़ "हसरत जयपुरी" साहब के लिखे
"बदन पे सितारे लपेटे हुए" के तर्ज़ पे
स्वास्थ्यवर्द्धक व क़ीमती 'ग्रेन्स' चंद चिपके हुए,
आम मैदे या गेहूँ के आटे से बने
किसी 'मल्टीग्रेन ब्रांडेड ब्रेड' के
केवल ऊपर-ऊपर ही बदन पे .. शायद ...
साहिबान !!! ...
यूँ तो .. कोई नित्य है बन रहा हम में से
और बना भी रहा नित्य ही कोई हम में से
एक-दूसरे को वैशाखनंदन समय-समय पे।
वैसे भी भला .. अब बनाना है क्या ..
हम तो जन्मजात ही हैं
वैशाखनंदन पैदा हुए .. शायद ...
अक़्सर .. तभी तो .. विज्ञापनों में
तमाम 'कम्पनियाँ' पुरुष 'अंडरगारमेंट्स' के,
'फिट' पहन कर 'हिट' होने के नुस्ख़े
दिन-रात बतला-बतला के
बेचते हैं हमें नित्य उत्पाद अपने।
वैसे भी तो .. होता है शायद ..
पहनना कम ही जिन्हें,
उनके 'लोगो' उकेरे हुए 'अंडरगारमेंट्स' के,
सीने और कमर के पास के,
आपकी 'सेल्फ़ियों' की तरह ही तो
बस .. लोगों को दर्शन होते हैं कराने .. शायद ...