Monday, August 19, 2024

छड यार ! ...

जला चुके साल-दर-साल, बारम्बार, मुहल्ले-मैदानों में, पुतलों को रावण के, था वो व्यभिचारी।

पर है अब, बारी-बारी से, निर्मम बलात्कारियों व नृशंस हत्यारों को, जबरन ज़िंदा जलाने की बारी।

वर्ना, होंगी आज नहीं तो कल, सुर्ख़ियों में ख़बरों की, माँ, बहन, बेटी या बीवी, हमारी या तुम्हारी।

यूँ तो आज बाज़ारों से राखियाँ बिकेंगी, खरीदी जाएंगी, बाँधी-बंधवाई भी जायेंगी, हर तरफ़ है ख़ास तैयारी।


मुर्दों के ठिकानों को, अक़्सर सजदा करने वाले, पर बुतपरस्ती के कट्टर दुश्मन।

घर नहीं "राहुल आनंद" का, जलाया है उन्होंने गीत- संगीत, नृत्य- साहित्य का चमन।

नालन्दा जैसी धरोहर व विरासत को हमारी, राख करने वाले, बलवाई बख्तियार खिलजी 

और लुटेरे चंगेज़ का कॉकटेल बहता रगों में उनकी,भाता ही नहीं उन्हें दुनिया का अमन।