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Wednesday, June 2, 2021

'मॉकटेल'-सी नाक ...

अक़्सर ...

बार-बार

हालात की

राख से

मंजे गए,

समय के 

बर्तन में,

पश्चाताप के

ताप से

पके-अधपके 

देह के

बुढ़ापे पर, 

लगाती हुई

पक्की मुहर,

पनप ही

आती हैं

अनायास

अनचाही, 

अनगिनत

झुर्रियाँ काली मिर्च-सी।


ऐसे में भी

ना जाने क्यों ...

लहसुन की 

पकती पत्तियों-से

पियराए, कुम्हलाये,

मुखड़े पर भी

छा जाती है

पुदीने की पत्तियों-सी

झुर्रीदार हरियाली,

जब कभी भी

चाही-अनचाही आती हैं 

यादें तुम्हारी पगी

नेह में तुम्हारे।

तुम्हारी .. वो .. 

कुछ सुतवां और 

कुछ मंगोली के

'मॉकटेल'-सी नाक, ..

तुलसी मंजरी-सी

सोंधी साँसें और ..

नाक की लौंग भी,

ठीक गर्म मसाले वाले 

लौंग के जैसे।


और यादें भी ना ! .. 

मानो जैसे ..

पिघलते हैं,

पसरते हैं,

हौले-हौले

जिह्वा पर 

सुगंधित और

स्वादिष्ट ज़ायक़े

बनकर अक़्सर,

पोपले 

मुँह में

दरकने पर,

अल्प दंतयुक्त

या दंतहीन

मसूड़ों के जाँते में,

हरी पोटली वाली

तिजोरी में बंद

नन्हें-नन्हें,

काले-काले दाने,

छोटी इलायची के .. बस यूँ ही ...


【 माॅकटेल - Mocktail - एकाधिक नशारहित  पेय-मिश्रण। - -  (मिश्रित रूप के अर्थ में) 】.