Wednesday, July 17, 2019

वहम

एक किसी दिन
आधी रात को
एक अजनबी शहर से
अपने शहर और फिर
शहर से घर तक की
दूरी तय करते हुए
सारे रास्ते गोलार्द्ध चाँद
आकाश के गोद से
नन्हे बच्चे-सा उचकता
मुलुर-मुलुर ताकता
एक सवाल मानो पूछता रहा
अनवरत .... कि ....
मेरे रौशन पक्ष केवल देखकर
एक वहम क्यों पाल लेते हो भला
कभी ईद का बहाना तो कभी
करवा चौथ मान लेते हो क्यों भला
मैं तो सदियों से जैसा था
रोज वही रहता हूँ
उजाले के साथ अँधेरे हिस्से को भी
मेरे किस्से से जोड़ो तो जरा
रोज ही मुकम्मल रहता हूँ मैं
मैं तो वही रहता हूँ ...
तुम ही वहम पाल लेते हो ...

Sunday, July 14, 2019

अहसासों के झांझ

सुनो ना !
सोचा है आज
तुम तनिक अपने
मन की राई से
अहसासों के झांझ वाले
प्रेम का तेल
बहने दो ना जरा ...

बनाना चाहता हूँ
हमारे प्रेमसिक्त
तीते और नमकीन
नोंक-झोंक के
संतुलित मात्रा में
लुभावनी खुशबू से
तर-ब-तर मसाले
में लिपटा कर
बनाने की मनभावनी
प्रक्रिया वाले
चाहत की धूप में
सीझकर तैयार होते
चटपटे अचार
हमारे संबंधों के

जिसे सहेजना है
ताउम्र ... अनवरत
जीवन के फीकापन को
स्वाद देने के लिए
मेरी सोच के
मर्तबान में ...

सुनो ना !!! ....