मेरे
अंतर्मन का
शलभ ..
उदासियों की
अग्निशिखा पर,
झुलस जाने की
नियति लिए
मंडराता है,
जब कभी भी
एकाकीपन के
अँधियारे में।
तभी त्वरित
वसंती सवेरा-सा
तुम्हारे
पास होने का
अंतर्बोध भर ही,
करता है प्रक्षालन
शलभ की
नियति का
उमंगों के
फूलों वाले
मोद के मकरंद से।
बस ...
पल भर में
बन जाता है,
अनायास ही
धूसर
बदरंग-सा
अंतर्मन का
शलभ ..
अंतर्मन की
चटक रंगीन
शोख़ तितलियों में।
अंतर्मन का
शलभ ..
उदासियों की
अग्निशिखा पर,
झुलस जाने की
नियति लिए
मंडराता है,
जब कभी भी
एकाकीपन के
अँधियारे में।
तभी त्वरित
वसंती सवेरा-सा
तुम्हारे
पास होने का
अंतर्बोध भर ही,
करता है प्रक्षालन
शलभ की
नियति का
उमंगों के
फूलों वाले
मोद के मकरंद से।
बस ...
पल भर में
बन जाता है,
अनायास ही
धूसर
बदरंग-सा
अंतर्मन का
शलभ ..
अंतर्मन की
चटक रंगीन
शोख़ तितलियों में।