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Wednesday, September 4, 2024

शिक्षक दिवस के बहाने ...

 


सुना है, कि आज शिक्षक दिवस है। 

तो ऐसे पावन अवसर पर हमारे समाज के सभी सवैतनिक एवं अवैतनिक शिक्षकों को श्रद्धापूर्वक सादर नमन। परन्तु उन धर्म गुरुओं को तो कतई नहीं, जो हमारे समाज में सदियों से भावी पीढ़ियों के सामने अंधविश्वास एवं पाखण्ड परोसते आ रहे  हैं।

यूँ तो सवैतनिक गुरुओं को हम हमारे विद्यालयों, महाविद्यालयों व अन्य शिक्षण संस्थानों में पाते हैं, परन्तु अवैतनिक गुरु तो हमारे जीवन में पग-पग पर, पल-पल में मिलते हैं। 

चाहे वो अभिभावक के रूप में हों, सगे-सम्बन्धियों के रूप में हों, सखा-बंधुओं के रूप में हों या प्रेमी-प्रेमिका के रूप में या फिर शत्रु के रूप में।

वैसे तो हम इन दिवसों के पक्षधर कतई नहीं, क्योंकि जो हमारे जीवन की हमारी दिनचर्या में पग-पग पर, पल-पल में शामिल हैं, उन्हें एक दिवस की हद में बाँधना उचित नहीं है .. शायद ...

ख़ैर ! .. ऐसे अवसर पर हम बचपन से कबीर के इस दोहे को दोहराते आएँ हैं, कि ...

" गुरु गोविंद दोउ खङे, काके लागूं पांय,

  बलिहारी गुरु आप की, गोविंद दियौ बताय। "

परन्तु कबीर के उस दोहे से हमें हमेशा वंचित रखा गया, जिसमें कबीर आगे कहते हैं, कि ...

 " गुरु गोविन्द दोऊ एक हैं, दुजा सब आकार।

    आपा मैटैं हरि भजैं,   तब पावैं दीदार। "

पुनः सभी सवैतनिक एवं अवैतनिक शिक्षकों को श्रद्धापूर्वक सादर नमन .. बस यूँ ही ...

Sunday, April 17, 2022

चौपाई - जो समझ आयी .. बस यूँ ही ...


आराध्यों को अपने-अपने यूँ तो श्रद्धा सुमन,

करने के लिए अर्पण ज्ञानियों ने थी बतलायी।

श्रद्धा भूल बैठे हैं हम, सुमन ही याद रह पायी,

सदियों से सुमनों की तभी तो है शामत आयी .. शायद ...




वजह चिल्लाने की अज्ञात, ऊहापोह भी, क्या बहरे हैं "उनके वाले"?
प्रश्न अनुत्तरित जोह रहा बाट, आज भी कबीर का सैकड़ों सालों से।
खड़ा कर रहे अब तुम भी एक और प्रश्न, 'लाउडस्पीकर' बाँट-२ के,
कबीर भौंचक सोच रहे, बहरे हो गए साहिब ! अब "तुम्हारे वाले"?