@(१)
यूँ तो पता है मुझे ...
तुम्हें पसंद है
हरसिंगार बहुत
पर हर शाम
बैठते हैं हम-तुम
झुरमुटों के पास
बोगनविलिया के
क्योंकि ये बेचारे
दख़ल नहीं देते
तुम्हारे तन-मन की
सोंधी सुगन्धों में ...
@(२)
भावनाओं की
मीठी चाय से भरी
तुम्हारे मन के कुल्हड़ में
अपनापन की नमी से
भींगा हुआ मेरा मन
मेरे ही तन से दूर .... ठीक ...
चाय में अनायास घुले
आधे गीले और ...
हाथ में बचे आधे बिस्कुट-सा
रवा-रवा कर घुलता
तुम्हारी भावनाओं में तैरता
आहिस्ता-आहिस्ता ...
बैठता जा रहा
तुम्हारे मन की तली में ...
ग़ौर से ... जरा देखो ना !!!...
@(३)
मन के ओसारे को
आज फ़ुर्सत के
पलों से बुहार
मौन की मिट्टी से
लीप-पोत कर
अहसासों से तुम्हारे
भरे पलों की
रंगोली सजायी है
सुकून का दीया
जलाने तुम मेरे
मन के ओसारे तक
बस ... आ जाना ...
यूँ तो पता है मुझे ...
तुम्हें पसंद है
हरसिंगार बहुत
पर हर शाम
बैठते हैं हम-तुम
झुरमुटों के पास
बोगनविलिया के
क्योंकि ये बेचारे
दख़ल नहीं देते
तुम्हारे तन-मन की
सोंधी सुगन्धों में ...
@(२)
भावनाओं की
मीठी चाय से भरी
तुम्हारे मन के कुल्हड़ में
अपनापन की नमी से
भींगा हुआ मेरा मन
मेरे ही तन से दूर .... ठीक ...
चाय में अनायास घुले
आधे गीले और ...
हाथ में बचे आधे बिस्कुट-सा
रवा-रवा कर घुलता
तुम्हारी भावनाओं में तैरता
आहिस्ता-आहिस्ता ...
बैठता जा रहा
तुम्हारे मन की तली में ...
ग़ौर से ... जरा देखो ना !!!...
@(३)
मन के ओसारे को
आज फ़ुर्सत के
पलों से बुहार
मौन की मिट्टी से
लीप-पोत कर
अहसासों से तुम्हारे
भरे पलों की
रंगोली सजायी है
सुकून का दीया
जलाने तुम मेरे
मन के ओसारे तक
बस ... आ जाना ...