अक़्सर जीते हैं
आए दिन
हम कुछ
मुहावरों का सच,
मसलन ....
'गिरगिट का रंग',
'रंगा सियार'
'हाथी के दाँत',
'दो मुँहा साँप'
'आस्तीन और साँप',
'आँत की माप'
वग़ैरह-वग़ैरह ..
वैसे ये सारे
जानवर तो
हैं बस बदनाम,
बस यूँ ही ...
जानवरों की
हर फ़ितरत ने
इंसानों से
आज मात
है खायी
और फिर ..
बढ़ भी गई है
अब शायद
बावन हाथ वाले
आँत की लम्बाई।
ऐसे में लगता नहीं
अब क्या कि ...
करना होगा हर
मुहावरे में परिवर्तन,
हमारे संविधान-सा
यथोचित संशोधन ? ...