Thursday, February 8, 2024

पुंश्चली .. (३१) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)


प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- 
"पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (३०)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (३१) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ...  :-

गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-

रेशमा और उसकी टोली की सभी किन्नरों के मन्टू की टोटो गाड़ी में बैठते ही, मन्टू दूसरे 'नर्सिंग होम' की ओर तेजी से बढ़ चला है ...

गतांक के आगे :-

जैसा कि गतांक में हमलोगों ने देखा था, कि मन्टू को अपनी विपत्ति या दुःख-परेशानी को ज्यादा विस्तारित कर के .. मने .. बढ़ा-चढ़ा के किसी भी अपने या पराए के समक्ष परोस कर, उसके बदले में सहानुभूति पाकर आत्मसुख पाने की आदत नहीं है या यूँ कहें कि अपने दुःख से किसी को भी परेशान करने की या उस दुःख में शामिल करने की भी आदत नहीं रही है उसकी।

इसीलिए अभी के चिंताजनक माहौल से सभी का ध्यान भटकाने के लिए ही अभी-अभी .. उसने अपनी टोटो गाड़ी में 'एफ़ एम्' चालू कर दिया है। इस पर अभी कार्यक्रम - "आपकी फ़रमाइश" का प्रसारण चल रहा है और कुछ संगीत-गीत प्रेमियों की फ़रमाइश पर फ़िल्म- "आशिक़ी-२" का गाना .. अरिजीत सिंह द्वारा गाया हुआ .. उनका पहला लोकप्रिय फ़िल्मी गाना बज रहा है - "हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते ~ तेरे बिना क्या वजूद मेरा ~ तुझसे जुदा गर हो जाएंगे तो ~ ख़ुद से ही हो जाएंगे जुदा ~ क्यूँकि तुम ही हो ~ अब तुम ही हो ~ ज़िन्दगी अब तुम ही हो ~ चैन भी ~ मेरा दर्द भी ~ मेरी आशिक़ी अब तुम ही हो ~"

'एफ़ एम्' के चालू होते ही टोटो का बोझिल-सा माहौल अब परिवर्तित हो चुका है। चल रहे गाने की लय-धुन और 'लिरिक्स' पर मन्टू और रेशमा को छोड़ कर .. उसकी टोली की लगभग सारी सदस्याओं की प्रतिक्रियाएँ परिलक्षित हो रही है .. रेशमा को भी और कुछ-कुछ मन्टू को भी .. 'रियर मिरर' से .. रमा और सुषमा मद्धिम-मद्धिम गुनगुना रही हैं .. रेखा व जया अपनी-अपनी बायीं हथेली को अर्द्धमुट्ठी-सी मोड़कर कर .. उसकी मुड़ी हुई तर्जनी व मध्यमा के मध्य वाले रिक्त स्थान पर अपनी दायीं तर्जनी की थपकी दे-देकर .. बजते हुए गाने की धुन का साथ दे रही हैं .. जिससे आवाज़ तो यूँ कम निकल पा रही है, मानो .. प्रायः जब कभी प्रसिद्ध लोग किसी समारोह में शालिनता के साथ अपने अंदाज़ में कुछ इस तरह ताली बजाते हैं, कि .. आवाज़ तो नहीं निकलती, पर .. उनकी भाव भंगिमा से ही लोगबाग़ को सब समझना पड़ता है। हेमा बिना आवाज़ निकाले .. किसी 'लिप्सिंग' करते कलाकार की तरह केवल अपने होठों को हिलाने के साथ-साथ चेहरे पर 'लिरिक्स' के अनुसार भाव भी लाने का प्रयास कर रही है। साथ ही गर्दन की लचक के सहारे गाने की धुन पर अपनी मुंडी भी हिला रही है। फलस्वरूप .. मन्टू 'ड्राइविंग' करते हुए .. बीच-बीच में .. अपनी टोटो के 'रियर मिरर' से हेमा के दोनों कानों में लटके झुमकों का लयबद्ध हिलना स्पष्ट रूप से देख पा रहा है।  

उसे इस बात का संतोष हो रहा है, कि उसके 'एफ़ एम्' चालू करने भर से .. कुछ देर पहले तक के उसके निजी ऊहापोह से ऊपजी सभी की उदासी व मायूसी .. यूँ ही चुटकी में तिरोहित हो गयी है। ये सोच कर उसके चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान अचानक मानो ..  किसी बाग़ में घुस आयी किसी तितली की तरह तारी हो गयी है।

सच में .. गीत-संगीत और उसके बोल-शब्दों में एक अदृश्य चुम्बकीय सम्मोहन होता है, जो मन को अपनी तरावट से सींचने का काम करता है, मानो .. किसी तेलहन के सूखे बीजों में छुपे हुए अदृश्य तेल .. जो स्निग्‍धकारी स्नेहक बन कर तरावट प्रदान करते हैं। यूँ तो वैज्ञानिक शोधों से यह भी सिद्ध हो चुका है, कि संगीत के प्रभाव से गाय के दूध देने की क्षमता के साथ-साथ खेतों में खड़ी हरी-भरी फ़सलों की पैदावार भी बढ़ जाती हैं। स्वाभाविक है कि ..पशुओं-पादपों पर असरकारी संगीत, उन सभी से भी कहीं ज्यादा ही .. बुद्धिजीवी और संवेदनशील प्राणी- इंसानों पर असर क्यों नहीं दिखलाएगा भला !? .. बल्कि इसी संगीत पर लगी पाबंदी से ही, संगीत की कमी के कारणवश आतंकी मनःस्थिति के साथ-साथ .. आतंकी सोच, आतंकी समूह, आतंकी संगठन, आतंकी राजतंत्र, आतंकी विनाश की उत्पत्ति होती होगी .. शायद ...

इसी बीच गाने की आवाज़ के शोर के कारण .. रेशमा लगभग चिल्लाते हुए मन्टू से मनुहार कर रही है।

रेशमा - " काम-धंधे की तरह तनिक पेट-पूजा का भी ख़्याल रखिएगा मन्टू भईया .."

मन्टू - " हाँ, हाँ .. जरूर .. पर कहाँ करना है नाश्ता .. बतलाओ भी तो .."

रेशमा - " अभी तो हमलोग "मातृ सदन नर्सिंग होम" की ही ओर चल रहे हैं ना ? "

मन्टू - " हाँ .. तो ? "

रेशमा - " तो क्या ? .. रास्ते में कचहरी होते हुए ही तो गुजरना होगा ना ? .. वहीं पर कुछ खा लेंगे .."

मन्टू - " हाँ .. हाँ .. सही कह रही हो तुम .. वहाँ अच्छा ही मिलेगा .. ताजा और किफ़ायती भी .. "

रेशमा - " हर बार तो हमलोग वहीं खाते हैं सुबह में .. फिर आप भूल क्यों जाते हैं ? "

मन्टू - " तुम ही तो कभी 'चाइनीज' तो .. कभी 'साऊथ इंडियन' .. तो कभी 'रॉल' खाने के लिए इधर-उधर ले जाती हो तो .. पूछना पड़ता है हमको। "

रेशमा - " अच्छा !! .."

मन्टू - " और नहीं तो क्या ? .. हम अपने मन से कहीं भी टोटो रोक कर .. तुम्हारे मन को तोड़ना नहीं चाहते .. तुम मेरी ग्राहक हो ना ! .. तो ख़्याल रखना पड़ता है .. तुम्हारी ख़ुशी में ही तो हम सभी की ख़ुशी है रेशमा .."

रेशमा - " सो तो है .. पर हम कचहरी के पास खाने के लिए रुक कर गलत तो नहीं कर रहे ना मन्टू भईया ? "

मन्टू - " अरे ना, ना .. हम जैसे 'मिडिल क्लास' लोगों के लिए तो किसी भी शहर की कचहरी के प्राँगण में या उसके आसपास के होटलों में ही अच्छा नाश्ता, अच्छा दोपहर का भोजन, अच्छी मिठाईयाँ और अच्छी चाय भी मिलती है और सभी कुछ ताज़ी व किफ़ायती भी .. "

रेशमा - " सही बोल रहे हैं आप, आप ही से तो ये सब सीखे हैं हम .."

मन्टू - " और जब कभी भी शहर से बाहर जाना पड़े तो  .. किसी 'हाईवे' पर 'रोड' के किनारे स्थित उस ढाबे का खाना पक्का बढ़िया होगा, जिसके आगे 'ट्रक' और 'ट्रक ड्राइवरों' की हुजूम खड़ी हो और हाँ .. वहाँ पर भी .. काफ़ी किफ़ायती भी होते उनके खाने। "

रेशमा - " बिलकुल सही .. हमने भी इसे आजमाया है.."

मन्टू - " और कहीं भी .. मतलब शहर में हो या शहर से बाहर भी .. अगर होटल या 'रेस्टोरेंट' किसी पगड़ी वाले का हो .. मने .. किसी सरदार जी का हो तो उनके खाने भी स्वादिष्ट और लाजवाब होते हैं। " 

रेशमा - " सही .. सोलह आने सच .. और .. एक बात और भी गौर किया ही होगा आपने कि .. किसी भी शहर में .. उसके कल-कारखानों में .. वहाँ अनेक राज्यों से आये हुए काम काम करने वाले प्रवासित लोगों के कारण ही शायद देश के लगभग सभी राज्यों के विभीन्न प्रकार के व्यंजनों की उपलब्धता रहती है। " 

मन्टू - " इतना ही नहीं .. वैसे शहरों की तो ...संस्कृति में भी प्रवासित लोगों के कारण बहुत हद तक सकारात्मक रूप से इंद्रधनुषी बदलाव देखने के लिए मिलते हैं .. है कि नहीं ? "

【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (३२) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】