हो जाती हैं नम चश्म हमारी सुनकर बारहा,
जब कभी करतूतें तुम्हारी चश्मदीद कहते हैं .. बस यूँ ही ...
हैं हैवानियत की हदें पार करने की यूँ चर्चा,
ऐसे भी भला तुम जैसे क्या फ़रीद बनते हैं?.. बस यूँ ही ...
हैं मुर्दों के ख़बरी आँकड़े, पर आहों के कहाँ,
हैं रहते महफ़ूज़ मीर सारे, बस मुरीद मरते हैं .. बस यूँ ही ...
तमाम कत्लेआम भी कहाँ थका पाते भला,
लाख तुम्हें तमाम फ़लसफ़ी ताकीद करते हैं .. बस यूँ ही ...
दरिंदगी की दरयाफ़्त भी भला क्या करना,
दया की दिल में तेरे तनिक उम्मीद करते हैं .. बस यूँ ही ...