(१)#
तुम साँकल बन
दरवाज़े पर
स्पंदनहीन
लटकती रहना
मैं बन झोंका
पुरवाईया का
स्पंदित करने
आऊँगा...
(२)#
चलो .... माना
है तुम्हारी तमन्ना
चाँद पाने की ...
बस पा ही लो !!!
रोका किसने है ...
हमारा क्या है
मिल ही जाएंगे
अतित के किसी
झुरमुट में
हम जुग्नू जो हैं ...
(३)#
मन्दिर की
सीढ़ियों पर
अक़्सर उतारे
पास-पास
तुम्हारे-हमारे
चप्पलों के बीच
अनजाने ही सही
किसी अज़नबी का
चप्पल का होना भी
ना जाने क्यों
मन को मेरे
मन की दूरी का ....
अहसास कराते हैं...
तुम साँकल बन
दरवाज़े पर
स्पंदनहीन
लटकती रहना
मैं बन झोंका
पुरवाईया का
स्पंदित करने
आऊँगा...
(२)#
चलो .... माना
है तुम्हारी तमन्ना
चाँद पाने की ...
बस पा ही लो !!!
रोका किसने है ...
हमारा क्या है
मिल ही जाएंगे
अतित के किसी
झुरमुट में
हम जुग्नू जो हैं ...
(३)#
मन्दिर की
सीढ़ियों पर
अक़्सर उतारे
पास-पास
तुम्हारे-हमारे
चप्पलों के बीच
अनजाने ही सही
किसी अज़नबी का
चप्पल का होना भी
ना जाने क्यों
मन को मेरे
मन की दूरी का ....
अहसास कराते हैं...