(1)@
साहिब !
आप सूरज की
सभी किरणें
मुट्ठी में अपनी
समेट लेने की
ललक ओढ़े
जीते हैं ...
और ...हम हैं कि
चुटकी भर
नमक की तरह
ओसारे के
बदन भर
धूप में ही
गर्माहट चख लेते हैं ...
(2)@
यूँ तो रहते हैं लटके
सारे-सारे दिन बस्ती के
बुढ़े बरगद की शाखों पर
खामोश उलटे चमगादड़
पर बढ़ा देते हैं ना
रात होते हीं
तादाद में आसपास
अपनी चहलकदमियाँ .....
अब देखो ना !!
यादें भी ना तुम्हारी...
आजकल
चमगादड़ बन गईं हैं.....
(3)@
कई-कई कस्बों और
शहरों के किनारों को छूकर
अक़्सर मदमाने वाली
अल्हड़, मदमस्त नदी
कब जान पाती है भला
ताउम्र हो जाने वाली
बस किसी एक शहर की
किसी झील की फ़ितरत ...
तनिक बोलो ना !!!...
साहिब !
आप सूरज की
सभी किरणें
मुट्ठी में अपनी
समेट लेने की
ललक ओढ़े
जीते हैं ...
और ...हम हैं कि
चुटकी भर
नमक की तरह
ओसारे के
बदन भर
धूप में ही
गर्माहट चख लेते हैं ...
(2)@
यूँ तो रहते हैं लटके
सारे-सारे दिन बस्ती के
बुढ़े बरगद की शाखों पर
खामोश उलटे चमगादड़
पर बढ़ा देते हैं ना
रात होते हीं
तादाद में आसपास
अपनी चहलकदमियाँ .....
अब देखो ना !!
यादें भी ना तुम्हारी...
आजकल
चमगादड़ बन गईं हैं.....
(3)@
कई-कई कस्बों और
शहरों के किनारों को छूकर
अक़्सर मदमाने वाली
अल्हड़, मदमस्त नदी
कब जान पाती है भला
ताउम्र हो जाने वाली
बस किसी एक शहर की
किसी झील की फ़ितरत ...
तनिक बोलो ना !!!...