लॉकडाउन की इस अवधि में खंगाले गए धूल फांकते कुछ पुराने पीले पन्नों से :-
सच बोलना है ज़ुर्म यहाँ, यहाँ हुआ ये आज फ़तवा जारी है।
उम्मीद नहीं कि बचेगा बीमार, शायद ये अस्पताल सरकारी है
बच जाएगा पर, हर वो मुज़रिम जो नाबालिग बालात्कारी है।
तेरा गुमान बेमानी है ऐ दोस्त !, हर साँस क़ुदरत की उधारी है
डर से तोड़ा आज आईना हमने, चेहरे पर दिखी मक्कारी है।
लुट जाओगे तुम भी आज ना कल, लुटेरों के हाथों पहरेदारी है
दोष किस-किस को दूँ सुबोध, जब ज़ुर्म में मेरी भी हिस्सेदारी है।