शहर की
सरकारी
या निजी
पर लावारिस,
कई-कई
दीवारों के
'कैनवासों' पर,
कतारों में
उग आए
कंडों पर
अक़्सर ..
कंडे थापती,
मटमैली
लिबास में,
बसाती
गीले
गोबर के
बास से,
उन
औरतों की
उकेरी गयी,
किसी कुशल
शिल्पी की
'मॉडर्न आर्ट'-सी,
पाँचों ही
उँगलियों की
गहरी छाप-से ...
उग आए
हैं मानों ..
भँवर तुहारे
दोनों ही
गालों पर,
मेरे होठों की
छाप से
उगे हुए,
आवेग में
ली गयीं
हमारी
गहरी
चुंबनों से
और ..
उम्र के साथ
उग आयी
हैं शिकन भी,
सालों बाद
माथे पर
तुम्हारे,
हमारे
प्यार की
तहरीर बन कर,
बिंदी को
तब तुम्हारी,
बेशुमार
चूमने से .. बस यूँ ही ...