रंगों या सुगंधों से फूलों को तौलना भला क्या,
काश होता लेना फलों का ज़ायका ही जायज़ .. शायद ...
यूँ मार्फ़त फूलों के होता मिलन बारहा अपना,
पर डाली से फूल को जुदा करना है नाजायज़ .. शायद ...
धमाके, आग-धुआँ, क़त्लेआम और बलात्कार,
इंसानी शक्लों में हैं हैवानों-सी सदियों से रिवायत..शायद ...
बारूदी दहक में पसीजते मासूम आँखों से आँसू,
ये हैं भला यूँ भी कैसे तरक्क़ी पसंदों के क़वायद .. शायद ...
किसी की माँ या बहन या पत्नी होती है औरत,
बनने से पहले या बनने के बाद भी वो तवायफ़ .. शायद ...