आराध्यों को अपने-अपने यूँ तो श्रद्धा सुमन,
करने के लिए अर्पण ज्ञानियों ने थी बतलायी।
श्रद्धा भूल बैठे हैं हम, सुमन ही याद रह पायी,
सदियों से सुमनों की तभी तो है शामत आयी .. शायद ...
वजह चिल्लाने की अज्ञात, ऊहापोह भी, क्या बहरे हैं "उनके वाले"?
प्रश्न अनुत्तरित जोह रहा बाट, आज भी कबीर का सैकड़ों सालों से।
खड़ा कर रहे अब तुम भी एक और प्रश्न, 'लाउडस्पीकर' बाँट-२ के,
कबीर भौंचक सोच रहे, बहरे हो गए साहिब ! अब "तुम्हारे वाले"?