ऐसी ही अवांछित परिस्थितियों में स्वतः संगरोध ( Self Quarantine ) होते हुए गृह-अलगाव ( Home Isolation ) के दरम्यान अलग-थलग एक बिस्तर पर पड़े-पड़े आज की वर्तमान परिस्थितियों में भी लगभग 16वीं सदी के मध्य ( सन् 1532 ई ० ) से 17वीं सदी के आरम्भ ( सन् 1623 ई ० ) तक के कालखण्ड वाले तुलसीदास जी की पंक्तियों - "श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान । ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन॥" की तुलना में लगभग 14वीं सदी के अंत ( सन् 1398 ई ० ) से 15वीं सदी के अंत ( सन् 1494 ई ० ) तक के कालखण्ड वाले कबीर जी की निम्नलिखित पंक्तियाँ -"आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर । इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर।" कुछ ज़्यादा ही और उतनी ही प्रासंगिक लगती हैं, जितनी वे तत्कालीन परिस्थितियों में रहीं होंगीं। साथ ही आशा है कि आने वाले कालखण्डों में भी रहेंगीं .. शायद ...
लब्बोलुआब ये है कि हम कह सकते हैं कि आज इतने अरसे बाद आज की वर्तमान परिस्थितियों में भी प्रासंगिकता की कसौटी पर कबीर जी .. तुलसीदास जी, सूरदास जी, कालिदास जी या फिर वाल्मिकी जी से ज़्यादा खरे उतरते हैं .. यानि ज़्यादा प्रासंगिक हैं। कबीर जी की इन विशेषताओं से सहमति के लिए हमारा नास्तिक या आस्तिक होना कोई आवश्यक शर्त वाली बात तो नहीं ही होनी चाहिए .. बस यूँ ही ...
कबीर जी द्वारा किए गए तत्कालीन मानवीय समाज के तीन वर्गों - राजा , रंक और फ़कीर - के वर्गीकरण तो आज भी उतने ही सत्य और सार्थक लगते हैं। आज के अफ़रातफ़री वाले माहौल में जिन्हें स्वयं या उनके बीमार रिश्तेदारों को आवश्यकतानुसार चिकित्सा संबंधी मूलभूत सुविधाएँ , मसलन - अस्पतालों में बिस्तर , ऑक्सीजन सिलिंडर , आई सी यू ( ICU) की सुविधा या वेंटिलेटर समय रहते मिल जा रहे हैं ; उन सभी को राजा और जो सुविधा ना मिलने पर भटक रहे हैं , वे सभी रंक .. और जिन्हें इन सब की जानकारी तक भी नहीं कि भटकना कहाँ है , गुहार कहाँ लगाना है , वे सारे के सारे बेचारे हैं कबीर जी के फ़कीर। इस प्रकार ऐसी कारुणिक परिस्थितियों में भी कबीर जी के तीन प्रकार वाले सामाजिक वर्गीकरण आज प्रासंगिक जान पड़ते हैं और दूसरी तरफ हमारा (?) वर्तमान संविधान का अनुच्छेद चौदह वाला समानता का अधिकार मानो मुँह चिढ़ाता-सा जान पड़ता है .. शायद ...
इन्हीं जद्दोजहद के बीच कुछ लोग "आये है तो जायेंगे" के तर्ज़ पर जब चले जाते हैं तो टेलीविजन के पर्दे पर विभिन्न समाचार चैनलों के द्वारा किसी के नाम , पद और तस्वीर के साथ-साथ किसी-किसी की जीवनी और जीवन भर की उपलब्धियों की भी चर्चा की जाती है। वे सब लोग भी हुए कबीर जी के मतानुसार आज के राजा और जिनकी मौत के बाद लाशों की गिनती सैकड़ों या हजारों वाले आंकड़ों में सिमट कर रह जाती है , वे सब हुए कबीर जी के रंक और कुछ बेबस-लाचार जिनकी मौत को सरकारी आंकड़ों के मार्फ़त समाचार चैनलों में जगह भी नहीं मिल पाती , वे सब बेचारे सारे के सारे हैं कबीर जी के फ़कीर .. शायद ...
वहीं तुलसीदास जी अपनी पँक्तियों - "श्री रघुबीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषान। ते मतिमंद जे राम तजि भजहिं जाइ प्रभु आन।" के साथ तनिक भी वर्तमान की परिस्थितियों में प्रासंगिक नहीं लग रहे हैं। वैसे तो तत्कालीन सिंधु में तैरने वाले पत्थर का तो पता नहीं , पर आज के हालातों में दूर-दूर तक कोई तथाकथित श्रीयुक्त वीर किसी का तारणहार नहीं दिखता है। वैसे तो आज भी जो तैरते पत्थर दिखते हैं , वे सारे विशुद्ध पर सरल विज्ञान हैं , ना कि कोई चमत्कार। दूसरी तरफ़ ना ही कुम्भ मेला में तथाकथित मोक्षदायिनी स्नान की भीड़ की तरह समूह में भजन करने वाला या समूह में जुमा की नमाज़ पढ़ने वाला आज बुद्धिमान कहला रहा है और ना ही इन सब से इतर डॉक्टर, दवाई , परहेज़ या वैज्ञानिक चिकित्सिकिय उपकरण को भजने वाला यानि इस्तेमाल करने वाला मतिमंद कहला रहा है।
हुआ कुछ यूँ कि लगभग एक माह पहले मेरे कार्यालय में एक दिन एक सहकर्मी अपनी सर्दी-बुखार के लक्षण के कारण स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में स्वतः जाँच ( Antigen Covid Test ) करवाने पर कोरोना पॉजिटिव ( Corona Positive ) पाया गया। ( उन सभी बुद्धिजीवियों के हम अग्रिम क्षमाप्रार्थी हैं , जिन्हें इस तरह इस बतकही में पीछे भी और आगे भी धड़ल्ले से अंग्रेज़ी का प्रयोग किया जाना .. किसी तरह का घुसपैठ लगता हो या इस से उनकी संस्कृति हताहत होती हो या फिर मातृभाषा की तौहीन होती हो। कारण- अभी अपने दुर्बल-निर्बल शरीर में अवस्थित अवसादग्रस्त दिमाग़ पर जोर देकर हम ना तो इनका हिन्दी अनुवाद करने की स्थिति में हैं और ना ही गूगल पर खोजने के ) अगले ही दिन कार्यालय की तरफ से पटना के अच्छे जाँच केन्द्रों में से एक निजी जाँच केन्द्र से उपयुक्त कर्मचारियों को बुलवा कर कार्यालय-परिसर में ही हम सभी कार्यरत लोगों की जाँच ( RT-PCR Test = Real Time - Polymer Chain Reaction Test ) करवायी गयी , जिनकी रिपोर्ट नियमतः न्यूनतम चौबीस घन्टे बाद आनी थी। वैसे भी अपना मन आशंकित और भयभीत भी था , क्योंकि स्वयं को भी एक-दो दिनों से हल्का बुखार जैसा लग रहा था और सर्दी भी थी। इसके लिए Dolo 650 की गोली और Karvolplus का भाप ले रहे थे। इस जाँच ( RT-PCR Test ) के अगले दिन रविवार को या सोमवार तक रिपोर्ट आनी थी।
चूँकि इस जाँच के अगले दिन रविवार का दिन था , अतः सुबह की दिनचर्या निपटाते हुए नाश्ता कर के स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में टीका का पहला डोज़ लेने सुबह-सुबह सपत्नीक लगभग नौ-सवा नौ बजे पहुँच गए। वहाँ टीकाकरण के लिए आधार कार्ड की ज़ेरॉक्स कॉपी जमा कराने में कतार नदारद और धक्कामुक्की देख कर जमा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। एक घन्टे बाद कुछ भीड़ छंटने के बाद कुछ लोगों के साथ-साथ हम दोनों के आधार कार्ड की ज़ेरॉक्स कॉपी जमा की भी गईं तो .. कुछ ही देर बाद ही बहुत ही गैरजिम्मेदाराना तरीक़े से बाद में जमा किए गए हमारे आधार कार्ड की ज़ेरॉक्स कॉपी , जिस पर हमारा मोबाइल नम्बर भी लिखा हुआ था , जैसी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ को उठा कर केन्द्र के बाहर एक तरफ लावारिस की तरह उछाल दिया गया ; यह बोल कर कि अब वैक्सीन ( Vaccine ) का डोज़ ( Dose ) समाप्त हो गया है। बहुत ही कठिनाई से उस लावारिस ढेर से हमने अपने आधार कार्ड की ज़ेरॉक्स कॉपी चुन कर निकाल ली। डर लगता है कि किसी ग़लत इंसान के हाथों लगने पर वह इसका दुरुपयोग ना कर ले कहीं। ऐसे में दिखा कि उसी स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर जाँच करवाने वालों की संख्या कम थी और स्वयं में एक-दो दिनों से सर्दी-बुखार के लक्षण के अलावा एक दिन पहले कराए गए जाँच ( RT-PCR Test ) की रिपोर्ट आने में नियमानुसार विलम्ब भी था। तो .. फ़ौरन वहाँ के नियमानुसार दो-दो रुपए में हम दोनों ने एक खिड़की पर अपना-अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर अपने-अपने मिले हुए क्रमानुसार दूसरी अन्य खिड़की पर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे , जहाँ हमारी जाँच ( Antigen Covid Test ) होनी थी।
इस जाँच की रिपोर्ट त्वरित मिल जाती है , ठीक गर्भावस्था-जाँच वाले उपकरण ( Pregnancy Test Kit ) की तरह। हालांकि इसके भी कुछ परिसीमन हैं और नकारात्मक पक्ष भी। ख़ैर ! .. अपनी बारी आने पर जाँच के उपरांत सामने से जाँचकर्ता का ये कहना कि " आप कोरोना पॉजिटिव हैं .. बगल में खड़ा हो जाइए , अभी आपको इसके लिए कुछ दवा दे कर छोड़ दिया जाएगा। " एक बारगी तो यह वाक्य कि - " आप कोरोना पॉजिटिव हैं। " ... पूरे शरीर को झकझोर जाता है। एक बार तो दोनों पैर काँप जाते हैं। आसपास वालों के व्यवहार फ़ौरन बदल जाते हैं। उनके अपनी हिफ़ाजत के लिए बदलना भी चाहिए .. स्वाभाविक है .. पत्नी के भी .. शायद ...
थोड़ी देर में उस केंद्र का एक कर्मचारी बाहर आकर मेरा नाम पुकारता है और उसके समीप जाने पर
1) Paracetamol 500 mg - 1 गोली × 2 बार × 5 दिन।
2) Azithromycin 250 mg - 1 गोली × 2 बार × 5 दिन।
3) Ascorbic Acid 500 mg - 1 गोली × 1 बार × 10 दिन।
के हिसाब से उपर्युक्त दवाईयों की दस-दस गोलियों का एक-एक पत्ता के साथ कोरोना पॉजिटिव लिखा हुआ एक पर्चा ( Prescription ) मेरी फ़ैली हथेलियों पर टपका कर नसीहत देते हुए कहता है कि " दवा लेते हुए चौदह दिन होम क्वारंटाइन हो कर रहिए। " इस समय दवाईयाँ ग्रहण करते हुए किसी गुरूद्वारे में लंगर छकते समय किसी कारसेवक के हाथों से अपनी फ़ैली हथेलियों पर टपकी चपातियों की याद सहसा आ जाती है। बस .. एक अंतर लगा दोनों के टपकाने में .. वह थी श्रद्धा .. शायद ...
सरकारी कुछ भी हो , चीनी सामान की तरह एक आम अनुभूति बनी हुई है कि - " पता नहीं कैसा होगा !? " .. मतलब सही या टिकाऊ नहीं होगा। ऐसा ही कुछ सोच कर स्थानीय उपलब्ध डॉक्टर से फ़ोन पर बात कर के उनके परामर्श के अनुसार निम्नलिखित दवाईयाँ दो दिनों के बाद बाज़ार से मँगवाने के बाद उपलब्ध हो पाने पर ( तब तक स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से दी गई दवाईयाँ ही लेता रहा ) निर्धारित समय पर खाना शुरू कर दिया :-
1) Zincovit - 1गोली × 2 बार × 30-40 दिन।
2) Limcee (Vitamin C) - 1 गोली × 2 बार × 30-40 दिन ( चूसना है ).
3) Calciquick- D3 (60K) (Vitamin D) - 1 कैप्सूल × 1 बार × 3 दिन।
4) Vermact 12 mg (Ivermectin-12 mg) - 1 गोली × 1 बार × 3 दिन।
5) Azithral 500 mg - 1 गोली × 1बार × 5 दिन।
6) Montek LC - 1 गोली × 1 बार (रात में) ×10 दिन।
7) Dolo 650 mg - 1 गोली × 2 बार (बुख़ार रहने पर)।
8) Bro-Zedex SF (Cough Syrup) - 1 बड़ा चम्मच × 3 बार × 10 दिन ( या खाँसी ठीक होने तक)।
गाँव -घर में बुज़ुर्ग लोग अक़्सर किसी विशेष बीमारी में सलाह देते हुए सुने जा सकते हैं कि " दवा-दारू के साथ-साथ झाड़-फूँक , ओझा-गुनी या गंडा-ताबीज़ करवाने में हर्ज़ ही क्या है भला ! " .. यानि ये सब भी करवाना चाहिए। इस से बीमार के ठीक होने की कोई भी वज़ह अधूरी नहीं रहती। ख़ैर ! ... हम इन सब की तरफ़दारी नहीं कर रहे या हमने ऐसा कुछ किया भी नहीं या फिर इन सब के बारे में सोचते तक भी नहीं हैं , बल्कि यह बतलाना चाह रहे हैं कि उपर्युक्त अंग्रेज़ी दवाओं ( Allopathic Medicine ) के साथ-साथ होम्योपैथिक दवा ( Homeopathic Medicine ) :-
1) Arsenic 200 = एक दिन बीच कर के सुबह में 3 बूँद लेने का भी परामर्श मिला। जिसे ली भी और आज तक ले भी रहे हैं।
साथ ही कुछ आयुर्वेदिक दवाएँ भी ली -
1) कोरोनिल किट - (अ) दिव्य श्वासारि वटी - 2 गोली × 3 बार (नाश्ता-खाना से आधा घण्टा पहले)।
(ब) दिव्य कोरोनिल गोली - 2 गोली × 3 बार (नाश्ता-खाना से आधा घण्टा बाद)।
(स) दिव्य अणु तैल - 4-4 बूँद दोनों नासिकाओं में × एक बार (नाश्ता के एक घण्टा पहले)।
साथ ही अपनी मधुमेह से सम्बंधित दवाईयाँ पहले की तरह ही लेता रहा। चूँकि इस हाल में मधुमेह बढ़ जाता है , जिनको यह बीमारी नहीं है उनका भी ; तो अतिरिक्त में इन्सुलिन का डोज़ भी ले रहा हूँ , ताकि मधुमेह ( Diabetes ) नियंत्रण में रहे।
इन सब के बावज़ूद 20-25 दिनों में भी श्लेष्मा ( बलग़म ) की समस्या नहीं हल हो पायी तो डॉक्टर की दूरभाषी सलाह के आधार पर अंग्रेज़ी दवा -
1) Doxycycline 100 mg - 1 गोली × 2 बार × 5 दिन तक खाया। साथ ही आयुर्वेदिक दवाइयाँ -
1) कंठामृत - 2 गोली × 2 बार (चूसना है) × 15 दिन।
2) त्रिकुटा चूर्ण - 3 बार (मधु के साथ) × 10 दिन।
3) श्वासारि गोल्ड - 2 गोली × 2 बार × 10 दिन तक लिया। वैसे तो मधुमेह के कारण हम मधु की जगह शुगर फ्री कफ़ सिरप के साथ ही त्रिकुटा चूर्ण लेते रहे। हाँ .. एक बात और .. इन दवाओं के बाद मधुमेह अचानक ज़्यादा बढ़ गया तो कंठामृत की गोलियाँ बन्द करनी पड़ी , क्योंकि पता चला कि इसकी 545 मिलीग्राम की एक गोली में 380 मिलीग्राम तक गन्ने का रस यानि मिठास होता है।
अपने घर पर पहले से ही ब्लड प्रेशर मॉनिटर ( Blood Pressure Monitor ) , डिजिटल तोलनयंत्र ( Digital Weighing Machine ) , डिजिटल थर्मामीटर ( Digital Thermometer ) और शुगर टेस्टिंग मशीन ( Sugar Testing Machine ) जैसे उपकरण उपलब्ध होने के बावज़ूद डॉक्टर की सलाह पर तीन नए उपकरण वेपोराइज़र ( Vaporizer ) , डिजिटल इन्फ्रारेड थर्मामीटर ( Digital Infrared Thermometer ) और पल्स ऑक्सीमीटर ( Pulse Oximeter) खरीदवा कर बाज़ार से मँगवाना पड़ा। सबसे ज़्यादा राहत वाली बात ये रही कि 4- 5 दिनों के बाद पल्स ऑक्सीमीटर उपलब्ध होने पर उस की रीडिंग शुरू दिन से ही 98-99 आती रही। मतलब शरीर में ऑक्सीजन का स्तर ठीक-ठाक रहा। हालांकि कोरोनाकाल से बहुत पहले से ही सामान्य सर्दी-जुक़ाम होने पर किसी पतीले में पानी गर्म कर के उसमें Karvolplus का कैप्सूल डाल चादर ओढ़ कर भाप लिया करता था। पर अभी बार-बार पतीले में पानी गर्म करने और मेरे पास में लाने और पास से ले जाने के क्रम में संक्रमण रसोई घर तक या अन्य में फैलने का भय था , इसीलिए बिजली से चलने वाला वेपोराइज़र अलग से मंगवाना पड़ा। गत माह अप्रैल के पहले सप्ताह तक इनकी कीमत उतनी मँहगी नहीं हुई थी , जितनी बाद के दिनों में हुई। फिर भी आम दिनों के बाज़ारों में रु. 500 -700 में उपलब्ध पल्स ऑक्सीमीटर , जो अब तक इलाज के दौरान डॉक्टरों के मेज़ों पर नज़र आती थी , उस दिन रु. 1200 में मिल पायी थी। बाद में तो रु. 4000 तक में भी बाज़ार में उपलब्ध नहीं हो पा रहा था या है।
यहाँ भी अर्थशास्त्र के माँग और पूर्ति पर आधारित मूल्य निर्धारण वाले सिद्धांत का असर दिख रहा है। इन दिनों से एक और सबक़ मिला कि अगर हम सक्षम हैं और सम्भव हो तो उपर्युक्त सारे उपकरणों का दो सेट घर में रखना चाहिए , ताकि अगर घर-परिवार का कोई एक सदस्य कोरोनाग्रस्त ( वैसे तो क़ुदरत ना करे कि किसी के साथ ऐसा हो ) होता है तो एक सेट वह बीमार इस्तेमाल करेगा और दूसरे को परिवार के अन्य सदस्य। इस से संक्रमण फ़ैलने का ख़तरा ना के बराबर रहेगा। वैसे तो जानकारों का कहना है कि घर में अगर एक सदस्य भी कोरोनाग्रस्त है और गृह-अलगाव ( Home Isolation ) में है , तो घर के अन्य सदस्यों को भी स्वयं को कोरोनाग्रस्त मान लेना चाहिए। सारा दिन बीमार की तरह मास्क लगा कर ही घर में भी रहना चाहिए। दो मीटर की दूरी भी बना कर रखनी चाहिए। सारे एहतियात के बावजूद भी हमारे बीमार होने के सप्ताह दिन में ही पत्नी और बेटे में भी खाँसी-बुखार के लक्षण दिखायी देने लगे। फिर डॉक्टर की सलाह पर स्वयं द्वारा आरम्भ में खायी गई उपर्युक्त सारी अंग्रेज़ी दवाईयाँ उन दोनों को भी खिलाया। दवा खाने के बाद में वैसे वो दोनों जाँच में कोरोना निगेटिव पाए गए।
इन दिनों प्रतिदिन की अपनी दिनचर्या बन जाती है .. सारे चिकित्सीय उपकरणों से नियत समय पर जाँच कर-कर के उनके मापों को एक पुरानी डायरी में नोट करना , नियत समय पर भाप लेना , काढ़ा पीना और सारी दवाईयाँ लेना। भाप लेने के लिए वेपोराइज़र में -
1) Karvolplus - वेपोराइज़र का पानी बदलने पर हर बार एक कैप्सूल डाल कर भाप लेने के लिए कहा गया था।
गरारे के लिए गर्म पानी में कभी हल्दी- नमक डालकर तो कभी
1) Betadine - कुछ बूँदें मिला कर प्रतिदिन कम से कम दो बार गरारे करने की राय दी गई थी।
इन सब के साथ ही सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह थी कि जब भी पीना है , तो गुनगुना पानी ही पीना है। कोई ठण्डा पेय पदार्थ या खाद्य पदार्थ तो सोचना भी गुनाह है। और हाँ .. रात में हल्दी डाला हुआ सुसुम-सुसुम ( गुनगुना ) दूध फूँक-फूँक कर पीना भी दिनचर्या में शामिल हो गया है। साथ ही प्रतिदिन सुबह में ओंकारा , कपालभाति , अनुलोम-विलोम , भस्त्रिका , उज्जायी , भ्रामरी जैसे साँस और फेफड़े से सम्बंधित योगाभ्यास की राय पर जहाँ तक अमल करने की बात है , तो वह तो पहले से ही दिनचर्या में शामिल है।
आज इस " प्रिया संग मानसिक संवाद ... ( भाग-२ ). " में दुखड़ा वाली बकैती कुछ ज्यादा ही हो गयी है। अब इससे आगे " ( भाग-३ ) " में कुछ और बतकही और .. उस के बाद " ( भाग-४ ) " में लगभग एक महीने से ज्यादा समयान्तराल में अपने अवसादग्रस्त मन में पनपी अपनी एक मात्र रचना (?) ( शायद कविता )- " प्रिया संग मानसिक संवाद ... " के साथ मिलते हैं। इसके शीर्षक से जो भी अनुमान हो रहा हो परन्तु अब ऐसे माहौल और ऐसी मानसिक-शारीरिक परिस्थितियों में कोई रूमानी रचना तो दिमाग़ में खदबदाने से रही .. शायद ... फ़िलहाल तो स्वतः संगरोध ( Self Quarantine ) होते हुए गृह-अलगाव ( Home Isolation ) के तहत थोड़ा आराम कर के अपने कमजोर-थके शरीर को थोड़ी ऊर्जा प्रदान कर लूँ .. बस यूँ ही ...