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Monday, November 29, 2021

एक पोटली .. बस यूँ ही ...

चहलक़दमियों की 

उंगलियों को थाम,

जाना इस शरद

पिछवाड़े घर के,

उद्यान में भिनसार तुम .. बस यूँ ही ...


लाना भर-भर

अँजुरी में अपनी,

रात भर के 

बिछे-पसरे,

महमहाते 

हरसिंगार तुम .. बस यूँ ही ...


आँखें मूंदे अपनी फिर

लेना एक नर्म उच्छवास 

अँजुरी में अपनी और .. 

भेजना मेरे हिस्से 

उस उच्छवास के 

नम निश्वास की फिर

एक पोटली तैयार तुम .. बस यूँ ही ...


हरसिंगार की 

मादक महमहाहट,

संग अपनी साँसों की

नम .. नर्म .. गरमाहट,

बस .. इतने से ही

झुठला दोगी 

किसी भी .. उम्दा से उम्दा ..

'कॉकटेल' को यार तुम .. बस यूँ ही .. शायद ...