ओपन मिक या ओपन माइक ( Open Mic/Mike ) - हाँ .. यही तो नाम है , अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की इस विधा का या इस मंच का। जो शायद अंग्रेजी के शब्द Open Microphone से बना होगा। नाम से ही स्पष्ट है कि यह ओपन है। मतलब यह सभी के लिए एक खुला माइक या मंच है। यह एक लाइव शो (Live Show) यानि प्रत्यक्ष-प्रदर्शन है। वर्त्तमान में पिछले कुछ सालों से बड़े शहरों में यह विशेषतौर पर युवाओं में कुछ ज्यादा ही प्रचलित है।
लगभग बीसवीं शताब्दी के अंत के और इक्कीसवीं शताब्दी के शुरूआत के सालों में विकसित देशों में पब (Pub), नाईट क्लब (Night Club), कॉफ़ी हाउस (Coffee House), कॉमेडी क्लब (Comedy Club) या किसी संस्थान में प्रायः रातों में देर रात तक या रात भर वहाँ उपस्थित जनसमूह के मनोरंजन के लिए किसी भी परिपक्व या नया कलाकार द्वारा कविता, गीत-संगीत या हास्य-संवाद के रूप में अपनी-अपनी प्रस्तुति देने का दौर शुरू हुआ था। दुनिया में इसके आरम्भ होने के समय की तुलना हम मोबाइल फ़ोन के भारत में शुरू होने के समय से कर सकते हैं .. शायद ...। कहीं-कहीं इसकी व्यवस्था अथार्त किराए पर लाए जाने वाले माइक, साउंड बॉक्स (Sound Box) इत्यादि में होने वाले ख़र्चे को क्लब वाले प्रस्तुति देने वाले कलाकारों से या कहीं-कहीं पूरे जनसमूह से वसूलते थे या हैं भी।
धीरे-धीरे यह विधा पाँव पसारती हुई , महानगरों (Metro Town) के युवाओं को लुभाती हुई , अब तो हर छोटे-बड़ो शहरों के युवाओं में भी आम है। बड़े-बड़े रेस्टुरेन्ट, होटलों, क्लबों के अलावा सभागारों या किसी भी बड़े हॉलनुमा कमरे में यह ओपन मिक संभव है। कुछ वर्षों से अब तो प्रस्तुति की वीडियो बना कर उसे यूट्यूब (Youtube) पर अपलोड (Upload) करने का भी प्रचलन जोर-शोर से है। कहते हैं कि यूट्यूब पर व्यूअर (Viewers) की संख्या के आधार पर यूट्यूब के तरफ से युवाओं की वार्षिक कमाई भी होती है।
वैसे तो .. यह सर्वविदित ही है कि यूट्यूब वीडियो साझा करने का एक अमेरिकी एप्प (App = Application) है। इसी तरह के मंचों में एक बहुत प्रसिद्ध हो चुका मंच है, जिसका नाम आपको भी मालूम होगा ही - यौरकोट (Yourquote), जो कलाकारों या रचनाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन और ऑफ लाइन (Online & Offline Plateform) प्रदान करता है और प्रस्तुति को यूट्यूब के माध्यम से विस्तार भी देता है। अब तो कई-कई शहरों में यौरकोट जैसे कई-कई स्थानीय से राष्ट्रीय स्तर पर स्थान बनाने के लिए प्रयासरत मंच देखने के लिए मिल जाते हैं। स्वाभाविक है कि इन सब प्रक्रियाओं में धन की आवश्यकता भी पड़ती है, तो इस धन को प्रतिभागियों से ही लिया जाता है। ऐसा ही तो कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा भी किया जाता है। यदाकदा किसी संस्थान या व्यक्तिविशेष द्वारा इस तरह का मंच प्रतिभागियों के लिए मुफ़्त में भी प्रदान किया जाता है। इस मंच से प्रायः कविताएँ (Poetry) , कहानियाँ (Storytelling) , कॉमेडी ( Standup Comedy) या गायन-वादन (ज़्यादातर Rap Songs) की प्रस्तुति की जाती है। प्रसंगवश मेरा ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बचपन में तीसरी कक्षा से कुछ-कुछ लिखने की कोशिश भर जो जाने-अन्जाने में सुषुप्तावस्था में कभी-कभार ही निकल कर बाहर आ पाती थी , अचानक 2018 में ओपन मिक के बहाने इन युवाओं के सम्पर्क में आने के बाद से ही उम्र की 52वें पड़ाव में एक रफ़्तार-सा पकड़ लिया। निःसन्देह .. फिर बाद में 2019 में ब्लॉग की दुनिया में आप लोगों की सोहबत में आने के बाद तो और भी रफ़्तार तेज़ और संतुलित भी हो गई।
लोगों का मानना है कि चूँकि अधिकांशतः इन में युवा ही होते हैं तो स्वाभाविक है कि उनकी रचनाओं में तथाकथित स्थापित, सत्यापित या स्वघोषित बुद्धिजीवी साहित्यकारों वाली बात नहीं होती है। परन्तु वस्तुतः सच्चाई ऐसी नहीं है और यहाँ भी कई अच्छे और गंभीर सोचने और लिखने वाले मिलते हैं। कई तुकबन्दी करने वाले या पैरोडी गाने वाले भी होते हैं। कई कुछ प्रसिद्ध रचनाकारों की लेखन या पढ़ने की शैली की नक़ल करते भी नज़र आते हैं। वैसे इन सभी तरह की मिलीजुली शख़्सियतें तो कई तथाकथित साहित्यिक कवि सम्मेलनों में भी दिख ही जाते हैं। कई बुद्धिजीवी .. या तो इस ओपन मिक के बारे में जानते ही नहीं है या अगर जानते भी हैं तो इसे उपेक्षित नज़रों से देखते हैं। इसी डर से आलेख की शुरुआत से ही मैं इसकी तुलना साहित्यिक गोष्टी या साहित्यिक सम्मेलन से नहीं कर रहा हूँ। पता नहीं किसी बुद्धिजीवी को नागवार गुजर जाए।
कई लोग तो ब्लॉग और फेसबुक जैसे दोनों विदेशों से मुफ़्त में मिले मंचों/एप्पों में भी बेहतर-निम्नतर जैसा फ़र्क करने से गुरेज़ नहीं करते , जबकि एप्प या मंच कोई भी बुरा नहीं होता। बुरे होते हैं उसको व्यवहार करने वाले .. उस में अपनी रचना साझा करने वाले और उसके पाठक या श्रोतागण। ब्लॉग की तुलना में फेसबुक तकनीकी रूप से ज्यादा लचीला और समृद्ध भी है , जिस कारणवश वह जनसुलभ और लोकप्रिय भी है। तभी तो ब्लॉग के लिए अपनी गर्दन अकड़ाने वालों को भी फेसबुक का सहारा लेना ही पड़ता है। मालूम नहीं फ़ेसबुक को लोग हेय दृष्टि से क्यों देखते हैं ?
खैर ... अभी फिलहाल ओपन मिक की बात करते हैं। जैसे विश्व में अलग-अलग जगहों की भाषाएँ भी अलग-अलग होती है , ठीक वैसे ही अलग-अलग पीढ़ियों की भी अपनी-अपनी भाषाएँ होती हैं। और अगर हम सामने वाले से उसी की भाषा में बात करें तो वो बात सामने वाले के मन में सीधे-सीधे उतरती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित रचना/विचार को युवाओं की नज़र से देखकर लिखा था और उसकी प्रस्तुति दी थी।
लगभग दो साल पहले ही जब कोरोना के वायरस (Virus) और सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) शब्द का भी कोई नामोनिशान तक नहीं था, तब भी सर्दी के वायरस और सोशल डिस्टेंसिंग की परिकल्पना की गई थी इस रचना में। आप पढ़ कर ख़ुद ही देख लीजिए ना ...
यहाँ इस रचना/विचार के बाद इसकी प्रस्तुति का वीडियो भी है। समय हो तो पढ़िए भी और वीडियो भी देखिए .. शायद .. आपको भी अच्छा लगे .. बस .. पढ़ते या वीडियो देखते वक्त खुद को युवावस्था में महसूस भर कर लीजिए .. बस .. तो फिर देर किस बात की ? ...
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मिले फ़ुर्सत कभी तो ...
लगभग बीसवीं शताब्दी के अंत के और इक्कीसवीं शताब्दी के शुरूआत के सालों में विकसित देशों में पब (Pub), नाईट क्लब (Night Club), कॉफ़ी हाउस (Coffee House), कॉमेडी क्लब (Comedy Club) या किसी संस्थान में प्रायः रातों में देर रात तक या रात भर वहाँ उपस्थित जनसमूह के मनोरंजन के लिए किसी भी परिपक्व या नया कलाकार द्वारा कविता, गीत-संगीत या हास्य-संवाद के रूप में अपनी-अपनी प्रस्तुति देने का दौर शुरू हुआ था। दुनिया में इसके आरम्भ होने के समय की तुलना हम मोबाइल फ़ोन के भारत में शुरू होने के समय से कर सकते हैं .. शायद ...। कहीं-कहीं इसकी व्यवस्था अथार्त किराए पर लाए जाने वाले माइक, साउंड बॉक्स (Sound Box) इत्यादि में होने वाले ख़र्चे को क्लब वाले प्रस्तुति देने वाले कलाकारों से या कहीं-कहीं पूरे जनसमूह से वसूलते थे या हैं भी।
धीरे-धीरे यह विधा पाँव पसारती हुई , महानगरों (Metro Town) के युवाओं को लुभाती हुई , अब तो हर छोटे-बड़ो शहरों के युवाओं में भी आम है। बड़े-बड़े रेस्टुरेन्ट, होटलों, क्लबों के अलावा सभागारों या किसी भी बड़े हॉलनुमा कमरे में यह ओपन मिक संभव है। कुछ वर्षों से अब तो प्रस्तुति की वीडियो बना कर उसे यूट्यूब (Youtube) पर अपलोड (Upload) करने का भी प्रचलन जोर-शोर से है। कहते हैं कि यूट्यूब पर व्यूअर (Viewers) की संख्या के आधार पर यूट्यूब के तरफ से युवाओं की वार्षिक कमाई भी होती है।
वैसे तो .. यह सर्वविदित ही है कि यूट्यूब वीडियो साझा करने का एक अमेरिकी एप्प (App = Application) है। इसी तरह के मंचों में एक बहुत प्रसिद्ध हो चुका मंच है, जिसका नाम आपको भी मालूम होगा ही - यौरकोट (Yourquote), जो कलाकारों या रचनाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन और ऑफ लाइन (Online & Offline Plateform) प्रदान करता है और प्रस्तुति को यूट्यूब के माध्यम से विस्तार भी देता है। अब तो कई-कई शहरों में यौरकोट जैसे कई-कई स्थानीय से राष्ट्रीय स्तर पर स्थान बनाने के लिए प्रयासरत मंच देखने के लिए मिल जाते हैं। स्वाभाविक है कि इन सब प्रक्रियाओं में धन की आवश्यकता भी पड़ती है, तो इस धन को प्रतिभागियों से ही लिया जाता है। ऐसा ही तो कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा भी किया जाता है। यदाकदा किसी संस्थान या व्यक्तिविशेष द्वारा इस तरह का मंच प्रतिभागियों के लिए मुफ़्त में भी प्रदान किया जाता है। इस मंच से प्रायः कविताएँ (Poetry) , कहानियाँ (Storytelling) , कॉमेडी ( Standup Comedy) या गायन-वादन (ज़्यादातर Rap Songs) की प्रस्तुति की जाती है। प्रसंगवश मेरा ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बचपन में तीसरी कक्षा से कुछ-कुछ लिखने की कोशिश भर जो जाने-अन्जाने में सुषुप्तावस्था में कभी-कभार ही निकल कर बाहर आ पाती थी , अचानक 2018 में ओपन मिक के बहाने इन युवाओं के सम्पर्क में आने के बाद से ही उम्र की 52वें पड़ाव में एक रफ़्तार-सा पकड़ लिया। निःसन्देह .. फिर बाद में 2019 में ब्लॉग की दुनिया में आप लोगों की सोहबत में आने के बाद तो और भी रफ़्तार तेज़ और संतुलित भी हो गई।
लोगों का मानना है कि चूँकि अधिकांशतः इन में युवा ही होते हैं तो स्वाभाविक है कि उनकी रचनाओं में तथाकथित स्थापित, सत्यापित या स्वघोषित बुद्धिजीवी साहित्यकारों वाली बात नहीं होती है। परन्तु वस्तुतः सच्चाई ऐसी नहीं है और यहाँ भी कई अच्छे और गंभीर सोचने और लिखने वाले मिलते हैं। कई तुकबन्दी करने वाले या पैरोडी गाने वाले भी होते हैं। कई कुछ प्रसिद्ध रचनाकारों की लेखन या पढ़ने की शैली की नक़ल करते भी नज़र आते हैं। वैसे इन सभी तरह की मिलीजुली शख़्सियतें तो कई तथाकथित साहित्यिक कवि सम्मेलनों में भी दिख ही जाते हैं। कई बुद्धिजीवी .. या तो इस ओपन मिक के बारे में जानते ही नहीं है या अगर जानते भी हैं तो इसे उपेक्षित नज़रों से देखते हैं। इसी डर से आलेख की शुरुआत से ही मैं इसकी तुलना साहित्यिक गोष्टी या साहित्यिक सम्मेलन से नहीं कर रहा हूँ। पता नहीं किसी बुद्धिजीवी को नागवार गुजर जाए।
कई लोग तो ब्लॉग और फेसबुक जैसे दोनों विदेशों से मुफ़्त में मिले मंचों/एप्पों में भी बेहतर-निम्नतर जैसा फ़र्क करने से गुरेज़ नहीं करते , जबकि एप्प या मंच कोई भी बुरा नहीं होता। बुरे होते हैं उसको व्यवहार करने वाले .. उस में अपनी रचना साझा करने वाले और उसके पाठक या श्रोतागण। ब्लॉग की तुलना में फेसबुक तकनीकी रूप से ज्यादा लचीला और समृद्ध भी है , जिस कारणवश वह जनसुलभ और लोकप्रिय भी है। तभी तो ब्लॉग के लिए अपनी गर्दन अकड़ाने वालों को भी फेसबुक का सहारा लेना ही पड़ता है। मालूम नहीं फ़ेसबुक को लोग हेय दृष्टि से क्यों देखते हैं ?
खैर ... अभी फिलहाल ओपन मिक की बात करते हैं। जैसे विश्व में अलग-अलग जगहों की भाषाएँ भी अलग-अलग होती है , ठीक वैसे ही अलग-अलग पीढ़ियों की भी अपनी-अपनी भाषाएँ होती हैं। और अगर हम सामने वाले से उसी की भाषा में बात करें तो वो बात सामने वाले के मन में सीधे-सीधे उतरती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित रचना/विचार को युवाओं की नज़र से देखकर लिखा था और उसकी प्रस्तुति दी थी।
लगभग दो साल पहले ही जब कोरोना के वायरस (Virus) और सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) शब्द का भी कोई नामोनिशान तक नहीं था, तब भी सर्दी के वायरस और सोशल डिस्टेंसिंग की परिकल्पना की गई थी इस रचना में। आप पढ़ कर ख़ुद ही देख लीजिए ना ...
यहाँ इस रचना/विचार के बाद इसकी प्रस्तुति का वीडियो भी है। समय हो तो पढ़िए भी और वीडियो भी देखिए .. शायद .. आपको भी अच्छा लगे .. बस .. पढ़ते या वीडियो देखते वक्त खुद को युवावस्था में महसूस भर कर लीजिए .. बस .. तो फिर देर किस बात की ? ...
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मिले फ़ुर्सत कभी तो ...
"शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ..."
पिछले दिसम्बर की एक बर्फीली सुबह
अपने जैकेट का जीप ऊपर सरकाते वक्त उस में
उलझ-सा गया था मेरे मफ़लर का एक हिस्सा।
फिर याद आई अचानक ..
वो वर्षों पहले गुजरा दिसम्बर का एक दिन
अरे हाँ ! .. हमारे अपने डेटिंग (Dating) वाला दिन
जब खोलते वक्त मेरे जैकेट के जीप में उलझा था
तुम्हारा वो आसमानी जॉर्जेट का दुपट्टा।
उस दिन भी ठंड काफी थी पर .. उस दिन ..
जैकेट का जीप लगाने के बजाए खोला था मैं
ताकि .. छुपा कर उस में तुम चेहरा अपना
हर बार की तरह महसूस कर सको मेरे बदन की गर्माहट
और ... तुम्हारी नर्म-गर्म मखमली साँसों को मैं।
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
उलझ-सा गया था मेरे मफ़लर का एक हिस्सा।
फिर याद आई अचानक ..
वो वर्षों पहले गुजरा दिसम्बर का एक दिन
अरे हाँ ! .. हमारे अपने डेटिंग (Dating) वाला दिन
जब खोलते वक्त मेरे जैकेट के जीप में उलझा था
तुम्हारा वो आसमानी जॉर्जेट का दुपट्टा।
उस दिन भी ठंड काफी थी पर .. उस दिन ..
जैकेट का जीप लगाने के बजाए खोला था मैं
ताकि .. छुपा कर उस में तुम चेहरा अपना
हर बार की तरह महसूस कर सको मेरे बदन की गर्माहट
और ... तुम्हारी नर्म-गर्म मखमली साँसों को मैं।
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
हिन्दी मीडियम (Hindi Medium) वाला मैं
तुमसे मिलने के पहले भला कहाँ जानता था
तुमसे मिलने के पहले भला कहाँ जानता था
मतलब स्मूचिंग (Smooching) का।
हाँ .. उस दिन थोड़ा ज्यादा जोर हो गया था।
लगा था तुम्हें कि .. कुछ ज्यादा ही बहक गया हूँ मैं
पर दरअसल चाहता था खींच लेना खुद में मैं
सारे वायरस तुम्हें परेशान करती तुम्हारी पनीली सर्दी के।
फिर एक दिन लगा था तुम्हें कि .. भाव खा रहा हूँ मैं
स्मूचिंग तो दूर .. क़तरा रहा हूँ करीब आने से भी तुम्हारे
पर दरअसल चाहता था रखना बचाए तुम्हें मैं
वायरस से अपनी उन दिनों की अपनी सर्दी से।
हाँ .. उस दिन थोड़ा ज्यादा जोर हो गया था।
लगा था तुम्हें कि .. कुछ ज्यादा ही बहक गया हूँ मैं
पर दरअसल चाहता था खींच लेना खुद में मैं
सारे वायरस तुम्हें परेशान करती तुम्हारी पनीली सर्दी के।
फिर एक दिन लगा था तुम्हें कि .. भाव खा रहा हूँ मैं
स्मूचिंग तो दूर .. क़तरा रहा हूँ करीब आने से भी तुम्हारे
पर दरअसल चाहता था रखना बचाए तुम्हें मैं
वायरस से अपनी उन दिनों की अपनी सर्दी से।
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
कई साल गुजर गए .. है ना ? .. कई साल गुजर गए ..
वट-सावित्री पूजा में बरगद के पेड़ से लिपटे
कच्चे धागे की तरह जब आखिरी बार लिपटी थी तुम मुझसे ;
यक़ीन मानो .. आज भी तुम्हारे बदन की ख़ुश्बू ने
कमी महसूस होने नहीं दी है कभी किसी डिओ (Deo) की।
हमेशा इस्तेमाल किया था तुमने मुझे
सिलेबस (Syllabus) की किताबों की तरह मगर ..
मैं तो सजा रखा हूँ तुम्हें आज भी दिल की दीवार पर
पिरियोडिक टेबल (Periodic Table) की तरह।
अक़्सर इस्तेमाल किया तुमने मुझे
अपने मुश्किल भरे चार दिनों के सैनिटरी नैप......*
खैर ! .. जाने दो ना।
मैं ने तो संजो रखा है आज भी तुम्हें
किसी सगे के छट्ठी वाले कपड़ों की तरह।
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
वट-सावित्री पूजा में बरगद के पेड़ से लिपटे
कच्चे धागे की तरह जब आखिरी बार लिपटी थी तुम मुझसे ;
यक़ीन मानो .. आज भी तुम्हारे बदन की ख़ुश्बू ने
कमी महसूस होने नहीं दी है कभी किसी डिओ (Deo) की।
हमेशा इस्तेमाल किया था तुमने मुझे
सिलेबस (Syllabus) की किताबों की तरह मगर ..
मैं तो सजा रखा हूँ तुम्हें आज भी दिल की दीवार पर
पिरियोडिक टेबल (Periodic Table) की तरह।
अक़्सर इस्तेमाल किया तुमने मुझे
अपने मुश्किल भरे चार दिनों के सैनिटरी नैप......*
खैर ! .. जाने दो ना।
मैं ने तो संजो रखा है आज भी तुम्हें
किसी सगे के छट्ठी वाले कपड़ों की तरह।
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
आखिर गलत साबित कर ही दिया ना तुमने ..
न्यूटन के तीसरे नियम** को ,
मेरे प्यार के बदले मुझे पराया कर के।
झुठलाने के लिए आर्किमिडीज के सिद्धान्त*** को मैंने भी
तुम्हारे दिए गए ग़मों के वजन के बावज़ूद
समय के लहरों पर तैरता रहा मैं ताउम्र अनवरत।
और .. वो भी क्या भूल पाई होगी तुम ? .. बोलो ना ! ..
हर डेटिंग पर मेरे एक ही डेरी मिल्क (Dairy Milk) लाने में दिखती थी जो तुम्हें मेरी कंजूसी।
पर .. इसी कारण तो तुम मेरे क़रीब
कुछ ज्यादा ही क़रीब .. थी खींचती चली आती।
करते थे जब हम दोनों अपनी-अपनी ओर अपने-अपने दाँतों में दबाकर उस एक डेरी मिल्क का आपस में बँटवारा।
तब मैं थोड़ी बेईमानी था कर जाता।
उस एक डेरी मिल्क के कुल दस स्क्वायर (Square) में से
साढ़े छः तुम्हें और साढ़े तीन अपने हिस्से में था काटता।
बना कर बहाना ये कि .. ज्यादा मीठा मुझे अच्छा नहीं लगता
भले ही .. घर में अपने .. अपनी अम्मा के हिस्से का भी
खीर मैं अक़्सर छुपा कर था चट कर जाता।
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
न्यूटन के तीसरे नियम** को ,
मेरे प्यार के बदले मुझे पराया कर के।
झुठलाने के लिए आर्किमिडीज के सिद्धान्त*** को मैंने भी
तुम्हारे दिए गए ग़मों के वजन के बावज़ूद
समय के लहरों पर तैरता रहा मैं ताउम्र अनवरत।
और .. वो भी क्या भूल पाई होगी तुम ? .. बोलो ना ! ..
हर डेटिंग पर मेरे एक ही डेरी मिल्क (Dairy Milk) लाने में दिखती थी जो तुम्हें मेरी कंजूसी।
पर .. इसी कारण तो तुम मेरे क़रीब
कुछ ज्यादा ही क़रीब .. थी खींचती चली आती।
करते थे जब हम दोनों अपनी-अपनी ओर अपने-अपने दाँतों में दबाकर उस एक डेरी मिल्क का आपस में बँटवारा।
तब मैं थोड़ी बेईमानी था कर जाता।
उस एक डेरी मिल्क के कुल दस स्क्वायर (Square) में से
साढ़े छः तुम्हें और साढ़े तीन अपने हिस्से में था काटता।
बना कर बहाना ये कि .. ज्यादा मीठा मुझे अच्छा नहीं लगता
भले ही .. घर में अपने .. अपनी अम्मा के हिस्से का भी
खीर मैं अक़्सर छुपा कर था चट कर जाता।
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
लग रहा है .. अभी भी तुम यहीं कहीं हो .. मेरे आसपास ..
आओ ना पास .. क्यों सता रही हो ?
ना जाने क्यों ये लग रहा है कि .. तुम अभी-अभी आओगी
किसी कोने से और .. मेरी टी-शर्ट (T-Shirt) की बाँह में
अपने गीले होठों को पोंछते हुए ..
हर बार की तरह शरमा कर कहोगी मुझसे कि .. --
" तुम ना .. बड़े ज़िद्दी हो .. अपनी ज़िद मनवा कर ही मानते हो .. हमें इस तरह कोई देख लेता तो ? .. आँ ? "
अब क्या करूँ मैं ? ... अब ..
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
आओ ना पास .. क्यों सता रही हो ?
ना जाने क्यों ये लग रहा है कि .. तुम अभी-अभी आओगी
किसी कोने से और .. मेरी टी-शर्ट (T-Shirt) की बाँह में
अपने गीले होठों को पोंछते हुए ..
हर बार की तरह शरमा कर कहोगी मुझसे कि .. --
" तुम ना .. बड़े ज़िद्दी हो .. अपनी ज़िद मनवा कर ही मानते हो .. हमें इस तरह कोई देख लेता तो ? .. आँ ? "
अब क्या करूँ मैं ? ... अब ..
शायद प्यार करना मुझे आया ही नहीं आज तक,
मिले फ़ुर्सत कभी तो .. आकर थोड़ा बतला देना ...
( * सैनिटरी नैप...... = सैनिटरी नैपकिन = Sanitary Napkin.
** न्यूटन के तीसरे नियम =Newton's 3rd Law.
*** आर्किमिडीज के सिद्धान्त = Archimedes' Principle. ).
** न्यूटन के तीसरे नियम =Newton's 3rd Law.
*** आर्किमिडीज के सिद्धान्त = Archimedes' Principle. ).
( N.B. :- उपर्युक्त रचना/विचार को AWAAZ - The Poetry Band के Open Mic के लिए मेरे द्वारा 08.07.2018 को पढ़ी गयी थी और उन लोगों द्वारा उस पाठन का यह निम्न Youtube Video 30.08.2018 को प्रसारित किया गया था। ). :-
जी तार्किक महोदय,
ReplyDeleteOpen mic के संबंध में आपकी विस्तृत व्याख़्या चिट्ठजगत के लिए ज्ञानवर्धक एवं रोचक है।
कविता के पहले पाठकों से आपका संवाद अच्छा लग रहा है।
आपकी यह कविता युवावस्था की याद दिलाने में सक्षम है। न्यूटन का नियम,आर्किमिडीज का सिद्धांत,पिरियोडिक टेबल,छट्ठी के कपड़े जैसे अद्भुत एवं मौलिक बिंब रचना की खूबसूरती है।
सहज,सरल भाषा में पाठकों से संवाद करती आपकी रचनाएँ कितनी साहित्यिक है ये साहित्यविद् ही जाने किंतु मुझे बहुत अच्छी लगती है।
नोट:"कृपया आप मेरे दिए गये इस नाम को अन्यथा न लीजियेगा आपके अकाट्य तर्कों से प्रभावशाली होते हैं इसलिए यह नाम आपके लिए सर्वथा उपयुक्त लगा।"
जी ! आस्तिक महोदया ! आभार आपका ...
Deleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteसीख जाओ तो हमें भी सिखा देना :) :) बहुत बढ़िया है।
ReplyDelete:) नहीं कोई सिखा पाया या नहीं आया/आयी तो आपके क्लास में आ जायेंगे ...है ना ?:)
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