आज ही सुबह जब हमारे कॉलेज के जमाने के एक परिचित/मित्र, जो तब भी अच्छे तबलावादक थे और आज भी हैं, की "विश्व संगीत दिवस" की शुभकामना वाली व्हाट्सएप्प मेसेज (Whatsapp Message) आयी तो, ये बात याद आयी कि आज यानी 21 जून को "विश्व संगीत दिवस" है; वर्ना जीवन की आपाधापी तो मानो सब भुला देती है। तब हम भी हवाइयन गिटार (Hawaiian Guitar) बजाया करते थे, जिसका अभ्यास अब तो समय के साथ पूर्णतः छूट ही गया और वह सज्जन आज भी एक सरकारी उच्च-माध्यमिक विद्यालय में संगीत-शिक्षक के तौर पर कार्यरत हैं। उन्होंने विधिवत इसकी शिक्षा प्रयाग संगीत समिति से ग्रहण की है, जो मेरी अधूरी ही रह गई .. बस यूँ ही ...
तभी ख़्याल आया कि "विश्व संगीत दिवस" के बहाने ही सही, संगीत की कुछ पुरानी यादें और कुछ नयी बातें, ब्लॉग के पन्ने पर सहेजी जाएं। वैसे तो हर "दिवसों" की तरह यह दिवस भी पूरे विश्व को यूरोपीय देश फ्रांस की देन है; जब से 21 जून को सन् 1982 ईस्वी में फ़्रांस की राजधानी पेरिस में पहली बार, पहला "विश्व संगीत दिवस" मनाया गया था। संगीत के साथ सब से अच्छी बात ये है कि इसकी कोई भाषा नहीं होती, जिस के कारण अंजान शब्दों के मायने जानने के लिए बार-बार किसी शब्दकोश विशेष की आवश्यकता हमें नहीं पड़ती। बस ... संगीत विश्व के किसी भी कोने की हो, कानों को स्पर्श करते ही हम झुमने लग जाते हैं। बशर्ते .. अगर मन-मस्तिष्क अच्छी मुद्रा में हो तो .. शायद ...
वैसे भी हमारे बुद्धिजीवी पुरखों ने ये माना है, कि साहित्य और संगीत विहीन मनुष्य, मनुष्य ना होकर, ब्रह्माण्ड के अन्य जीवित प्राणियों के जैसा ही होता है। विज्ञान ने भी माना है और सिद्ध भी किया है, कि संगीत का सकारात्मक असर पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों पर भी होता है। देखा गया है, कि संगीत के असर से गाय अपनी सामान्य क्षमता से ज्यादा दूध देने लगती है, फल-फसल के पैदावार भी बढ़ जाते हैं।
यूँ तो हर इंसान जाने-अंजाने अपने-आप में एक संगीतकार है; चाहे हृदय-स्पंदन की ताल हो, साँसों की सरगम हो, चूड़ियों की खनखन हो, पायलों की छमछम हो, ओखली, ढेंकी, जाँता या सिलवट की लयबद्ध आवाज़ हो, आज के सन्दर्भ में मिक्सर-ग्राइंडर (Mixer-Grinder) की आवाज़ हो, सूप या डगरे से अनाज फटकते वक्त इन पर पड़ने वाली थपकियों के थापों और चूड़ियों की जुगलबंदी की आवाज़ हो, चलनी से कुछ भी चालते समय की या आटा गूँथते समय की चूड़ियों की लयबद्ध खनखनाहट हो, लोहार की धौंकनी या हथौड़ी की आवाज़ हो, बढ़ई की आरी या रन्दे की आवाज़ हो, सुबह सड़क बुहारते सफाईकर्मी के नारियल-झाड़ू की आवाज़ हो, सुबह दूध वाले के आने पर कॉल-बेल (Call-Bell) पर बजने वाली अपनी पसंदीदा धुन हो, घास चरती बकरियों या गायों के गले में या फिर मंदिरों में बजने वाली नाना प्रकार की घण्टियाँ हों .. हमारे हर तरफ संगीत ही संगीत है .. बस .. दुनियावी तामझाम से परे तनिक गौर करने की आवश्यकता भर है .. शायद ...
वैसे तो आज ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की विशेष एकादशी - निर्जला एकादशी भी है, जिसके अंतर्गत तथाकथित भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही आज विश्व योग दिवस भी है, पर अभी इन पर बात नहीं करनी है।
आइए .. आज ब्लॉग के वेब पन्ने पर रचना/विचार से परे, "विश्व संगीत दिवस" के बहाने ही कुछ संगीत वाद्ययंत्रों (Musical Instruments) के दिग्गज़ों से उनकी उँगलियों और फूँकों की फ़नकारी निहारते-सुनते हैं। अब कहीं-ना-कहीं से तो श्री गणेश करना ही है, तो पहले युवा पीढ़ी से ही आरम्भ करते हैं।
सब से पहले कर्नाटक की लगभग 25 वर्षीया अंजलि (Anjali Shanbhogue) को जानते हैं, जो "सूचना विज्ञान एवं अभियांत्रिकी" की बीई की डिग्री (B.E. Degree in Information science and engineering) लेने बाद, अपनी आईटी (IT) की नौकरी को छोड़कर आज पूर्णरूपेण संगीत को समर्पित है। वह वाद्ययंत्र - सैक्सोफोन (Saxophone) को बजाने में पारंगत है। कई पुरस्कारों का अंबार इसके नाम जमा है। तो आइए .. नीचे की 'लिंक' के 'यूट्यूब' पर उसी से उसके वाद्ययंत्र - सैक्सोफोन से एक फ़िल्मी गीत की धुन सुनते हुए उस से रूबरू भी होते हैं -
अब बारी है, आंध्रप्रदेश की लगभग 34 वर्षीया श्रीवानी की, जिसको वीणा बजाने में महारथ हासिल है और अब वीणा बजाने के कारण ही दुनिया उसे वीणा श्रीवानी के नाम से जानती है। वीणा वाद्ययंत्र की चर्चा होने पर आस्तिकों को निश्चित रूप से वीणापाणि यानी सरस्वती देवी दिमाग में कौंध जाती हैं। ख़ैर ! .. फ़िलहाल 'यूट्यूब' पर इसके द्वारा वीणा से बजायी गयी एक फ़िल्मी गाने की धुन सुनते हैं .. बस यूँ ही ...
अब मिलते हैं तमिलनाडु के चेन्नई की लगभग 83 वर्षीया विदुषी डॉ नारायण अय्यर राजम यानी एन राजम जी की वायलिन (Violin) की जादूगरी से। जो इस इटली के विदेशी वाद्ययंत्र से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत बजाती हैं। वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत की प्राध्यापिका रहीं हैं और अंतत: विभागाध्यक्ष और विश्वविद्यालय के कला संकाय के डीन भी बनीं थीं। उन्हें संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप (Fellowship) से सम्मानित किया गया है। उन्हें पदम् श्री, पदम् भूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जैसे मुख्य राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा और भी कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। फिलहाल उनके वायलिन और विश्वविख्यात तबलावादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब के तबले की जुगलबंदी से रूबरू हो कर संगीतमय होने की कोशिश करते हैं :-