किसी एक रक्षाबन्धन वाले दिन की एक रात फ़ोन ... स्वाभाविक है मोबाइल ... पर दो बहनों की ... शादीशुदा बहनों ... की वार्तालाप का एक अंश ...
वाणी - " शेफ़ाली ! पुट्टू भईया को राखी बाँध कर लौट कर घर आ गई क्या !? "
शेफ़ाली - " नहीं दी' (दीदी) अभी रास्ते में ही हैं। भाभी के ज़िद्द के कारण रात का भी खाना खा कर लौटना पड़ा। "
वाणी - " अकेली हो !? "
शेफ़ाली - " नहीं तो, इनके साथ ही हैं। छठा महीना चल रहा है ना ! ऐसे में ये अकेला नहीं छोड़ते हमको। पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं लेने देते। इस चक्कर में आज इनके बिज़नेस का काफी नुक्सान भी हुआ , पर ... फिर भी खुद से कार ड्राइव करके ले गए और अभी साथ ही लौट रहे। "
वाणी - " तुमको तो पता ही है कि मैं ... तुम्हारे जीजा जी के सीवियर वायरल फीवर के कारण नहीं आ सकी। बहुत अफ़सोस हो रहा । साल में एक बार तो आता है ना ये त्योहार। पता नहीं ... अगले साल कौन रहे, कौन ना रहे, है कि नहीं !? "
शेफ़ाली - " धत् दी' आप भी ना ... मरे आपके दुश्मन ... अच्छा हुआ आप नहीं गईं ..."
वाणी - " ऐसा क्यों बोल रही है रे ...क्या हुआ !? कुछ हुआ है क्या !?? "
शेफ़ाली - " और नहीं तो क्या .. होना क्या है दी !? अब इतनी मँहगाई में ... जोड़ो ना ... एक सौ बीस रुपए की राखी, साढ़े चार सौ में आधा किलो काजू की बर्फ़ी ... वो भी शुगर फ्री वाली .. अक्षत्, रोली साथ में ... भाभी के लिए सावन के नाम पर चूड़ी- बिंदी अलग से ... इसका भी डेढ़, पौने दो सौ पकड़ ही लो ... फिर 'इनकी' दिन भर की दुकानदारी का नुक़सान ... साठ किलोमीटर जाना और साठ किलोमीटर आना ... उसका 'तेल' जला सो अलग ..अब जोड़ लो 'टोटल' खर्चा ...
वाणी - " हाँ .. वो तो है ... पर ये सब छोड़, ये सब तो होता ही है इतना-इतना खर्चा रे । पहले ये तो बतला कि पुट्टू भईया ने दिया क्या राखी के बदले में ... आयँ ...!?"
शेफ़ाली - " वही तो रोना है दी' ... केवल पाँच सौ रूपये का नोट ... भाभी बोली ... कुछ भी अपने मन का ले लीजिएगा शेफ़ाली जी ... बड़का ना ... ले लीजिएगा (मुँह बिचकाते हुए)... !!!
एकदम मूड ऑफ हो गया दी' ... अच्छा हुआ आप नहीं गईं ..."
वाणी - " हाँ रे ! ठीक ही कह रही है तू ... अच्छा हुआ ये बीमार हो गए , इनके बहाने मैं घाटा से बच गई ...अच्छा काट फोन, अब 'ये' जाग गए हैं , बुला रहे... मैं जा रही ... सी यू ... टेक केअर "
शेफ़ाली - " सी यू .. दी ' ! कल सुबह और डिटेल में इनके मार्केट जाने के बाद बात करते हैं ... ठीक है ना !? ...टेक केअर दी' ... जाओ जीजू का ख्याल रखो ... हाँ ....".
वाणी - " शेफ़ाली ! पुट्टू भईया को राखी बाँध कर लौट कर घर आ गई क्या !? "
शेफ़ाली - " नहीं दी' (दीदी) अभी रास्ते में ही हैं। भाभी के ज़िद्द के कारण रात का भी खाना खा कर लौटना पड़ा। "
वाणी - " अकेली हो !? "
शेफ़ाली - " नहीं तो, इनके साथ ही हैं। छठा महीना चल रहा है ना ! ऐसे में ये अकेला नहीं छोड़ते हमको। पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं लेने देते। इस चक्कर में आज इनके बिज़नेस का काफी नुक्सान भी हुआ , पर ... फिर भी खुद से कार ड्राइव करके ले गए और अभी साथ ही लौट रहे। "
वाणी - " तुमको तो पता ही है कि मैं ... तुम्हारे जीजा जी के सीवियर वायरल फीवर के कारण नहीं आ सकी। बहुत अफ़सोस हो रहा । साल में एक बार तो आता है ना ये त्योहार। पता नहीं ... अगले साल कौन रहे, कौन ना रहे, है कि नहीं !? "
शेफ़ाली - " धत् दी' आप भी ना ... मरे आपके दुश्मन ... अच्छा हुआ आप नहीं गईं ..."
वाणी - " ऐसा क्यों बोल रही है रे ...क्या हुआ !? कुछ हुआ है क्या !?? "
शेफ़ाली - " और नहीं तो क्या .. होना क्या है दी !? अब इतनी मँहगाई में ... जोड़ो ना ... एक सौ बीस रुपए की राखी, साढ़े चार सौ में आधा किलो काजू की बर्फ़ी ... वो भी शुगर फ्री वाली .. अक्षत्, रोली साथ में ... भाभी के लिए सावन के नाम पर चूड़ी- बिंदी अलग से ... इसका भी डेढ़, पौने दो सौ पकड़ ही लो ... फिर 'इनकी' दिन भर की दुकानदारी का नुक़सान ... साठ किलोमीटर जाना और साठ किलोमीटर आना ... उसका 'तेल' जला सो अलग ..अब जोड़ लो 'टोटल' खर्चा ...
वाणी - " हाँ .. वो तो है ... पर ये सब छोड़, ये सब तो होता ही है इतना-इतना खर्चा रे । पहले ये तो बतला कि पुट्टू भईया ने दिया क्या राखी के बदले में ... आयँ ...!?"
शेफ़ाली - " वही तो रोना है दी' ... केवल पाँच सौ रूपये का नोट ... भाभी बोली ... कुछ भी अपने मन का ले लीजिएगा शेफ़ाली जी ... बड़का ना ... ले लीजिएगा (मुँह बिचकाते हुए)... !!!
एकदम मूड ऑफ हो गया दी' ... अच्छा हुआ आप नहीं गईं ..."
वाणी - " हाँ रे ! ठीक ही कह रही है तू ... अच्छा हुआ ये बीमार हो गए , इनके बहाने मैं घाटा से बच गई ...अच्छा काट फोन, अब 'ये' जाग गए हैं , बुला रहे... मैं जा रही ... सी यू ... टेक केअर "
शेफ़ाली - " सी यू .. दी ' ! कल सुबह और डिटेल में इनके मार्केट जाने के बाद बात करते हैं ... ठीक है ना !? ...टेक केअर दी' ... जाओ जीजू का ख्याल रखो ... हाँ ....".