Thursday, July 13, 2023

पुंश्चली .. (१) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)

कई दिनों से आसपास के कुछ जाने, कुछ अंजाने से, कुछ वास्तविक, तो कुछ काल्पनिक .. कई पात्रों की एक टोली मिलजुल कर हमारे मन की देगची में खिचड़ी पकाने का प्रयत्न कर रही थी। अभी तक तो आज उस खिचड़ी की देगची से पहला निवाला ही परोसने का प्रयास भर है। प्रत्येक वृहष्पतिवार को अगला निवाला परोसने का भरसक प्रयास रहेगा हमारा .. शायद ...

अभी तय नहीं कर पाये हैं या कर पा रहें हैं कि यह साप्ताहिक धारावाहिक निकट भविष्य में कहानी की शक्ल में ढल पाएगा या उपन्यास के रूप में। ख़ैर ! .. जो भी हो .. आभासी मनोरंजन का दावा तो नहीं, पर तथ्यों का वादा है हमारा .. बस यूँ ही ...

"पुंश्चली (साप्ताहिक धारावाहिक)" के पहले निवाले परोसने के पूर्व साहित्य और संगीत के लिए अपनी विचारधारा वाली बतकही का एक पत्तल भर बिछा रहे हैं, जिसको भी कई दिनों से कहीं बुन कर रखा हुआ था। हो सकता है आज के लिए ही .. शायद ...


तो पहले विचारधारा वाली बतकही ..


यवनिका

हटे जब कभी भी 

रंगमंच की यवनिका,

मंच पर हों अवतरित 

कोई नायक या नायिका

या हों फिर तान-आलाप, 

मुर्कियाँ गाते गायक-गायिका,

या फिर उठाए हाथ कोई 

रंगों की थाली और एक तूलिका

और सामने बैठी हो चाहे 

मनोरंजन पिपासु भीड़, 

भरी हो वीथिका।

रंगमंच हों या सुरीले गीत कोई 

या फिर चित्र पटल कोई,

भले ही हों, ना हों इन सब में 

वर्णित कोई सारिका, अभिसारिका,

पर दिखनी चाहिए इनमें झलक

अपने इस समाज की विभीषिका .. बस यूँ ही ...


अब ... 

पुंश्चली .. (१) .. (साप्ताहिक धारावाहिक) ...

"अपने बी ब्लॉक वाले 213 नम्बर में कल से केचप फ़ैक्ट्री शुरू हो गयी है रे .. एकदम मस्त .." - भूरा अपनी मित्रमंडली में अपना ज्ञान बघार रहा है। भूरा .. जो अपनी ड्यूटी के वक्त घर-घर से कचरा उठाने वाली नगर निगम की बड़ी गाड़ी में तय किए हुए अनेक मुहल्लों भर से कचरे इकठ्ठे करने के क्रम में गाड़ी के पिछले हिस्से में खड़ा-खड़ा हर घर वालों से कचरे की थैली या डब्बा लेकर लगे हाथ गाड़ी में ही कचरे को फैला कर सरकार द्वारा तय मापदण्ड के आधार पर गीले और सूखे कूड़ों को तीव्र गति से अलग-अलग करता जाता है।

यूँ तो जाति-धर्म और आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बँटे हुए अपने वर्गीकृत समाज की तरह ही सरकार ने कचरे के यथोचित निष्पादन के लिए कूड़ेदान को भी दो वर्गों में बाँट रखा है। परन्तु मानव समाज अपने शारीरिक ढाँचा में उपस्थित निष्क्रिय 'एपेण्डिक्स' की तरह ही हमारे समाज में बने अधिकांश क़ायदे-क़ानून को निष्क्रिय रखने में ही प्रायः दक्ष दिखता है, जिन वजहों से हम सभी की अंतरात्मा भी हमारे 'एपेण्डिक्स' की तरह ही निष्क्रिय बन चुकी है .. शायद ...

"तू पागल हो गया है क्या बे ? किसी रेजिडेंशियल एरिया में कोई फैक्ट्री भी लगा सकता है क्या ? तेरा दिमाग़ फिर गया है क्या ? या फिर जरूर तेरे बात का हर बार की तरह कोई ना कोई ऊटपटाँग मतलब होगा .." - मन्टू ने भूरा की बात पर आपत्ति जतायी। मन्टू .. जो रेलवे स्टेशन से सरकारी बस अड्डे वाली रुट में बिजली से चलने वाली ई रिक्शा यानि हवा हवाई या टोटो गाड़ी चला कर अपना जीवकोपार्जन करता है। कभी कभार लोकल में ही रिजर्व सवारी ले कर भी चला जाता है। मुहल्ले के कई सारे लोग और बाहर के भी कई लोगों ने उसके फ़ोन नम्बर सेव कर रखे हैं। जो लोग उसकी हवा हवाई में एक बार सवारी कर लेते हैं, वो लोग उसकी बातों, कई विषयों के लिए उसके सटीक तर्कों और उसके द्वारा वसूले गए उचित भाड़े के भी क़ायल हो जाते हैं। साथ ही यात्रा के दौरान उसकी हवा हवाई में मधुर आवाज़ों में बजने वाली एफ एम् या फिर रूमानी फ़िल्मी गानों के भी मुरीद हो जाते हैं। परिणामस्वरूप भविष्य की किसी भी तयशुदा या आकस्मिक लोकल यात्रा के लिए उस से मोबाइल नम्बर लेकर प्रायः अपने मोबाइल के कॉन्टेक्ट लिस्ट में सेव कर लेते हैं। और ऐसा हो भी क्यों नहीं, जब टैक्सी या टेम्पू की तुलना में कम दूरी तक जाने-आने के लिए इसका किराया किफ़ायती भी लगता हो, किसी भी मध्यम या निम्न-मध्यम वर्ग के लोगों को।

"बता बे तू क्या बक रहा है सुबह-सुबह ? तू बहुत कोड वर्ड में बात करता है। बिना वजह सब को परेशान करता रहता है .." - चाँद ने मन्टू की तरफ़दारी लेते हुए भूरा को मुस्कुराते हुए झिड़का। चाँद .. जो भाड़े पर टैक्सी चलाता है। उसकी कार में ज्यादातर "ओला" द्वारा बुकिंग के तहत तथाकथित बड़े-बड़े साहब और मैम साहब जैसे लोगों की सवारी चलती हैं।

शहर में किसी मिली जुली आबादी वाले एक मुहल्ले में चौक के एक तरफ फुटपाथ पर अवस्थित "रसिक चाय दुकान" के इर्द-गिर्द रोज की तरह हर उम्र और हर वर्ग के लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है। इन्हीं जमावड़े में से तीन लोगों- भूरा, मन्टू और चाँद की भी रोज की तरह अपने-अपने काम पर जाने से पहले यहाँ की चाय और कभी-कभार एक-दो नमकीन बिस्कुट के साथ दिन की शुरुआत होती है। तीनों आपस में अपने-अपने धंधे-पेशे से मिलने वाले बीते दिन वाले दिन भर के अनुभवों को एक दूसरे से साझा करते हैं।

यूँ तो यह चाय की दुकान प्रतिदिन सुबह छः बजे से शाम सात बजे तक दिन भर ही खुली रहती है। पर यहाँ सुबह और शाम के वक्त दो-तीन घन्टे कुछ ज्यादा ही चिल्ल-पों मची रहती है। अभी भी सुबह के लगभग साढ़े छः बज रहे हैं। रोज की तरह सुबह-सुबह वाली चिल्ल-पों मची हुई है।

इस चाय की दुकान के लगभग पास में ही नगर निगम वालों का एक बड़ा-सा कूड़ेदान रखा हुआ है। या यूँ कहें कि इसी कूड़ेदान की ओट में ये चाय की दुकान टिकी हुई है। बस .. एवज़ में रसिक चाय वाले को हर सप्ताह किसी ख़ाकीधारी के जेब तक कुछ नीले-पीले रंगों में रंगे सदैव मुस्कुराते रहने वाले एक खादीधारी विशेष को सुलाना होता है। 

आसपास के मुहल्ले वाले जो नगर निगम की आने वाली गाड़ी के समय अपने-अपने घर पर उपलब्ध नहीं रहते हैं, बल्कि काम-धंधे की वजह से घर से सुबह ही निकल जाते हैं और अपने-अपने निजी कारणों से परिस्थितिवश घर में अकेले ही रहते हैं, तो वो लोग काम-धंधे पर जाते हुए इसी कूड़ेदान में अपने-अपने घर के कचरों को डाल जाते हैं और सुबह-दोपहर में नगर निगम वाली गाड़ी प्रसून जोशी द्वारा लिखी रचना, जिसे विशाल खुराना के संगीत निर्देशन में कैलाश खेर की पुरुषत्व भरी आवाज़ से गीत का शक़्ल दिया गया है, को बजाते हुए .. "स्वच्छ भारत का इरादा, इरादा कर लिया हमने, देश से अपने ये वादा, ये वादा कर लिया हमने" - आकर उन कचरों को समेट कर ले जाती है, ताकि अपना स्वदेशी "स्वच्छ भारत अभियान" सफल बना रहे .. बस यूँ ही ...

परन्तु कई लोग हड़बड़ी में या बस यूँ ही अपने घर के कचरे को कूड़ेदान के बजाय उसी के इर्दगिर्द ही, कूड़ेदान के बाहर भी फेंक कर "स्वच्छ भारत अभियान" को निष्क्रिय करने में तनिक भी नहीं हिचकते हैं।

भूरा अपने अंदाज़ में हर बार की तरह ठठाकर कर हँसता हुआ - "अबे 213 नम्बर वाली भाभी का ना ... "

"चुप हो जा स्साले .. सुबह-सुबह फिर तेरी कोई गन्दी बातें होंगी .. " - मन्टू जोर से भूरा को घुड़क रहा है .. बस यूँ ही ...


शेष .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (२) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ...




8 comments:

  1. harlot वेश्या, पुंश्‍चली
    demi-semiquaver एक विशेष स्‍वर (आधे सेमीक्‍वेवर के बराबर का), संदिग्‍ध चरित्र की स्‍त्री, पुंश्‍चली, दुश्‍चरित्रा

    गूगल ज्ञान ये मिला |

    फिर पढ़ा | सुन्दर |

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. गूगल से ही सही, पर सही पकड़े हैं ...😂😂😂

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  2. रोचक कहानी लग रही अगले भाग की प्रतीक्षा है।
    नये शब्द से परिचय हुआ।
    आप किसी भी विषय पर लिखे उसमें अनेक विषय
    के कुछ पन्ने नत्थी किये होते है, यही आपकी लेखनी का अनूठापन है।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जुलाई २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को "पाँच लिंकों का आनन्द" के मंच पर अपनी प्रस्तुति में मेरी बतकही को स्थान देने के लिए ...
      शीर्षक वाला शब्द ऐसा भी नूतन नहीं है, जिसे पहली बार जाना जाए .. एक में अनेक नत्थी करना मेरी मजबूरी होती है और प्रसंगवश बतकही का ताना-बाना .. बस .. बुनाता हुआ चला जाता है .. हाँ, उसे परिष्कृत करने की ज़हमत नहीं उठाते, बस ज्यों का त्यों परोस देते हैं .. बस यूँ ही ...

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  3. बहुत रोचक धारावाहिक... अगली कड़ी का इंतजार रहेगा ।

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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  4. रोचक कहानी ...अगले अंक का इंतजार रहेगा

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    1. जी ! नमन संग आभार आपका ...

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