Thursday, March 16, 2023

ताने तिरपाल

पोखरों में सूने-से दोनों कोटरों के,

विरहिणी-सी दो नैनों की मछली।

मिले शुष्क पोखरों में तो चैन उसे,

तैरे खारे पानी में तब तड़पे पगली।


ताने तिरपाल अपने अकड़े तन के,

यादों में पी की बातें बीती पिछली।

कैनवास पर खुरदुरे-रूखे गालों के, 

खींचे अक़्सर अँसुवन की अवली।


बाँधे गठरी हर पल पल्लू में अपने,

भर-भर कर बूँदें आँसू की बावली।

डालें गलबहियाँ पल्लू उँगलियों में,

मची हो मन में जब-तब खलबली।


काश ! बुझ पाती चिता संग पी के,

सुलगन मीठी बेवा के तन-मन की। 

ना संदेशे, लगे अंदेशे, कई पीड़ाएँ,

झेलती विरहिणी बेवा-सी बेकली।




 

Monday, March 13, 2023

पर नासपीटी ...

टहनियों को
स्मृतियों की तुम्हारी
फेंकता हूँ 
कतर-कतर कर 
हर बार,
पर नासपीटी
और भी कई गुणा 
अतिरिक्त
उछाह के साथ
कर ही जाती हैं
मुझे संलिप्त,
हों मानो वो
टहनियाँ कोई
सुगंध घोलते
ग़ुलाबों की .. शायद ...

काश ! .. हो पाता
सहज भी 
और सम्भव भी,
फेंक पाना एक बार
उखाड़ कर
समूल उन्हें,
पर यूँ तो 
हैं अब
असम्भव ही,
क्योंकि ..
जमा चुके हैं जड़
उनके मूल रोमों ने 
समस्त शिराओं 
और धमनियों में
हृदय की हमारी .. बस यूँ ही ...