एक शाम अर्धांगनी की उलाहना -
"बच्चे अब बड़े हो गए हैं !!!
आपको शर्म नहीं आती क्या !?"
मैं घायल मन से -
"शर्म ही आती, तो ये बच्चे नहीं आते,
और बच्चे बड़े हो भी गए तो बतलाओ भला !!
उनके बढ़ने और अपनी रुमानियत घटने का
कौन सा अनुपातिक सम्बन्ध है ..... बोलो भला !?
पप्पू के admission के वक्त दिखा ना था पिछले साल
अपने college के दिनों का गुलमोहर टहपोर लाल
आज भी मौसम में खिला करता है वैसा ही
जैसा खिला करता था उन दिनों .. हमारे ज़माने में
हमारे college के campus में
हाँ .. टहपोर चाँदनी भी तो आज भी उतनी ही खिलती है
जितनी खिला करती थी वर्षों पहले .. हर पूर्णिमा के रात
हम दोनों दूर अपने-अपने आँगन या छत से मिनटों
तयशुदा एक ही समय पर निहारते थे चाँद को अपलक
ये सोच कर कि हमारी नजरें टकरा रही है साथ-साथ
फिर हमारी रुमानियत क्यों कम होने लगी भला !?
और फिर हमारी रुमानियत को
किसी की नज़र भी तो नहीं लगी होगी
लगी भी है तो ... मिरचा, लहसुन,सरसों लेकर 'न्योछ' दो
नज़र उतर जायेगी
पर ये कह कर दिल मत तोड़ा करो यार ..
कि ...
"बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।"
"बच्चे अब बड़े हो गए हैं !!!
आपको शर्म नहीं आती क्या !?"
मैं घायल मन से -
"शर्म ही आती, तो ये बच्चे नहीं आते,
और बच्चे बड़े हो भी गए तो बतलाओ भला !!
उनके बढ़ने और अपनी रुमानियत घटने का
कौन सा अनुपातिक सम्बन्ध है ..... बोलो भला !?
पप्पू के admission के वक्त दिखा ना था पिछले साल
अपने college के दिनों का गुलमोहर टहपोर लाल
आज भी मौसम में खिला करता है वैसा ही
जैसा खिला करता था उन दिनों .. हमारे ज़माने में
हमारे college के campus में
हाँ .. टहपोर चाँदनी भी तो आज भी उतनी ही खिलती है
जितनी खिला करती थी वर्षों पहले .. हर पूर्णिमा के रात
हम दोनों दूर अपने-अपने आँगन या छत से मिनटों
तयशुदा एक ही समय पर निहारते थे चाँद को अपलक
ये सोच कर कि हमारी नजरें टकरा रही है साथ-साथ
फिर हमारी रुमानियत क्यों कम होने लगी भला !?
और फिर हमारी रुमानियत को
किसी की नज़र भी तो नहीं लगी होगी
लगी भी है तो ... मिरचा, लहसुन,सरसों लेकर 'न्योछ' दो
नज़र उतर जायेगी
पर ये कह कर दिल मत तोड़ा करो यार ..
कि ...
"बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।"