" जमूरे ! तू आज कौन सी पते की बात है बतलाने वाला ...
जिसे नहीं जानता ये मदारीवाला "
" हाँ .. उस्ताद !" ... एक हवेली के मुख्य दरवाज़े के
चौखट पर देख टाँके एक काले घोड़े की नाल
मुझे भी आया है आज एक नायाब ख्याल "
" जमूरे ! वो क्या भला !?
बतलाओ ना जरा ! "
" उस्ताद ! क्यों ना हम भी अपनी झोपड़ी के बाहर
टाँक दें काले घोड़े की एक नाल
शायद सुधर जाये हमारा भी हाल "
" जमूरे ! बड़े लोगों की बातें जाने बड़े लोग सब
पता नहीं मुझे घोड़े की नाल ठोंकने का सबब "
" उस्ताद ! सोच लो ... लोग हैं पढ़े-लिखे
गलत कुछ थोड़े ही ना करते होंगे .. "
" जमूरे ! "
" हाँ .. उस्ताद ! "
" जिस घोड़े के चारों पैरों में एक-एक कर
चार नाल ठुंके होते है ... वो घोड़ा सफ़ेद हो या काला
वो घोड़ा तो ताउम्र बोझ ढोता है ... चाबुक भी खाता है ...
फिर उसके एक नाल से क्या कल्याण होगा भला !?
अपने छोटे दिमाग से सोचो ना जरा ...और ...
उसके एक टुकड़े को ठोंक-पीट कर बनाई अँगूठी
कितना कल्याणकारी होती होगी भला !? "
" उस्ताद ! धीरे बोलो ना जरा ...
सुन लिया किसी ने तुम्हारा ये 'थेथरलॉजी'
तो फिर कौन देखेगा भला अपना मदारी !?
सोचो ! सोचो ! ... गौर से जरा ...
इसलिए अगर चलाना है धंधा अपना ...
तो आँखे मूँदे अपनी
'पब्लिक' की सारी की सारी बातें माने जा
सवा करोड़ की आबादी हमारी तरह
है मूर्ख थोड़े ही ना !? " ...
जिसे नहीं जानता ये मदारीवाला "
" हाँ .. उस्ताद !" ... एक हवेली के मुख्य दरवाज़े के
चौखट पर देख टाँके एक काले घोड़े की नाल
मुझे भी आया है आज एक नायाब ख्याल "
" जमूरे ! वो क्या भला !?
बतलाओ ना जरा ! "
" उस्ताद ! क्यों ना हम भी अपनी झोपड़ी के बाहर
टाँक दें काले घोड़े की एक नाल
शायद सुधर जाये हमारा भी हाल "
" जमूरे ! बड़े लोगों की बातें जाने बड़े लोग सब
पता नहीं मुझे घोड़े की नाल ठोंकने का सबब "
" उस्ताद ! सोच लो ... लोग हैं पढ़े-लिखे
गलत कुछ थोड़े ही ना करते होंगे .. "
" जमूरे ! "
" हाँ .. उस्ताद ! "
" जिस घोड़े के चारों पैरों में एक-एक कर
चार नाल ठुंके होते है ... वो घोड़ा सफ़ेद हो या काला
वो घोड़ा तो ताउम्र बोझ ढोता है ... चाबुक भी खाता है ...
फिर उसके एक नाल से क्या कल्याण होगा भला !?
अपने छोटे दिमाग से सोचो ना जरा ...और ...
उसके एक टुकड़े को ठोंक-पीट कर बनाई अँगूठी
कितना कल्याणकारी होती होगी भला !? "
" उस्ताद ! धीरे बोलो ना जरा ...
सुन लिया किसी ने तुम्हारा ये 'थेथरलॉजी'
तो फिर कौन देखेगा भला अपना मदारी !?
सोचो ! सोचो ! ... गौर से जरा ...
इसलिए अगर चलाना है धंधा अपना ...
तो आँखे मूँदे अपनी
'पब्लिक' की सारी की सारी बातें माने जा
सवा करोड़ की आबादी हमारी तरह
है मूर्ख थोड़े ही ना !? " ...