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Friday, January 31, 2020

कुछ नमी-सी ...

बयार आज अचानक कुछ-कुछ..
चिरायंध गंध से है क्यों बोझिल
शायद गाँव के हरिजन टोले में फिर
लाए गए किसी श्मशान से अधजले बाँस में
बाँध कर पैर चारों किसी जिन्दा सूअर के
लटका कर उल्टा उसे है पकाया जा रहा
पर .. साहिब !... आवाज़ तो रिरियाने की
किसी जलते सूअर की .. किसी पकते सूअर की
अभी तक तो कोई आई नहीं है
लगता है .. फिर .. कोई निरीह बलात्कृत बाला
गला घोंट कर आसपास सुलगाई गई है ...

बयार में क्यों दम अब हमारा आजकल
खुली जगहों पर भी घुटने लगा है
लगता है भोपाल गैस काण्ड जैसी
कोई जहरीली गैस है रिस रही
शायद हौले-हौले अब इस शहर में
पर ..साहिब ! ... बेतहाशा तो कहीं भी
कोई भी इंसान भागता दिखता नहीं है
सभी तो हैं इत्मीनान-से बस ठहरे
गोया मन्दिर-मस्जिद अपनी-अपनी जगह पर
लगता है .. अब इन बयार से ही
हिन्दू-मुस्लमान ज़बरन कराई गई है ...

बयार पछुआ जब भी है बहती
सुना है बुजुर्गों से अक़्सर कि ..
मुँह-नाक सुखाने वाली है होती
सूखते हैं गीले कपड़े पसारे हुए अलगनी पर
या थापे गए दीवारों पर गोबर के कंडे
या गर्मी में किसी बदन से पसीने भी जल्दी
और .. हलाल या झटका जिस भी विधि से
मारे गए भेड़-बकरे या गाय की चमड़ी
सूखती हैं टनाटन मानो नाल, ढोल-ढोलक और नगाड़े
शुष्क रहने वाली ये बारहा , ना जाने क्यों आज अचानक
इनमें कुछ नमी-सी लग रही है
लगता है .. यहीं कहीं इर्द-गिर्द ..
लहू से.. किसी अंजान राहगीर के ..
किसी सड़क को फिर से भींजाई गई है ...