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Wednesday, March 10, 2021

अन्योन्याश्रय रिश्ते ...

दुबकी जड़ें मिट्टियों में

कुहंकती तो नहीं कभी,

बल्कि रहती हैं सींचती

दूब हो या बरगद कोई।


ना ग़म होने का मिट्टी में,

ना ही शिकायत कोई कि

बेलें हैं या वृक्ष विशाल 

सजे फूल-फलों से कई।


जड़े हैं तो हैं वृक्ष जीवित

और वृक्ष हैं तो जड़े भी,

अन्योन्याश्रय रिश्ते इन्हें

है ख़ूब पता औ' गर्व भी।


पुरुष बड़ा, नारी छोटी,

बात किसने है फैलायी?

नारी है तभी हैं वंश-बेलें

और मानव-श्रृंखला भी।


बँटना तो क्षैतिज ही बँटना,

यदि हो जो बँटना जरुरी।

ऊर्ध्वाधर बँटने में तो आस

होती नहीं पुनः पनपने की।


है नारी संबल प्रकृति-सी,

सार्थक पुरुष-जीवन तभी।

फिर क्यों नारी तेरे मन में  

है भरी हीनता मनोग्रंथि ?