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Monday, March 28, 2022

यूँ मटियामेट ...

माना है जायज़ तुम्हारा सारे बुतों से गुरेज़, 

तो क्यों नहीं भला मुर्दे मज़ारों से परहेज़ ?


गजवा-ए-हिन्द मायने ख़बरें सनसनीखेज़,

सनक ने की राख़ इंसानियत की दस्तावेज़।


खता लगती नहीं तुम्हें करके कभी ख़तना,

समझते हो हलाल यूँ ज़िल्लत भरी हलाला।



दकियानूसी सोचों से सजी यूँ दिमाग़ी सेज,

क़ैद हिजाबों में सलोने चेहरे हैं बने निस्तेज।


क़ाफ़िर भी हैं इंसाँ, समझो ना तुम आखेट,

अगरचे हो रहे हो तुम भी तो यूँ मटियामेट।


पाने की ज़न्नत में बहत्तर हुर्रों के हो दीवाना,

भले बन जाए जहन्नुम आज अपना ज़माना।