मन के मेरे सूक्ष्म रंध्रों ...
कुछ दरके दरारों ...
बना जिनसे मनःस्थली भावशून्य रिक्त ..
कुछ सगे-सम्बन्धों से कोई कोना तिक्त
जहाँ-जहाँ जब-जब अनायास
अचानक करता तुम्हारा प्रेम-जल सिक्त
और ... करता स्पर्श
कभी वेग से .. कभी हौले-हौले ...
मन बीच मेरे दबे हुए
कुछ भावनाओं के गर्म लावे
कुछ चाहत के गैस और
साथ चाहे-अनचाहे
अवचेतन मन के अवसाद के राख
तब-तब ये सारे के सारे
हो जाना चाहते हैं बस .. बस ...
बाहर छिटक कर जाने-अन्जाने
आच्छादित तुम्हारे वजूद पर
होठों के 'क्रेटर' से
चरमोत्कर्ष की ज्वालामुखी बन कर ...
कुछ दरके दरारों ...
बना जिनसे मनःस्थली भावशून्य रिक्त ..
कुछ सगे-सम्बन्धों से कोई कोना तिक्त
जहाँ-जहाँ जब-जब अनायास
अचानक करता तुम्हारा प्रेम-जल सिक्त
और ... करता स्पर्श
कभी वेग से .. कभी हौले-हौले ...
मन बीच मेरे दबे हुए
कुछ भावनाओं के गर्म लावे
कुछ चाहत के गैस और
साथ चाहे-अनचाहे
अवचेतन मन के अवसाद के राख
तब-तब ये सारे के सारे
हो जाना चाहते हैं बस .. बस ...
बाहर छिटक कर जाने-अन्जाने
आच्छादित तुम्हारे वजूद पर
होठों के 'क्रेटर' से
चरमोत्कर्ष की ज्वालामुखी बन कर ...