शुक्र है कि
होता नहीं
कोई व्याकरण
और ना ही
होती है
कोई वर्तनी ,
भाषा में
नयनों वाली
दो प्रेमियों की
वर्ना ..
सुधारने में ही
व्याकरण
और वर्तनी ,
हो जाता
ग़ुम प्यार कहीं .. शायद ...
कभी भी
कारण भूख के
ठुनकते ही
किसी भी
अबोध के ,
कराने में फ़ौरन
स्तनपान या
सामान्य
दुग्धपान में भी
भला कहाँ
होता है
कोई व्याकरण
या फिर
होती है
कोई भी वर्तनी .. शायद ...
व्याकरण और
वर्तनी का
सलीका
होता नहीं
कोई भी ,
टुटपुँजिया-सा
सड़क छाप
किसी आवारा
कुत्ते में या
विदेशी मँहगी
नस्लों वाले
पालतू कुत्ते में भी ,
तब भी तो होती नहीं
कम तनिक भी
वफ़ादारी उनकी .. शायद ...
काश ! कि ..
गढ़ पाते जो
कभी हम
व्याकरण
मन का कोई
और पाते
कभी जो
सुधार हम
वर्तनी भी
वफ़ादारी की ,
किसी ज़ुमले या
जुबान की जगह ,
तो मिट ही जाता
ज़ख़ीरा ज़ुल्मों का
जहान में कहीं .. शायद ...