Tuesday, November 25, 2025

बित्ते भर का छोकरा ...


सुबह के साढ़े सात बजे एक आम मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के घर में .. करीब नौ वर्षीय बिट्टू 'स्कूल' जाने की तैयारी में पीठ पर 'बैग' लादे हुए ही 'डाइनिंग टेबल' के सामने कुर्सी पर बैठा सुबह का नाश्ता कर रहा है ; ताकि अगर 'स्कूल ऑटो' का 'हॉर्न' नीचे फाटक पर बजे तो वह अपने पहले तल्ले वाले 'फ़्लैट' से दौड़ता-भागता हुआ नीचे 'ऑटो' तक शीघ्र भाग कर जा सके।

बग़ल वाली कुर्सी पर उसके पापा चाय की चुस्कियों के साथ-साथ आज के ताज़ा अख़बार की ताज़ी ख़बरों पर अपनी नज़रें दौड़ा रहे हैं। उनके बग़ल में बिट्टू की दादी माँ बैठीं सामने 'टी वी' पर " आस्था 'चैनल' " से सुबह-सवेरे प्रसारित होने वाले भक्ति के कार्यक्रमों को देख-सुन रहीं हैं। दरअसल दादी माँ स्नान करने की प्रतीक्षा में बैठी हैं , क्योंकि बिट्टू की 'मम्मी' 'बाथरूम' से नहा कर अभी निकलने ही वाली हैं .. शायद ...

शहरों में किराए के 'टूबीएचके' वाले 'फ़्लैट' में जब एक ही 'कंबाइंड लैट्रिन बाथरूम' हो .. तब तो यूँ ही 'एडजस्ट' तो करना ही पड़ता है। जिनमें होता है .. एक 'डाइनिंग हॉल' या 'डाइनिंग स्पेस' कह लीजिए, उसी के बग़ल में 'किचेन' और .. उससे सटा हुआ या सामने एक 'कंबाइंड लैट्रिन बाथरूम' का अंदर की तरफ़ खुलने वाला दरवाज़ा या कहीं- कहीं बाहर की तरफ़ भी .. शायद ...


अक्सर 'बालकॉनी' में गौरैयों, कबूतरों या पंडुकों की आवाज़ें सुनकर ख़ुश होने वाला बिट्टू .. अचानक 'बालकॉनी' से कुछ कौवों की काँव- काँव की आवाज़ें अभी अपने कानों में पड़ते ही ख़ुश होते हुए अपनी दादी से कहता है - " दादी माँ ! देखो आज कौवा भी आया है। "

दादी माँ - " हाँ रे ! .. लगता है आज अपने घर कोई ना कोई मेहमान आने वाला है .. तभी तो ये लोग इतना हल्ला कर रहे हैं। "


बिट्टू - (हँसते हुए) " नहीं दादी माँ .. कोई आने- जाने वाला नहीं है अपने घर में आज .. वो तो सामने वाले 'पार्क' के पास जो कूड़े के ढेर पड़े रहते हैं ना ! .. वहीं पर कल शाम से ही एक मरा हुआ 'स्ट्रीट डॉग' पड़ा हुआ है। उसी के 'ऑपरेशन' में ये लोग सुबह से ही लगे हुए हैं। "

दादी माँ - " राम- राम .. "

बिट्टू - " उन्हीं में से कुछ को प्यास लगी है, तो वही लोग 'बालकॉनी' में .. जो चिड़ियों के लिए बर्त्तन में मम्मी पानी रखती हैं ना ! .. वही पानी पी रहे हैं .. "


तभी फाटक पर 'स्कूल ऑटो' के 'हॉर्न' की आवाज़ सुनकर बिट्टू - " 'बाय पापा', 'बाय मम्मी', 'बाय' दादी माँ " कहता हुआ .. हड़बड़ी में प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही .. तेज़ी के साथ 'फर्स्ट फ्लोर' से नीचे की ओर सीढ़ियों को नापता हुआ भाग कर चला जाता है और उसी समय .. 'बाथरूम' खाली हो जाने पर दादी माँ नहाने के लिए 'बाथरूम' की ओर .. मन ही मन भुनभुनाती हुई प्रस्थान करती हैं, कि - " हमने सालों दुनिया देखी है और ये हम ही को समझाने चला है। अब ये बित्ते भर का छोकरा हमारी बात काटने चला है .. हँ .. ना त् .. ! "


[अब आप सभी भी यहाँ से प्रस्थान कीजिए 🙏 और जाइए .. जाकर अपने-अपने कामों को निपटाइए। दिन-रात केवल अपने-अपने 'मोबाइल' और 'सोशल मीडिया' में मत खपते रहिए 😀 .. बस यूँ ही ...]

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया संदेश, ऑंख मूंद कर हर बात चुपचाप मानना, 'ढर्रे पर चलने से अंध परंपराओं को बढ़ावा ही मिलता है, बौद्धिक विकास, स्वस्थ दृष्टिकोण के लिए समाज का तर्कशील होना बेहद जरूरी है।
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    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २५ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर।
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    1. जी ! .. सुप्रभातं सह मन से नमन संग आभार आपका .. उपरोक्त बतकही को "पाँच लिंकों का आनंद" के मंच पर प्रसारित करने के लिए .. साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से ही सही, परन्तु निजी तौर पर "बित्ता भर का छोकरा" और "बित्ते भर का छोकरा" में अंतर बतला कर व्याकरणीय त्रुटि को सुधरवाने के लिए भी .. बस यूँ ही ... )

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  2. उव्वाहहहह
    शानदार
    वंदन

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    1. जी ! .. सुप्रभातं सह सादर नमन संग आभार आपका ...

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  3. बात काटने वाला चाहे सही ही क्यों न हो पर अहंकार को चोट तो लगती है न जब कोई छोटा बात काटता है, अब अहंकार को कौन समझाए वह तो अपनी ही धुन में रहता है

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    1. जी ! .. सादर नमन संग आभार आपका ... आपने सही कहा .. अहंकार और अहम ने तो ना जाने कितने सम्बन्ध विच्छेद तक ही नहीं, वरन् ना जाने कितने Honour Killing तक करवाएं हैं .. वो भी सगों तक के .. शायद ...

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