पुंश्चली .. (१), पुंश्चली .. (२), पुंश्चली .. (३), पुंश्चली .. (४ ) , पुंश्चली .. (५ ), पुंश्चली .. (६), पुंश्चली .. (७), पुंश्चली .. (८), पुंश्चली .. (९) और पुंश्चली .. (१०) के बाद अपने कथनानुसार आज एक सप्ताह बाद पुनः वृहष्पतिवार को प्रस्तुत है आपके समक्ष पुंश्चली .. (११) .. (साप्ताहिक धारावाहिक) .. भले ही थोड़े ज्यादा ही विलम्ब के साथ .. बस यूँ ही ... :-
अंजलि और उसकी माँ व बाबूजी का त्रिसदस्यी परिवार हरिद्वार, यमुनोत्री और गंगोत्री की यात्रा के साथ-साथ हर जगह धार्मिक मान्यताओं की औपचारिकताएँ पूरी करते हुए और चारों धाम की यात्रा में धार्मिक दृष्टिकोण से तयशुदा क्रम का पालन करते हुए बस द्वारा गौरीकुंड तक सकुशल पहुँच गये थे। जहाँ से उन्हें केदारनाथ मन्दिर तक जाने के लिए पहाड़ों की चढ़ाई वाली पैदल यात्रा करनी थी। उससे पहले मंदाकिनी नदी के तट पर अवस्थित गौरीकुंड में पूरे परिवार को स्नान भी करना था। परन्तु जिस समय सभी बस से गौरीकुंड उतरे थे, शाम हो चुकी थी। अतः एक 'एजेंट' द्वारा पहले से बाबू जी के 'बुक' करवाए गये एक आश्रम में जाकर अपने यात्रा वाले सारे सामान रख कर और हल्का 'फ़्रेश' होकर सभी लोग उपलब्ध बिस्तर पर लेट गये थे। रास्ते भर भूख लगने पर बस में ही घर से लाए ठेकुआ और निमकी खाते हुए सभी लोग आये थे, इसीलिए अभी कुछ खाने की इच्छा नहीं हो रही थी। लेटे-लेटे आपस में गत दिनों की यात्रा वृत्तांत के रोमांच के साथ-साथ आगामी यात्रा की कल्पना की चर्चा करते-करते तीनों लोग नींद की आग़ोश में कब समा गए थे, किसी को पता ही नहीं चला था।
आश्रम के एक कर्मचारी की तेज आवाज़ से सभी की नींद खुली तो रात का पौने दस बजने ही वाला था। आश्रम में रात का भोजन दस बजे तक ही उपलब्ध रहता था, इसीलिए उस समय से पहले एक बार एक कर्मचारी पूरे आश्रम में ठहरे हुए जागे-सोए लोगों को समय-समाप्ति के संदर्भ में आवाज़ लगा कर आगाह कर देता था, ताकि कोई भूखा ही ना सो जाए और आश्रम का भोजनालय बन्द भी हो जाए। सभी जल्दी-जल्दी भोजनालय की ओर भागे। बाबू जी क़ीमत भुगतान कर के तीन 'टोकन' ले आए थे और फिर तीनों लोग 'कैश-टोकन काउंटर' के बगल में ही एक बर्त्तन-स्टैंड में रखी साफ़-सफ़ाई से धुली थाली, कटोरी, गिलास और चम्मच लेकर भोजन-कक्ष की ओर लपके थे। इतनी रात को भी गर्मागर्म, वो भी शुद्ध, सात्विक और शाकाहारी भोजन, भले ही दाल और दो तरह की सब्जियाँ दुबारा गरमायी हुई ही थीं, पर रोटियाँ गर्म-गर्म थीं। भरपेट खाकर सभी अपने कमरे में रात भर के लिए सोने चले गये थे।
अगले दिन तड़के ही जाग कर साफ़-सफ़ाई की दिनचर्या से निबट कर, गौरीकुंड में स्नान-ध्यान कर के पैदल ही चढ़ाई वाले पन्द्रह-सोलह किलोमीटर की यात्रा के लिए निकल पड़े थे सभी। हालांकि ऊपर तक जाने के लिए भाड़े पर डोली और टट्टू-खच्चर की भी सुविधा उपलब्ध थी। पर तीनों को अपने सामर्थ्य पर अटूट विश्वास था और उससे भी ज्यादा भोले नाथ की कृपा पर भरोसा था। हालांकि कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। मैदानी क्षेत्रों में जहाँ जून के महीने में कहीं-कहीं लू तक बहने लगती है, वहाँ से आये इन लोगों को ठंड और भी ज्यादा महसूस हो रही थी। पर पहले से जानकारी होने के कारण सभी गर्म कपड़े की तैयारी कर के ही यहाँ आए थे।
अंजलि के बाबू जी पहले से ही अपने मुहल्ले से दूर बाज़ार में एक 'साइबर कैफ़े' वाले द्वारा केदारनाथ तक जाने वाले मुफ़्त में होने वाले सरकारी नियमानुसार 'ऑनलाइन' पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) कुछ क़ीमत अदा कर के करवा आये थे। उसी से आश्रम की 'बुकिंग' भी करवायी थी और जाने-आने वाली रेलयात्रा के टिकट भी। उसी 'साइबर कैफ़े' वाले ने सब समझा दिया था, कि अपने साथ में पंजीकरण वाले कागज़ के साथ-साथ आधार कार्ड, फोटो और स्वास्थ्य प्रमाण पत्र ('हेल्थ सर्टिफिकेट') होना अतिआवश्यक है। इसके अलावा अगर 'ड्राइविंग लाइसेंस' और 'पैन कार्ड', जिनका बना हुआ हो, तो वो सब भी पास में होना चाहिए। उम्र की सीमा भी उसी ने समझायी थी, तभी तो बाबू जी अंजलि का पंजीकरण करवा पाए थे। इसी साल उसकी उम्र बारह से तेरह में प्रवेश की थी। उधर माँ और बाबू जी ऊपरी उम्र सीमा पैंसठ वर्ष से अभी कोसों दूर थे।
अभी पैदल यात्रा पर निकलने के पूर्व खाने के बाद माँ और अंजलि द्वारा घर से बना कर लाए गए सारे ठेकुआ-निमकी ख़त्म हो चुके थे। पन्द्रह-सोलह किलोमीटर वाली सात-आठ घन्टे की यात्रा आरम्भ करने से पूर्व जब सभी के जरूरी कागज़ात जाँच किए जाने लगे तो अंजलि का आधार कार्ड का बैग में कहीं भी पता नहीं चल पा रहा था। नाके पर उसे सभी जाँचकर्ता कर्मचारी आगे जाने से मना करने लगे, जब तक कि आधार कार्ड पेश नहीं किया जाएगा। अंजलि रोने लग गयी थी। माँ-बाबू जी भी उदास हो गये थे। फिर सभी मिल कर बैग के सारे सामान एक ओर बिखेर कर हर कपड़े के तह खोल-खोल कर और झार-झार कर खोजने लगे। अचानक अंजलि के फ्रॉक से उसका आधार कार्ड टपक पड़ा। तीनों के चेहरे मुस्कान से नहा गये।
अब इतनी मानसिक परेशानी झेलने के बाद आधार कार्ड मिल जाने के बाद आगे जाने की अनुमति मिलने पर अपनी आगे की यात्रा तय करने के लिए तीनों गौरीकुंड से जंगलचट्टी होते हुए भीमबली पहुँचे। वहाँ थोड़ी-सी सुस्ता के और राजमा की सब्जी व रोटी के साथ, झिंगोरे की खीर खा कर .. फिर गर्मागर्म चाय पी कर सभी रामबाड़ा की ओर बढ़ चले थे।
पूरे परिवार ने पहली बार झिंगोरा की खीर चखी थी और राजमा की सब्जी भी। माँ अंजलि से फ़ुसफ़ुसा कर कह रही थी - " झिंगोरा की खीर खुद्दी (टूटे चावल) की खीर जैसी लग रही है .. है ना ? " तो अंजलि भी अपनी बालसुलभ समझ के अनुसार - " और ये राजमा .. लग रहा है कि बोरो (बरबट्टी) के बीज का दादा जी है .. है ना बाबू जी ? "
चढ़ाई के कारण अपनी फूलती साँसों के बावजूद सब हँस पड़े थे। बातें करते .. समूह में जयकारा लगाते .. ना जाने कब रामबाड़ा आ गया। फिर वहाँ भी सभी ने सुस्ता कर चाय-पानी पी।
फिर रामबाड़ा से छोटा लिनचोली से गुजरते हुए लिनचोली पहुँचते-पहुँचते अँधियारे तारी हो गये थे। वहीं पर रात का उपलब्ध भोजन करके रात भर विश्राम करने के बाद सभी पुनः साफ़-सफ़ाई के बाद अगले दिन सुबह-सुबह छानी कैम्प और रूद्रा पॉइंट होते हुए बेस कैम्प पहुँचने के बाद, वहाँ से कतारबद्ध केदारनाथ मन्दिर तक पहुँच कर अपनी यात्रा के दौरान हुई थकान पूरी तरह झटक चुके थे।
चारों ओर पहाड़ों और उनकी चोटियों पर बर्फ़ की सफ़ेदी सभी को भा रही थी। वहाँ पर इलायची दाना के अलावा चौलाई की लाई भी प्रसाद के लिए उपलब्ध था। यथोचित पूजा-अर्चना के बाद एक-दो घन्टे वहाँ बिताने पर .. अब वापसी की बात होने लगी थी। किसी को भी वहाँ से लौटने का मन नहीं कर रहा था। सभी सोच रहे थे .. काश ! .. यहीं एक घर बसा लेते .. पर ठंड से सिहरन भी हो रही थी .. शायद ...
【 कुछ कारणों से इन दिनों की अतिव्यस्तता के कारणवश .. आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को .. "पुंश्चली .. (१२) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】