Thursday, August 10, 2023

पुंश्चली .. (५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)

पुंश्चली .. (१)पुंश्चली .. (२)पुंश्चली .. (३) और पुंश्चली .. (४ ) के बाद अपने कथनानुसार आज एक सप्ताह बाद पुनः वृहष्पतिवार को प्रस्तुत है आपके समक्ष  पुंश्चली .. (५) .. (साप्ताहिक धारावाहिक) .. भले ही थोड़े विलम्ब के साथ .. बस यूँ ही ... :-

अब तक मयंक और शशांक की कड़क 'कटिंग' चाय भी 'डिस्पोजेबल कप' से अपना तबादला करा के दोनों के अधरों के सहारे उनकी जिह्वा और ग्रीवा के रास्ते होते हुए उनके उदर में पूरी तरह अपना डेरा जमा चुकी है। अब इन्हें

अपनी पढ़ाई और 'पी जी' में मिलने वाले सुबह-सुबह के नाश्ते के लिए भी हो रहे समय का ख़्याल आने लगा है। यहाँ से जाने के पहले मयंक हमेशा ही "रसिक चाय दुकान" के मालिक (?) रसिकवा को बोल कर तत्काल पी गयी चाय की क़ीमत महीने भर उसके बहीखाते में उसी से लिखवा कर अभी तक के कुल बकाया राशी की मौखिक जाँच अपनी तरफ़ से कर लेता है। 

हर महीने के पहले सप्ताह में जब कभी भी मयंक या शशांक के घर से इनके अभिभावक द्वारा 'गूगल पे एप्प' से इन दोनों के महीने भर के लिए यहाँ घर-परिवार से दूर 'पी जी' में रहने-खाने और पढ़ाई-दवाई के लिए रुपए भेजे जाने पर या फिर 'इंग्लिश मीडियम' वाले अमीर घरों के 'स्टूडेंट्स' को 'ट्यूशन' पढ़ाने के एवज़ में इन दोनों को मिलने वाले 'फीस' मिल जाने पर .. दोनों में जो भी जिस दिन पहले मिल जाए .. उसी दिन पूछे जाने पर रसिकवा जो भी महीने भर की इनकी चाय और कभी-कभार कुछ नमकीन 'स्नैक्स' के कुल बकाए राशी को बतला देता है, जिसे तभी इन दोनों में से कोई भी लगे हाथ भुगतान भी कर देता है। पर दोनों ही रसिकवा के महीने भर में लिखे-जोड़े गए बहीखाता को 'क्रॉस चेक' नहीं करते हैं। 

इतना विश्वास तो करना ही पड़ता है। विश्वास पर ही तो घर-परिवार ही क्या .. समस्त संसार चलायमान होते हुए भी टिका हुआ है .. है ना ? और फिर .. रसिकवा का बहीखाता थोड़े ही ना किसी .. सेठ-साहुकार का या किसी घूसख़ोर सरकारी कर्मचारी-अधिकारी का या फिर किसी भ्रष्ट नेता-मंत्री के किसी ख़ास 'पी ए' का बहीखाता है .. जिनमें गड़बड़ी होने की सम्भावना होती ही होती है।

रसिकवा द्वारा अपने अभी तक के बकाए की जानकारी होने के बाद मयंक अपने 'पी जी' जाने के लिए जैसे ही चाय दुकान की बेंच से उठने का प्रयास करता है, शशांक उसे पाँच मिनट और बैठने के लिए इशारा कर दिया है।

शशांक - " मालूम है .. कल रात को तुमको एक रहस्यमयी बात बतलाना भूल ही गया था। "

मयंक - " ऐसी भी कौन सी रहस्यमयी बात है यार ? "

शशांक - " कल शाम 'पी जी' लगभग खाली था। तू भी 'ट्यूशन' पढ़ाने गया हुआ था। सारे 'स्टूडेंट्स' और 'वर्किंग' लोग भी अपने-अपने कामों से कहीं ना कहीं निकले हुए थे। सारे 'स्टाफ्स्' भी या तो अपने कमरे में आराम फ़रमा रहे थे या फिर सभी रोज की तरह 'पी जी' वालों के शाम के भोजन के लिए सब्जी-अनाज की खरीदारी करने बाज़ार गये हुए थे। "

मयंक - " तो ? .. कोई भूत-चुड़ैल से सामना हो गया था क्या तुम्हारा अकेले में ? "

शशांक - " अरे .. नहीं .. पर हाँ .. 'नर्सिंग कोर्स' वाली निशा थी 'पी जी' में ..  अपने 'बेड' पर लेटी हुई .. अपने आदतानुसार कान में 'हैडफ़ोन' लगाए अपने 'मोबाइल' में घुसी पड़ी थी। यहाँ आने के बाद छः महीने में ही इसी उम्र में उसकी इसी गंदी आदत के कारण उसकी आँखों पर 'पॉवर' वाला चश्मा चढ़ गया है। पर अपने मोबाइल में घुसे रहने वाली आदत से बाज नहीं आती है। पता चला था कि कल उसकी तबियत कुछ सुस्त थी, इसीलिए अपने 'हॉस्पिटल' से छुट्टी ली हुई थी। "

मयंक - " तो ? .. उसने अकेले माहौल में तुम्हें 'आई लव यू' बोल दिया क्या ? .. " - मयंक बगल में ही बैठे शशांक के कान के क़रीब मुँह लाकर उसे छेड़ने के अंदाज़ में मुस्कुराते हुए फुसफुसाता है, ताकि आसपास उपस्थित मुहल्ले का कोई भी चुहलबाजी में बोली हुई इस बात का बाद में बतंगड़ ना बनाने लग जाए।

शशांक - " अब इतने भी आकर्षक नहीं हैं हम दोस्त .. जो कोई मोहित होकर मुझे सामने से 'आई लव यू' कह के 'प्रपोज़' कर दे। "- इस बार मुस्कुराने की बारी शशांक की है। वह मुस्कुराता हुआ अपनी रहस्यमयी बात आगे बढ़ाता है - " दरअसल कल मोनिका भाभी मुझ से माँग कर मेरा 'मोबाइल' ले गयीं थीं । "

मोनिका भाभी यानि मुहल्ले में अवस्थित एकलौते 'पी जी' की मालकिन। जिनके धर्मपति दुबई में किसी विदेशी 'कम्पनी' में शायद 'मैनेजर' हैं, जो मोनिका भाभी के साथ  शादी होने के एक माह बाद ही अपने काम पर दुबई वापस लौट गए थे। तीन साल पूरे हो गए हैं .. उनको दुबई गये हुए। इस साल शायद महीने भर की छुट्टी में अपने देश- भारत अपने घर आने वाले हैं। ये 'पी जी' वाला मकान उनके पति को पुश्तैनी विरासत में नहीं मिला हुआ है, बल्कि दुबई की अपनी कमाई से शादी से पहले ही बीच-बीच में 'इंडिया' आ-आकर ठीकेदार द्वारा बनवायी गयी अचल सम्पत्ति है।  

मोनिका भाभी की सास अपने छोटे बेटे यानि मोनिका भाभी के देवर के साथ ही गाँव में रहती हैं। इनका देवर भी शादीशुदा है। उसकी एक बेटी भी है लगभग पौने तीन साल की। दरअसल इनके देवर की अपने बड़े भाई से पहले ही शादी हो गयी थी। उनका 'लव मैरिज' हुआ था। इनके देवर और देवरानी .. दोनों ही अपने-अपने घर से तथाकथित "भाग कर" 'कोर्ट मैरिज' कर लिए थे। उन दिनों उधर देवरानी के घरवाले उसकी पारम्परिक शादी की तैयारी में जुटे हुए थे, तो इधर मोनिका भाभी के देवर से किए गये प्यार के वादे पूरे करने के लिए उनकी देवरानी को देवर के साथ भाग कर शादी करनी पड़ी थी। लाख कोशिश करने के बावजूद दोनों तरफ के घर वाले इस प्रेम विवाह हेतु मानने के लिए तैयार ही नहीं थे। ऐसे में इनके पास "भागने" के सिवाय कोई चारा नहीं था। जब मोनिका भाभी की शादी हो रही थी, उस समय इनकी देवरानी छः महीने की गर्भवती थी। सुनते हैं कि बहू के गर्भवती होने के बाद से ही इनकी सास की बेटे-बहू और उससे भी ज्यादा अगली पीढ़ी वाली बहू के गर्भ में पल रही भावी संतान के प्रति मोह-ममता उमड़ पड़ी थी। कुछ उनकी अपनी मजबूरी भी थी सासु माँ की। सासु माँ के छोटे बेटे की भाग कर शादी करने के बाद और बहू के गर्भवती होने के कुछ माह पहले ही उनके पति यानि मोनिका भाभी के ससुर जी स्वर्ग सिधार गए थे। बड़ा बेटा तो पहले से दुबई में था ही। ऐसे में उनके पास छोटे बेटे और बहू को अपनाने के सिवाय कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था।

मयंक - " किसलिए माँग कर ले ... ? "

शशांक - " बोल रहीं थी कि उनके फ़ोन में अभी-अभी 'बैलेंस' ख़त्म हो गया है। अपने बाज़ार गए 'स्टाफ़' को 'रिचार्ज' कराने के लिए बोल कर भेजीं हैं। पर अभी तक लौटा नहीं है वह। फिर बोलीं थीं कि गाँव में उनकी मम्मी की तबियत ख़राब है। मायके में अकेली रहती हैं, इसलिए उनकी चिन्ता हो रही है। उनका हालचाल पूछना है। पाँच मिनट में लौटाने की बात कह के मेरा 'मोबाइल' ले गयीं थीं अपने कमरे में। "

मयंक - " अपनी माँ का कुशलक्षेम जानने के लिए लीं होंगी। इसमें रहस्यमयी क्या है ? पर .. वैसे तुम्हें अपने सामने ही अपना 'मोबाइल इस्तेमाल करने के लिए बोलना चाहिए था। .. आजकल दिन पर दिन 'ऑनलाइन' का कितना ज़्यादा 'फ्रॉड' बढ़ता जा रहा है। "

शशांक - " बोला था पर मानी नहीं। हमने जैसे ही 'स्क्रीन लॉक' को 'थंब इंप्रेशन' से खोल कर दिया, वह अपने 'मोबाइल' के 'कॉन्टेक्ट लिस्ट' से एक 'नम्बर' देखकर मिलाते हुए अपने कमरे में पाँच मिनट में लौटाने की बात कह कर चली गयीं थीं, पर .. पाँच मिनट के पहले ही लौटा भी गयीं थीं। उनके जाते ही अपने 'मोबाइल' को 'चेक' किया तो देखा कि उन्होंने मेरे 'कॉल डिटेल्स लिस्ट' से अपने वाले 'डायल' किए हुए 'नम्बर' को 'डिलीट' कर चुकीं थीं। "

मयंक - " अपनी माँ से बात करने के बाद उनका 'नम्बर' भला कोई क्यों 'डिलीट' करेगा यार .. "

शशांक - " यही तो रहस्यमयी है। उनको इसका एहसास या इसकी जानकारी नहीं थी कि उनके 'कॉल' वाला 'नम्बर'  मेरे 'मोबाइल' के 'ट्रू कॉलर' में और उनकी बातचीत की 'रिकॉर्डिंग' मेरे 'मोबाइल' के 'कॉल रिकॉर्डर' में 'सेव' हो गया था। " अपनी आवाज़ और भी धीमी करते हुए लगभग फुसफुसाते हुए आगे बतलाया - " उत्सुकतावश खंगाला तो 'ट्रू कॉलर' से पता चला कि वह 'नम्बर' किसी राजन नाम के आदमी का है। और .. 'कॉल रिकॉर्डर' के अनुसार मोनिका भाभी उसको प्यार से झिड़कते हुए कह रहीं थीं कि मेरा फ़ोन उठा क्यों नहीं रहे हो, जबकि हम बार-बार 'कॉल' कर रहे हैं फिर भी .. ये नया 'नम्बर' देख कर उठा लिए .. वर्ना .. ख़ैर ! .. इस समय कहाँ हो ? .. 'आई मिस यू' .. मोनिका भाभी की आवाज़ रूमानी अंदाज़ में लाड़ के साथ बोल रहीं थीं .. उधर से राजन बहुत ही धीमी आवाज़ में बोल रहा था कि अभी घर पर हूँ .. बहन को "देखने" कुछ लोग घर पर आए हुए हैं .. बाहर निकल के तुम्हारे 'नम्बर' पर 'कॉल' करता हूँ .. आवाज़ से तो कोई युवा ही लग रहा था। "

मयंक - " मतलब झूठ पर झूठ .. 'बैलेंस' ख़त्म होने वाली बात भी और मम्मी से बात करने वाली बात भी। अगर इनका 'बैलेंस' ख़त्म था, तो ये बार-बार उस राजन को 'कॉल' कैसे कर रहीं थीं ? .. ख़ैर ! .. छोड़ो इन सब बातों को .. चलो अब .. देर हो रही है .. मोनिका भाभी और राजन .. दोनों को ही उनके हाल पर छोड़ दो .."

अब दोनों उठ कर अपने 'पी जी' की ओर चले जा रहे हैं।

उन दोनों के जाते ही चाँद और भूरा अभी राहत की साँसें लेकर फिर से चालू हो गए अपनी बातों को लेकर ...

चाँद - "ओ ~~~ बी ब्लॉक वाले 213 नम्बर में 'केचप' की फैक्ट्री चालू होने से तेरा मतलब है .. कि .. 213 नम्बर वाली भाभी को ..." 

भूरा - " हाँ .. महीना चालू हुआ है। "

चाँद - " अबे ! उसे पढ़े लिखे लोग 'मेन्स' कहते हैं और कुछ लोग 'पीरियड' भी। "

मन्टू - " कई लोगों को माहवारी भी कहते सुना है बे .. अबे चाँद की औलाद .. पढ़े-लिखे लोगों की बात का तुझे कैसे पता ? आँ ? "

चाँद - "अमा यार ! सुना नहीं अभी मयंक और शशांक भईया यही सब तो बात कर रहे थे दोनों और .. फिर दिन भर टैक्सी ही तो चलाता हूँ ना।"

मन्टू - "हाँ तो ?"

चाँद - "उसमें एक से एक बड़े-बड़े लोग सफ़र करते हैं और कई दफ़ा वो अपनी बातों की रौ में भूल जाते हैं कि आगे की ड्राइविंग सीट पर एक चाँद नाम का ड्राइवर भी बैठा उनकी रूबरू हो रही या फिर फोन पर होने वाली आपसी बातें लगातार सुन रहा है। और तो और 'रियर-व्‍यू मिरर' में उनकी हरक़तों को भी चोरी-छिपे देख भी रहा है।"

भूरा - "अच्छा !?"

चाँद - "हाँ .. और नहीं तो क्या ! ... एक शाम एक साहब आई टी पार्क से बैठे और रास्ते में एक कूरियर वाली ऑफिस से एक मैम को साथ लेकर शहर के एक बड़े होटल चलने की बात कर रहे थे। आपस में बातें कर रहे थे, कि आज रात के लिए उस होटल में उन दोनों के लिए 'रूम' की बुकिंग है। पर मैम ने ये कहते हुए होटल जाने से मना कर दिया कि माना कि वह इस शहर में अकेली अपने घर परिवार से दूर 'वर्किंग वीमेन हॉस्टल' में रहती हैं, उनको रात में साहब के साथ रात बिताने में भी कोई ऐतराज भी नहीं है और ना कभी रहा है, पर .. आज .. उनको कल से ही 'मेन्स' हो रहा है। काफ़ी 'ब्लीडिंग' भी हो रही है। पता था कि वह साहब एक महीने बाद दो दिनों के 'टूर' पर आने वाले हैं। दो दिन से ज्यादा रुक भी नहीं सकते। कम्पनी की 'अर्जेंट टूर' पर हैं। हालांकि मैम ने उसे रोकने के लिए गोली भी खायी थी। पर साली रुकी ही नहीं। बाद में झक मार के साहब बोले "बार्बीक्यू" ले चलो।"

मन्टू - "अब ये "बार्बीक्यू" क्या होता है बे ?"

चाँद - "अरे बाबा .. सुना है कि ये बड़े-बड़े लोगों के खाने का 'ब्रांडेड' होटल होता है। जहाँ शादी-विवाह की तरह 'बुफे स‍िस्‍टम' में 'वेज-नॉन वेज' खाना सजा रहता है। एक 'फिक्स' पैसा जमा करके जितना मन उतना खाओ। कोई रोक-टोक नहीं। मुझे रुकने के लिए बोल कर वे दोनों अंदर चले गये। फिर उसके बाद शायद 'नाइट शो' फ़िल्म देखने के लिए एक 'मल्टीप्लेक्स' तक जाकर मुझे छोड़ दिए। आगे का मालूम नहीं। "

भूरा - "चाँद भईया ही तो हमको एक दिन बतलाए थे कि इनकी टैक्सी में सफ़र करने वाले कई साहब और मैम साहब लोग आपस में कोड वर्ड में बातें करते हैं। अगर घर से फ़ोन आ गया तो सवारी मैम अपनी मम्मी को बोलेंगी कि महीना चल रहा और तुरन्त 'बॉय फ्रेंड' का फ़ोन आएगा मिलने के लिए तो कोई बोलेंगी कि अभी तो 'मेन्स' चल रहा है, तो कोई बोलेंगी कि 'टोमैटो सॅस प्रोडक्शन' चालू है, तो कोई अभी 'केचप' की 'फैक्ट्री' लगने की बात करती हैं या कोई-कोई लाल झंडा फ़हराया हुआ है बोल के अपना हाल बतलाती हैं। तभी तो अभी हम भी बी ब्लॉक वाले 213 नम्बर में 'केचप फैक्ट्री' के चालू होने वाली बात बोल रहे थे बाबा .."

मन्टू - " चुप हो जा नासपीटे ! .. भाभी माँ समान होती हैं। उनके बारे में ऐसा बोलना या सोचना गलत होता है। बुरी बात है ये सब सोचना या बोलना। "

चाँद - " सुन बे मन्टू .. तू जो ये ज्ञान दे रहा है ना .. ये बुरी बात .. ये गलत बात .. ये सब बस हमारे मिडिल क्लास में ही चलता है भाई .. नहीं तो .. "

तभी रोज की तरह सुबह-सुबह अपनी 'ड्यूटी' पर जा रही इसी मुहल्ले में किराए पर रहने वाली अंजलि पर मन्टू की नज़र जाती है और वह सब को चुप हो जाने के लिए झिड़कता है।

मन्टू - " चुप हो जाओ बांगड़ों .. "


【 शेष .. आगामी वृहष्पतिवार को ..  "पुंश्चली .. (६) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】



2 comments:

  1. बढ़िया जा रहे हो :) हौले हौले

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका साहिब .. हौले-हौले .. 🙄

      Delete