कल की बतकही- "वर्णमाला के रोमों में लिपटी ..." से जुड़ी हुई मेरी आज की बतकही- "रात के 8 बज कर 15 मिनट ..." को आपसे पढ़ने के साथ-साथ सुनने के लिए भी नहीं भूलने की बात की थी हमने, तो फिर .. देरी किस बात की भला ? .. शुरू कर देते हैं .. आज की बतकही .. बस यूँ ही ...
सर्वविदित है कि मुहल्ले, गाँव-शहर, जिला, राज्य, देश, सागर, महासागर इत्यादि की जिस तरह कई सीमाएँ होती हैं, ठीक वैसी ही पशु-पादप या इंसान या फिर संस्था-संस्थान की, चाहे सरकारी हों या निजी .. सभी की अपनी-अपनी सीमाएँ होती हैं .. शायद ...
ऐसे में स्वाभाविक है कि, "प्रसार भारती" की भी एक सार्वजनिक प्रसारण संस्था होने के नाते, जिनके अंतर्गत आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा प्रसारण की जिम्मेवारी होती है, कुछ ना कुछ सीमाएँ होती ही होंगी। यहाँ से प्रसारित होने वाले प्रत्येक कार्यक्रम की समय सीमा और समयावधि सीमा निर्धारित होने के साथ-साथ उनमें प्रयुक्त शब्दों व तथ्यों की भी अपनी सीमाएँ होती हैं।
इन्हीं सभी सीमाओं की परिधि में सिमटी, लिपटी .. हमारी बतकही- "वर्णमाला के रोमों में लिपटी ..." को हमने एक संक्षिप्त रूप देकर एक वार्ता- "अंतरराष्ट्रीय फ़लक में हिंदी" नामक कार्यक्रम के लिए सुधार किया था, जिसका प्रसारण प्रसार भारती (भारतीय लोक सेवा प्रसारक) के अंतर्गत आकाशवाणी, देहरादून द्वारा मनाए जा रहे हिंदी माह के तहत 18 सितम्बर 2023 को रात आठ बजे किया जाना था।
यूँ तो सप्ताह भर पूर्व वहाँ से वार्ता का विषय मिला था- "वैश्विक परिदृश्य में हिंदी", जिसकी 'रिकॉर्डिंग' आकाशवाणी, देहरादून के 'स्टूडियो' में 15 सितम्बर 2023 को सुबह लगभग 11 बजे कुछ विभागीय औपचारिकताओं की पूर्ति के पश्चात "एक वार्ता- अंतरराष्ट्रीय फ़लक में हिंदी" के तहत की गयी थी।
परन्तु यह कार्यक्रम उनके द्वारा निर्धारित समय 18 सितम्बर 2023 को रात के 8 बजे की जगह रात के 8.15 बजे आरम्भ हुआ था। अवश्य ही उनकी कोई औचक सीमा रही होगी। हमारी वार्ता से सम्बन्धित प्रसारित होने वाले निर्धारित कार्यक्रम में हुई किसी संभावित औचक रद्दोबदल की आशंका के कारण पन्द्रह मिनटों तक अपनी बढ़ी हुई धुकधुकी को नियंत्रित करने का असफ़ल प्रयास करते हुए .. मन मार कर .. परिवर्तित कार्यक्रम सुनते रहे हम .. यूँ तो रात 7.56 बजे से ही अपने 'मोबाइल' में यथोचित App पर मनोयोग के साथ प्रसारित कार्यक्रम सुनना शुरू कर चुके थे .. बस यूँ ही ...
ख़ैर ! .. "रात के 8 बज कर 15 मिनट" की उद्घोषणा के बाद तत्कालीन महिला उद्घोषक की मधुर आवाज़ में पूर्व निर्धारित कार्यक्रम .. "एक वार्ता- अंतरराष्ट्रीय फ़लक में हिंदी" की उद्घोषणा के साथ ही वार्ताकार का नाम- श्री सुबोध सिन्हा सुनकर भी .. धुकधुकी कम होने के बजाय .. और भी बढ़ गयी .. पर इस बार आशंका की जगह ख़ुशी के कारण .. शायद ...
बतकही के बहाने बहुत हो गया आत्मश्लाघा अब तक तो .. अब इसे विराम देकर .. अब सुनते हैं उस प्रसारित कार्यक्रम की 'रिकॉर्डिंग' .. बस यूँ ही ...
【आज की बतकही का शीर्षक शायद "8 pm" (?) वाले वर्ग को निराश कर सकता है .. "8.15 pm" हो जाने की वजह से .. शायद ... 】 :)
अभी ८ ऐ एम वालों से पाला नहीं ना पडा है आपका | फिर भी शुभकामनाएं | :)
ReplyDeleteसाहिब !! .. "पाला" तो अब पड़ने ही वाला है, ठंड में तो "पाला" ही पड़ेगी ना .. अब चाहे 8 am हो या 9 am .. ख़ैर ! .. बतकही छोड़ कर .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका ... शुभकामनाओं से भींजाने के लिए ... :)
Deleteएक-एक पग मंजिल की ओर बढ़ाते चलिए
ReplyDeleteज़मी से आसमां की दूरियां मिटाते चलिए...।
बहुत बधाई एक बार फिर आकाशवाणी देहरादून से प्रसारित होने एक लिए...।
शुभकामनाएँ
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! .. नमन संग आभार आपका .. आपकी शुभकामनाओं के लिए ...
Deleteबातों का सिलसिला जारी रहे
ReplyDeleteबहुत शुभकामनाएं
जी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteआग्रह है मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें,फॉलो करें,आभार
ReplyDelete🙏 जी ! अवश्य ...
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