प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- "पुंश्चली .. (१)" से "पुंश्चली .. (१७)" तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष "पुंश्चली .. (१८) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" .. बस यूँ ही ... :-
गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-
इसी से उसे हर माह पता चलता रहता है, कि अंजलि के "मुश्किल से भरे वो चार दिन" कब शुरू होते हैं और कब ख़त्म .. जिसके बाद उसके 'शैम्पू' किए .. अपने खुले बालों में उसके दर्शन हो जाने से वह मन ही मन .. बहुत ही खुश होता रहता है। पर ये क्या .. अभी तो उसकी आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं है .. चेहरे पर एक तनाव की गहरी रेखा अचानक खींच गयी है। आख़िर ऐसा क्या दिख गया भला उसे अंजलि के घर से निकले आज के कचरे में ... ?
गतांक के आगे :-
अभी मुहल्ले में चौक के पास ही रसिक चाय दुकान के निकट नगर निगम द्वारा रखे गए कचरे के बड़े डब्बे में अपने तीन वर्षीय इकलौते बेटे अम्मू के साथ रोज की तरह स्कूल जाने के दौरान अंजलि द्वारा उसके घर के कचरों से भरी फेंकी गयी थैली से मिले उस सामान विशेष को मन्टू अपने हाथों में उलट-पलट कर उसकी गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर ही रहा है, तभी काफ़ी देर से अपनी चांडाल चौकड़ी के बीच से गायब मन्टू को तलाश करते हुए उसकी चांडाल चौकड़ी के अन्य दो सदस्य- भूरा और चाँद उसके पास आ गए हैं। वे दोनों भी मुहल्ले भर की चहेती गली की कुतिया- बसन्तिया, मन्टू और अंजलि के घर के कचरे की थैली की त्रिकोणीय गुत्थमगुत्थी वाली दिनचर्या से भली-भाँति परिचित हैं।
अचानक भूरा मन्टू की दायीं हथेली से उस वस्तु विशेष को लपक लेता है और उसे उलट-पुलट कर हैरत भरी नज़रों से निहारते हुए - " ये तो किसी टूटे हुए थर्मामीटर का कचरा लग रहा है चाँद भाई .. है ना ? "
चाँद - " नहीं रे बकलोल .. ये .. इसको 'प्रेगनेंसी टेस्ट स्ट्रिप' कहते हैं। ... "
भूरा - " तुमको कैसे पता ? .. ऐसा तो गाहे-ब-गाहे हमारी नगर निगम वाली गाड़ी में मुहल्ले भर के घर-घर से डाले जाने वाले कचरों में नज़र आता ही रहता है भाई .. हम तो उन्हें भी आज तक टूटा थर्मामीटर ही समझते रहे हैं। वैसा ही तो लगता है .. नहीं मन्टू भाई ? " - अपनी बात और समझ के समर्थन के लिए मन्टू को भूरा टटोलने की कोशिश भर करता है। पर ..
मन्टू - " अबे ! .. जब चाँद भाई कह रहे हैं, कि ये 'प्रेगनेंसी टेस्ट स्ट्रिप' है तो .. फिर तू अपना ज्ञान क्यों बघार रहा है। " मन्टू चिड़चिड़ाहट के साथ भूरा को झिड़क दिया है।
भूरा - " ना भाई .. हम चाँद भाई की बात काट नहीं रहे .. हम तो अपनी कम जानकारी को बतला रहे हैं .. बस ... अब चाँद भाई तो अपनी 'टैक्सी' में दिन-रात गिटिर-पिटिर बोलने वाले बड़े-बड़े साहब-मेम साहब को इधर-उधर घुमाते रहते हैं और हम दिन भर घर-घर से कचरा बटोरते चलते हैं .. तो हमारे दिमाग़ में तो कचरा ही होगा ना भाई और ... चाँद भाई आप ही की तरह ज्ञानी प्राणी .. है ना भाई ? .. "
चाँद - " अब ज्यादा 'इमोशनल कार्ड' खेलने की ज़रूरत नहीं है .. बल्कि ... "
भूरा - " अब ये 'इमोशनल कार्ड' क्या .. .. " - भूरा के इस सवाल को बीच में ही काटते हुए मन्टू उसको चुप करा रहा है।
मन्टू - " अबे चुप हो जा तू भूरा के बच्चे ! .. सुबह-सुबह और ज्यादा दिमाग़ को मत पकाओ .. मेरा दिमाग़ ऐसे ही घुम रहा है .. "
भूरा - " क्या हुआ ? .. दिमाग़ क्यों घुमने लगा ? .. खाली पेट में चाय पीने से गैस तो नहीं बन गयी कहीं ? .. "
चाँद - " तू चुप भी करेगा ? .. या .. ऐसी ही बेसिर-पैर की अटकलें लगाता रहेगा ? .. "
चाँद की झिड़की सुनकर भूरा सिटपिटा गया है और मोहन दास करमचन्द गाँधी जी के तथाकथित पालतू (?) तीन बन्दरों में से एक बन्दर की तरह .. अपने बन्द होठों पर अपनी दायीं तर्जनी का ताला जड़ते हुए बोल रहा है - " अच्छा भाई .. अभी से हम चुपचाप .. केवल आप दोनों की बातें सुनते हैं हम .. ठीक ? .."
मन्टू - " चाँद ! .. इस 'स्ट्रिप' की दोनों 'लाइनें' गहरे गुलाबी रंग की हैं .. इसका मतलब तो .. " - लगभग मायूस होकर उदासी भरी आवाज़ में मन्टू अपनी शंका ज़ाहिर कर रहा है।
चाँद - " हाँ .. इसका मतलब तो यही है कि जिसने भी इस 'स्ट्रिप' से अपनी जाँच की है, उसके गाभिन होने का खटका है .."
भूरा - " आपको कैसे पता ? .."
मन्टू - " फिर बीच में टपका बुड़बक कहीं का .. "
चाँद - " 'भेरी सिम्पल' यार .. कई दफ़ा कोई-कोई साहब-मेमसाहब तो हमारे टैक्सी में ही सफ़र के दौरान बैठे-बैठे इसी तरह की 'स्ट्रिप' की दोनों गहरी गुलाबी 'लाइनों' की ज़िक्र करके आपस में लड़ पड़ते हैं। कभी साहब को बच्चा नहीं चाहिए होता है, कभी मेमसाहब को। "
भूरा - " उन लोगों को घर में जगह नहीं मिलता क्या झगड़ने के लिए ? "
चाँद - " अबे पागल .. फिर बीच में टपका .. बिना बीच में टपके तुमको चैन ही नहीं है .. उनमें सौ फ़ीसदी जोड़े नाज़ायज रिश्ते वाले साहब-मेमसाहब का ही होता है। तो फिर उनका घर कहाँ और कैसे होगा ? .. बोलो ! .. उनका घर तो .. या तो होटल, पार्क, सिनेमा घर ता फिर हमारे जैसों की टैक्सी ही है। हाँ .. कभी-कभार वैसे भी जोड़े आते हैं, जो सही मायने में पति-पत्नी होते हैं, पर .. एक ही छोटे-से घर के कम जगह में ही बहुत सारे लोगों के परिवार के बीच अपनी आपसी बहुत सारी पोशीदा बातें नहीं कर पाने वाले बेचारे लोग होते हैं .. जो घर से निकल कर मेरी टैक्सी में यूँ तो बैठते हैं किसी पार्क या चिड़िया घर जा कर अपने पोशीदा मसले सुलझाने के लिए .. पर .. " - अपने ज्ञान की पोटली खोले अपनी बकबक में मशगूल चाँद की निगाह अचानक मन्टू के उदास चेहरे पर पड़ी है, तो वह अपनी मुस्कुराहट को जैसे जज़्ब करते हुए गम्भीर मुद्रा में अपने ज्ञान को पुनः परोसने लगा है - " घर से निकल कर जैसे ही मेरी टैक्सी में बैठती हैं ऐसी जोड़ी तो .. अपनी मंज़िल के आने का इंतज़ार नहीं होता है इनसे .. इधर हम अपनी टैक्सी के गियर बदलते हैं, उधर उनके सब्र के बाँध टूटने के साथ-साथ उनके सुर बदलते हैं। जो बातें घर में परिवार वाली लाज-लिहाज़ से वो नहीं करते, पर टैक्सी में बैठते ही करने लग जाते हैं। "
भूरा - " अच्छा ! ?.. "
चाँद - " और नहीं तो क्या .. उन्हें आगे बैठा मेरे जैसा ड्राईवर भी गाड़ी का पार्ट-पुर्जा ही लगता है रे .. "
चाँद और भूरा की बातें मन्टू को अभी अपनी उलझन के सामने अनर्गल लग रही है। उसका सारा ध्यान अंजलि और उस दो 'लाइनों' वाली 'स्ट्रिप' पर ही केन्द्रित है इस वक्त .. उसे इस वक्त कुछ भी नहीं सूझ रहा है।
मन्टू - " अरे यार चाँद .. तू इस के साथ बकबक करता ही रहेगा या मेरी समस्या को भी सुलझाएगा ? .. बता ! ? .. जब से ये दो धारियों वाली 'किट' मेरे हाथ आयी है ... तब से मेरे माथे में दोधारी तलवार चल रही है भाई ... " - मन्टू कहते-कहते रुआँसा-सा हो गया है। कल तक दूसरों की सहायता के लिए तत्पर खड़ा रहने वाला मन्टू आज अपनी उलझन की बारी आयी है तो स्वयं को निःसहाय महसूस कर रहा है .. शायद ...
चाँद - " यार सुन .. साहब और मेमसाहब लोगों की जो बकवासें हमने सुनी हैं .. उनके मुताबिक़ तो .. 'प्रेगनेंसी टेस्ट किट' की इस 'स्ट्रिप' पर जो दो 'लाइनें' हैं, उन्हें 'टेस्ट लाइन' और 'कंट्रोल लाइन' कहते हैं और..अगर दी गयी तज्वीज़ के मुताबिक़ आज़माइश के वक्त इस 'स्ट्रिप' पर 'यूरिन' की चंद बूँदें 'ड्रॉपर' से टपकाने पर एक ही 'लाइन' का रंग गहरा गुलाबी हो तो उसे 'नेगेटिव रिजल्ट' कहते हैं .. मतलब वो गाभिन यानी गर्भवती नहीं है और .. "
मन्टू - " और ? .."
चाँद - " और .. अगर .. इस 'स्ट्रिप' की तरह अगर .. दोनों ही 'लाइनें' गहरा गुलाबी हो जाएं तो इससे मालूम होता कि .. "
मन्टू - " पर ये कैसे सम्भव है ? रंजन को गुज़रे तो साल भर से ज्यादा हो गया .. फिर ये कैसे हो सकता है चाँद भाई ? बोलो ना जरा ... "
दरअसल रंजन से मन्टू की बहुत गहरी दोस्ती थी। रंजन के गुजरने के बाद रज्ज़ो के प्रेम से वंचित मन्टू मन ही मन अंजलि को चाहने लगा था।
चाँद - " और तो उस घर में शनिचरी चाची रहती हैं। उनसे भी तो ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। है ना ? '''
मन्टू - " और तो कोई औरत रहती नहीं है उस घर में .. हमारे तो सपनों का महल ही ढह गया है .. आख़िर अंजलि ने ये सब किसके साथ किया होगा। हमको तो ये पता लगाना ही पड़ेगा ..."
【आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को .. "पुंश्चली .. (१९) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】
घातक एक्स किरणें गामा किरणों में बदलती हुई दिखती हैं तीव्र भेदन में हल्की सी कमी के साथ :)
ReplyDeleteजी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. कमी ही तो आँखों में नमी लाती है .. शायद ...
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