Showing posts with label ग़ुलाब. Show all posts
Showing posts with label ग़ुलाब. Show all posts

Monday, March 13, 2023

पर नासपीटी ...

टहनियों को
स्मृतियों की तुम्हारी
फेंकता हूँ 
कतर-कतर कर 
हर बार,
पर नासपीटी
और भी कई गुणा 
अतिरिक्त
उछाह के साथ
कर ही जाती हैं
मुझे संलिप्त,
हों मानो वो
टहनियाँ कोई
सुगंध घोलते
ग़ुलाबों की .. शायद ...

काश ! .. हो पाता
सहज भी 
और सम्भव भी,
फेंक पाना एक बार
उखाड़ कर
समूल उन्हें,
पर यूँ तो 
हैं अब
असम्भव ही,
क्योंकि ..
जमा चुके हैं जड़
उनके मूल रोमों ने 
समस्त शिराओं 
और धमनियों में
हृदय की हमारी .. बस यूँ ही ...