Friday, July 19, 2024

असाध्य दंतहीन दंश ... (१)

" लगवा लिए 'इंजेक्शन' ? .. और .. क्या बोले 'डॉक्टर' साहब ? "

समीर माथुर .. जिनकी दिनचर्या में यूँ तो .. सुबह-सुबह किसी भी तरह का 'बिस्कुट' खाना शामिल नहीं है ; क्योंकि उनका मानना है, कि सारे के सारे 'मल्टिग्रेन' वाले या 'रागी' तक से बने होने के दावे करने वाले 'बिस्कुटों' में भी प्रायः पचास प्रतिशत से भी ज्यादा तो मैदा ही होता है और .. आयुर्वेदिक परामर्शों के अनुसार मैदा, सफ़ेद नमक, चीनी इत्यादि जैसे निषिद्ध वस्तुओं का वह अपने आहारों में अमूमन इस्तेमाल नहीं होने देते हैं। 

पर .. चूँकि चिकित्सकीय दृष्टिकोण से .. सुबह-सुबह खाली पेट में या यूँ कहें, कि बासी मुँह रह कर 'इंजेक्शन' नहीं ली जानी चाहिए, तो ऐसे में .. मज़बूरीवश चार 'पीस' 'क्रीम क्रैकर' 'बिस्कुट' ही खा कर, अभी उनको तत्काल सुई लेने के लिए आनन-फ़ानन में मुहल्ले के ही एक दवा दुकान से उचित दवाएँ लेते हुए, मुहल्ले के ही एक 'क्लिनिक' में जाना पड़ा था। अभी-अभी वह वहीं से 'इंजेक्शन' लगवा कर वापस घर आए हैं और आते ही उनकी धर्मपत्नी- श्रावणी सहाय अपनी तरफ़ से भरसक सहानुभूति जतलाते हुए .. उनसे यही दो उपरोक्त प्रश्न उत्सुकतावश पूछ बैठी हैं, कि ..

" लगवा लिए 'इंजेक्शन' ? .. और .. क्या बोले 'डॉक्टर' साहब ? "

वैसे तो अभी सुबह के लगभग साढ़े आठ ही बजे हैं। पर बाहर चल रही धधकती गर्म हवा और तीखे धूप से उबल-भून कर घर आते ही 'फुल स्पीड' में 'सीलिंग फैन' को चालू कर के उसके नीचे उसकी तेज हवा में बैठते हुए समीर माथुर अपनी धर्मपत्नी को प्रत्युत्तरस्वरुप बोल रहे हैं -

" कुछ नहीं .. बोलेंगे क्या भला ! .. एक "टेट्वैक" का और एक "रैबीवैक्स एस" का 'इंजेक्शन' अभी दिए हैं .. बारी-बारी से दोनों बाजूओं में .. बाकी .. और भी पाँच 'एंटी रेबीज इंजेक्‍शन' लेनी है .. अलग-अलग दिनों के अंतराल पर .." 

श्रावणी - " मतलब ? "

समीर - " मतलब क्या ? .. मतलब दूसरी सुई आज से तीन दिनों बाद, फिर तीसरी सात दिनों बाद, फिर चौथी .. "

श्रावणी - " अच्छा .. अच्छा .. समझ गए .. समझ गए। और .. डॉक्टर साहब .. खाने-पीने में भी कोई परहेज़ बोले हैं क्या ? "

समीर - " हाँ .. खाने में तो नहीं, पर पीने में .. बोले हैं कि .. "ड्रिंक" नहीं करनी है। "

श्रावणी - " वो तो .. आप वैसे भी नहीं करते हैं जी। "

समीर - " हाँ तो .. बस्स .. मतलब कोई भी परहेज़ नहीं करनी है .. और हाँ .. लाल मिर्ची का 'पाउडर' है क्या घर में ? .. थोड़ा देना .. "

समीर माथुर के घर की रसोई में लाल मिर्च नाममात्र ही इस्तेमाल की जाती है। वो भी उनकी धर्मपत्नी- श्रावणी सहाय जी की बरज़ोरी से और वो भी .. कश्मीरी लाल मिर्च .. कभी-कभार, किसी-किसी आए-गए अतिथियों के स्वागत में बनायी गयी रसोई में रंग लाने के लिए। दो-तीन महीने में कभी एक बार सौ ग्राम कश्मीरी लाल मिर्च के 'पाउडर' का डिब्बा आ गया घर में, तो काम चल जाता है। बाकी तो .. पाचन तंत्र के स्वास्थ्य के मद्देनज़र हरी मिर्च ही उनकी रसोई में प्रयोग की जाती है। इसीलिए वह अपनी धर्मपत्नी से लाल मिर्च के 'पाउडर' की उपलब्धता के लिए ऐसी शंका से भरा सवाल कर रहे हैं।

श्रावणी - " हाँ .. है .. दे रहे हैं .. पर उसका क्या .. "

समीर - " उसका .. डॉक्टर साहब बोले हैं, कि जहाँ-जहाँ काटा है, वहाँ-वहाँ नल के पानी की तेज धार में रगड़-रगड़ कर साबुन से पाँच-दस मिनट तक धो लीजिएगा और उसी जगह पर मिर्ची भी रगड़ कर धो दीजिएगा .."

श्रावणी - " ओ ! .. अच्छा ! .. मतलब एक तो काटे का दर्द और .. ऊपर से साबुन-मिर्ची से भी आपको परपराएगा .. वो अलग .. "

समीर - " अरे .. ये जानकारी तो 'स्कूल' में 'कोर्स' की किताबों में भी पढ़ायी गई थी .. प्राथमिक उपचार के तहत; पर सुबह .. घबराहट के कारण दिमाग़ में ये बात एकदम से नहीं आ पायी थी।"

श्रावणी - " अच्छा ! "..

समीर - " वैसे भी हमलोग अपने 'स्कूल-कॉलेज' के दिनों में पढ़ी-पढ़ायी बातों को अपने जीवन में कितना ही व्यवहार में ला पाते हैं भला ? हम लोग अपनी पढ़ाई को केवल अच्छे अंकों से 'पास' करने का एक माध्यम भर मानते हैं, ताकी .. कोई भी एक प्रतियोगी परीक्षा 'पास' करके .. ऊपरी आमदनी वाली किसी भी एक सरकारी नौकरी को पा जाना ही मानो .. हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य हो जैसे। फिर उसके बाद तो .. किताबी बातें आयीं-गयीं हो जातीं हैं। "

श्रावणी - " कितना लगा (रुपया) ? "  - किसी भी 'मिडिल क्लास फैमिली' की आर्थिक तंगी वाली चिंताओं से भरा एक आम-सा सवाल।

समीर - " दोनों 'इंजेक्‍शन' के लगभग चार सौ और पचास रुपए के हिसाब से दोनों (सुई) को लगाने के सौ रुपए .. आगे भी .. अगली पाँचों सुइयों के लिए हर बार लगभग चार-साढ़े चार सौ रुपए का ख़र्च .. "

श्रावणी - " एक बात बोलें जी ? .. अब से ना .. इन सब से दूर ही रहा कीजिए। क्या जरूरत है सुबह-शाम खाना खिलाने की इन लावारिस कुत्ते-कुत्तियों को। और भी तो बहुत सारे लोग हैं जी .. मुहल्ले भर में .. इन सब को खिलाने वाले। कैसा ! .. अभी एक शारीरिक कष्ट हो गया आपको .. बैठे- बिठाए .. वो भी सुबह-सुबह। ऊपर से .. सब मिलाकर ढाई-तीन हजार की चपत लगेगी .. सो अलग .. ना जाने किसका मुँह देख कर आज सुबह उठे थे आप .. "

समीर - " धत् ! .. मौका मिला नहीं, कि .. ऊटपटाँग बातें बकने लगती हो तुम .. कितनी बार कहते हैं, कि मेरे सामने इस तरह की ऊल-जलूल दकियानूसी बातें मत किया करो .. पर तुम .. " - फिर बोझिल माहौल को कुछ हल्का करने की सोच कर मुस्कुराते हुए - " तुम्हारा ही तो मुँह देखकर उठते हैं जी रोज और .. आज भी ... "

दरअसल .. कुछ 'स्ट्रीट डॉग', जिनके लावारिस होते हुए भी प्रायः हर मुहल्ले में समीर माथुर जैसे एक या अनेक पालनहार होते हैं, जो स्वतः उनका दायित्व निभाते हैं; जिनसे कुछ को मन की शांति मिलती है और कुछ के लिए पुण्य कमाने का एक माध्यम बनता है। वहीं दूसरी तरफ़ .. कुछ पड़ोसियों के पाले हुए पालतू, पर अपनी गर्दन में बिना 'चेन' वाले पट्टे लपेटे हुए खुले में विचरने वाले कुत्ते; जो अपने तथाकथित पालनहार मालिक के होने के बावज़ूद लावारिस बने मुहल्ले भर में इधर-उधर मुँह मारते फ़िरते हैं। जो गाहे-बगाहे किसी-किसी फेरी वाले या साइकिल-स्कूटी सवार या फिर विशेष लिबासों वाले भिखमंगों को देखकर बेतहाशा भौंकते रहते हैं। मुहल्ले से बाहर के कुत्ते-कुत्तियों को अपने इलाके से गुज़रने पर भौंक -भौंक कर उनको खदेड़ना तो इनका जन्मसिद्ध अधिकार होता ही है।

यूँ तो समीर माथुर की दिनचर्या में शामिल है .. मुहल्ले भर में ऐसे ही विचरते कुत्ते-कुत्तियों को सुबह-शाम दूध-रोटी या 'अरारोट बिस्कुट' खिलाना। परन्तु आज दूध-रोटी या 'अरारोट बिस्कुट' की जगह सुबह-सुबह उन सभी के लिए .. गुज़रे कल के दिन अपने घर आए हुए कुछ विशेष मेहमानों की खातिरदारी में परोसे गए मुर्ग़े व मछलियों के 'नॉन वेज' व्यंजनों की कुछ चूसी-चबाई, बची-खुची, जूठी हड्डियाँ ही उनके बर्तनों में परोस दिए थे। 

अब 'कैनाइन' दाँतों वाले मांसाहारी पशुओं को अगर मांस-हड्डियाँ परोस दी जाएँ, तो मांसाहारी भोजन के सम्मोहन में उनके खाने की गति व चाव दोनों ही तीव्र हो जाते हैं। वैसे तो ये सिद्धांत केवल कुत्तों पर ही नहीं, वरन् मांसाहारी इंसानों पर भी लागू होता है। 

किसी मांसाहारी परिवार में कोई मांसाहारी मेहमान आएँ और उनके स्वागत में 'नॉन वेज' ना बने, ऐसा हो ही नहीं सकता। बशर्ते .. मानने वालों के लिए उस दिन कोई विशेष हिंदू वार या कोई एकारसी (एकादशी) -पूर्णिमा या फिर नवरात्रि जैसा दिन ना हो। फिर तो .. मेज़बान प्रायः मेहमान पर अपना प्रभाव जमाने के लिए 'ग्रेवी' वाले या 'फ्राई' 'चिकेन' के 'लेग पीस' के साथ-साथ पेटी (मछली के पेट के कटे हुए टुकड़े) वाली 'फ्राई फ़िश' परोसने में कोई कोताही नहीं बरतते हैं। वर्ना मांसाहारी मेजबान भी केवल शाकाहारी व्यंजनों-भोजन को खिलाए जाने पर अपनी तौहीन समझते हैं। 

ऐसे में मेजबान-घर के सदस्यों को भी, जो प्रतिदिन शाकाहारी भोजन मन मार के उदरग्रस्त करते हैं, उन्हें मेहमान के बहाने 'नॉन वेज' खाने का सुअवसर मिल जाता है। ठीक वैसे ही, जैसे .. किसी बच्चे को सेहत का हवाला देकर समोसा खाने से मना करने वाले अभिभावकों की भी विवशता हो जाती है, जब मेहमानों के आने पर उनके लिए बाज़ार से मंगवाए गए गर्मागर्म समोसे में से बच्चों को खाने से नहीं रोक पाते हैं और बच्चे उन सुअवसरों का आराम से आनन्द लेते हैं। और तो और .. ऐसे अवसरों पर ही मुहल्ले भर के लावारिस कुत्ते-कुत्तियों और बिल्लियों को भी चूसी-चबाई, बची-खुची, जूठी हड्डियों से उनके मुँह के स्वाद को "सोंधाने" का सुनहरा अवसर मिल जाता है।

अभी सोच रहा हूँ, कि प्रसंगवश समीर माथुर के साथ जुड़ी अतीत की दो घटनाओं (कहानियाँ नहीं) को दोहराउँ ? .. क्योंकि उन्हें यहाँ दोहराना .. कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। तो आगे .. पहली घटना बकते हैं .. परन्तु आज नहीं .. बल्कि .. "असाध्य दंतहीन दंश ... (२)" (अंतिम) में पुनः मिलते हैं .. बस यूँ ही ...


10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 20 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. जी ! .. सादर नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को अपने मंच की अपनी प्रस्तुति में शामिल करने के लिए ...

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  2. वाह! रोचक प्रस्तुतीकरण...

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  3. अति सुन्दर सार्थक मध्यम वर्ग की दशा का चित्रण करती रोचक रचना आदरणीय सादर

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  4. माँसाहार देने वाले का ही आहार बना डाला..
    रौचक सृजन ।

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