प्रायः टी. वी. पर कोई भी अपना प्रिय कार्यक्रम देखते समय बीच-बीच में अत्यधिक या कम भी विज्ञापन आने पर अनायास ही हमारी ऊँगलियाँ चैनल बदलने के लिए हरक़त में आ जाती हैं, जबकि उस देखे जा रहे प्रसारित कार्यक्रम को, उन्हीं बीच में आने वाले अनचाहे विज्ञापनों वाली कम्पनियों द्वारा प्रायोजित होने के कारण हम देख पाते हैं। खैर .. आज का विषय इन से इतर है।
ऐसे ही चैनलों को बदलते वक्त कभी-कभार हमारे सामने मूक-बधिरों के लिए दिखाए जा रहे समाचार से भी अनचाहे हमारा सामना हो जाता है। है ना ? उस वक्त समाचार वाचक/वाचिका की भावभंगिमाओं से अनायास दिमाग में दो बातें कौंधती हैं। एक तो उस युग या कालखंड का मानव जाति की, जब उनकी कोई भाषा या बोली नहीं रही होगी उनकी अभिव्यक्ति के लिए और दूसरी अपनी युवावस्था में, (वो भी तब .. जब मोबाइल और व्हाट्सएप्प नहीं हुआ करता था) अपने प्रेमी/प्रेमिका से छुप-छुपा कर इशारों में बात करने की या फिर सयुंक्त परिवार में किसी सगे (?) की बातें/शिकायतें करते वक्त उस के द्वारा सुन लेने के डर से आपस में इशारे में बात करते दो रिश्तेदारों की।
ऐसे ही चैनलों को बदलते वक्त कभी-कभार हमारे सामने मूक-बधिरों के लिए दिखाए जा रहे समाचार से भी अनचाहे हमारा सामना हो जाता है। है ना ? उस वक्त समाचार वाचक/वाचिका की भावभंगिमाओं से अनायास दिमाग में दो बातें कौंधती हैं। एक तो उस युग या कालखंड का मानव जाति की, जब उनकी कोई भाषा या बोली नहीं रही होगी उनकी अभिव्यक्ति के लिए और दूसरी अपनी युवावस्था में, (वो भी तब .. जब मोबाइल और व्हाट्सएप्प नहीं हुआ करता था) अपने प्रेमी/प्रेमिका से छुप-छुपा कर इशारों में बात करने की या फिर सयुंक्त परिवार में किसी सगे (?) की बातें/शिकायतें करते वक्त उस के द्वारा सुन लेने के डर से आपस में इशारे में बात करते दो रिश्तेदारों की।
मतलब .. भाषा, बोली और लिपि अगर ना हो तो हम फिर से आदिमानव या मूक-बधिरों के लिए प्रसारित होने वाले समाचार के वाचक/वाचिका बन जाएं .. शायद ...।
गूगल बाबा के मार्फ़त सर्वविदित है कि दुनिया में संयुक्त राष्ट्र के अनुसार कुल भाषाएँ 6809 हैं , जिनमें से नब्बे प्रतिशत भाषाओं को बोलने वालों की संख्या एक लाख से भी कम है। लगभग दो सौ से डेढ़ सौ भाषाएँ ऐसी हैं जिनको दस लाख से अधिक लोग बोलते हैं।
इनमें से सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा चीन की राजकीय भाषा मंडारिन है।
विश्व की बोलने वालों की संख्या के आधार पर मुख्य दस भाषाओं का क्रम निम्न प्रकार है - मंडारिन, अंग्रेजी, हिन्दी, स्पेनिश,रुसी,अरबी,बंगाली, पुर्तगीज,मलय-इंडोनेशियन,फ्रेंच।
विश्व में बोलने वालों की जनसंख्या के आधार पर तीसरे क्रम की भाषा हिन्दी, जो की भारत की राष्ट्रभाषा/राजभाषा भी है, की भारत में लगभग अट्ठारह उपभाषाएँ/बोलियाँ हैं। जिनमें अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हड़ौती,भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही आदि प्रमुख हैं।
तमिल भाषा को दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के तौर पर मान्यता मिली हुई है और यह द्रविड़ परिवार की सबसे प्राचीन भाषा है. करीब 5000 साल पहले भी इस भाषा की उपस्थिति थी.
प्रत्येक भाषा का विकास बोलियों से ही होता है। जब बोलियों के व्याकरण का मानकीकरण हो जाता है और उस बोली के बोलने या लिखने वाले इसका ठीक से अनुकरण करते हुए व्यवहार करते हैं तथा वह बोली भावाभ्यक्ति में इतनी सक्षम हो जाती है कि लिखित साहित्य का रूप धारण कर सके तो उसे भाषा का स्तर प्राप्त हो जाता है। किसी बोली का महत्व इस बात पर निर्भर करता है कि सामाजिक व्यवहार और शिक्षा व साहित्य में उसका क्या महत्व है।
लिपि या लेखन प्रणाली का अर्थ होता है, किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वो चीज़ होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिख सकते हैं।
इनमें से सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा चीन की राजकीय भाषा मंडारिन है।
विश्व की बोलने वालों की संख्या के आधार पर मुख्य दस भाषाओं का क्रम निम्न प्रकार है - मंडारिन, अंग्रेजी, हिन्दी, स्पेनिश,रुसी,अरबी,बंगाली, पुर्तगीज,मलय-इंडोनेशियन,फ्रेंच।
विश्व में बोलने वालों की जनसंख्या के आधार पर तीसरे क्रम की भाषा हिन्दी, जो की भारत की राष्ट्रभाषा/राजभाषा भी है, की भारत में लगभग अट्ठारह उपभाषाएँ/बोलियाँ हैं। जिनमें अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हड़ौती,भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही आदि प्रमुख हैं।
तमिल भाषा को दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के तौर पर मान्यता मिली हुई है और यह द्रविड़ परिवार की सबसे प्राचीन भाषा है. करीब 5000 साल पहले भी इस भाषा की उपस्थिति थी.
प्रत्येक भाषा का विकास बोलियों से ही होता है। जब बोलियों के व्याकरण का मानकीकरण हो जाता है और उस बोली के बोलने या लिखने वाले इसका ठीक से अनुकरण करते हुए व्यवहार करते हैं तथा वह बोली भावाभ्यक्ति में इतनी सक्षम हो जाती है कि लिखित साहित्य का रूप धारण कर सके तो उसे भाषा का स्तर प्राप्त हो जाता है। किसी बोली का महत्व इस बात पर निर्भर करता है कि सामाजिक व्यवहार और शिक्षा व साहित्य में उसका क्या महत्व है।
लिपि या लेखन प्रणाली का अर्थ होता है, किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वो चीज़ होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिख सकते हैं।
हमारे पुरखों ने अक़्सर कहा है कि ..
" कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी "।
वैसे कोस दूरी नापने का एक भारतीय माप (इकाई) है। अभी भी गाँव में बुजुर्ग लोग दूरी के लिये कोस का प्रयोग करते हुए मिल जाते हैं।
एक कोस बराबर दो मील और एक मील बराबर 1.60 किलोमीटर होता है। मतलब एक कोस बराबर लगभग 3.20 किलोमीटर होता है।
विश्व की अन्य भाषाएँ और अलग-अलग धर्मग्रंथें जहाँ एक तरफ इंसानों को अलग-अलग समूहों में बाँटती हैं ; वहीं दूसरी तरफ विज्ञान की भाषा या किताबें सम्पूर्ण विश्व के इंसानों को एक भाषा के सूत्र में जोड़ती है। मसलन - पानी या जल के लिए विज्ञान की भाषा में पूरे विश्व के लिए एक ही नाम है - H2O. चाँदी के लिए - Ag, सोना के लिए - Au, वग़ैरह-वग़ैरह। मतलब विश्व के किसी भी हिस्से या सम्प्रदाय का वैज्ञानिक होगा, वह पानी को H2O ही कहेगा। इस विज्ञान की भाषा के लिए कोसों दूरी का भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। फिर न्यूटन के गति के नियमों या पाइथागोरस के प्रमेय को विज्ञान का विश्व एक-सा मानता है। विज्ञान या गणित का विषय हर बार, हर पल जोड़ने का काम करता है।
कभी-कभी आसपास देख कर बहुत ही दुःख होता है, जब कोई भी बुद्धिजीवी अपने जन्मस्थल की भाषा को लेकर अपनी गर्दन अकड़ाता है और उसे विश्व में अव्वल साबित करने की कोशिश करता है। एक बार एक कवि सम्मेलन में देखने और सुनने के लिए मिला भी कि मंच से एक महोदय अपनी गर्दन अकड़ाते हुए भोजपुरी (उप)भाषा को विश्व की सर्वोत्तम और सब से ज्यादा बोली जाने वाली भाषा तक कह गए। कमाल की बात कि हॉल में बैठे सभी बुद्धिजीवी लोगों का समूह उसे सुनता रहा। किसी ने इस बात का तार्किक विरोध नहीं किया, सिवाय मेरे। साथ ही ऐसे लोग अन्य भाषा, खासकर अंग्रेजी को और वह भी साल में एक बार हिन्दी पखवाड़े के दौरान, अपना दुश्मन मानते हैं। मानो भाषा ही अंग्रेजों जैसी भारत की दुश्मन हो। जबकि अंग्रेजों के दिए कई परिधान, कई तौर-तरीके और कई राष्ट्रीय इमारतें स्वीकार्य हैं इन्हें। आज भी हमारे स्वतन्त्र भारत में जज, वक़ील, रेल कर्मचारी, पुलिसकर्मी इत्यादि अंग्रेजों के तय किए गए लिबासों में ही दिखते हैं।
" कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी "।
वैसे कोस दूरी नापने का एक भारतीय माप (इकाई) है। अभी भी गाँव में बुजुर्ग लोग दूरी के लिये कोस का प्रयोग करते हुए मिल जाते हैं।
एक कोस बराबर दो मील और एक मील बराबर 1.60 किलोमीटर होता है। मतलब एक कोस बराबर लगभग 3.20 किलोमीटर होता है।
विश्व की अन्य भाषाएँ और अलग-अलग धर्मग्रंथें जहाँ एक तरफ इंसानों को अलग-अलग समूहों में बाँटती हैं ; वहीं दूसरी तरफ विज्ञान की भाषा या किताबें सम्पूर्ण विश्व के इंसानों को एक भाषा के सूत्र में जोड़ती है। मसलन - पानी या जल के लिए विज्ञान की भाषा में पूरे विश्व के लिए एक ही नाम है - H2O. चाँदी के लिए - Ag, सोना के लिए - Au, वग़ैरह-वग़ैरह। मतलब विश्व के किसी भी हिस्से या सम्प्रदाय का वैज्ञानिक होगा, वह पानी को H2O ही कहेगा। इस विज्ञान की भाषा के लिए कोसों दूरी का भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। फिर न्यूटन के गति के नियमों या पाइथागोरस के प्रमेय को विज्ञान का विश्व एक-सा मानता है। विज्ञान या गणित का विषय हर बार, हर पल जोड़ने का काम करता है।
कभी-कभी आसपास देख कर बहुत ही दुःख होता है, जब कोई भी बुद्धिजीवी अपने जन्मस्थल की भाषा को लेकर अपनी गर्दन अकड़ाता है और उसे विश्व में अव्वल साबित करने की कोशिश करता है। एक बार एक कवि सम्मेलन में देखने और सुनने के लिए मिला भी कि मंच से एक महोदय अपनी गर्दन अकड़ाते हुए भोजपुरी (उप)भाषा को विश्व की सर्वोत्तम और सब से ज्यादा बोली जाने वाली भाषा तक कह गए। कमाल की बात कि हॉल में बैठे सभी बुद्धिजीवी लोगों का समूह उसे सुनता रहा। किसी ने इस बात का तार्किक विरोध नहीं किया, सिवाय मेरे। साथ ही ऐसे लोग अन्य भाषा, खासकर अंग्रेजी को और वह भी साल में एक बार हिन्दी पखवाड़े के दौरान, अपना दुश्मन मानते हैं। मानो भाषा ही अंग्रेजों जैसी भारत की दुश्मन हो। जबकि अंग्रेजों के दिए कई परिधान, कई तौर-तरीके और कई राष्ट्रीय इमारतें स्वीकार्य हैं इन्हें। आज भी हमारे स्वतन्त्र भारत में जज, वक़ील, रेल कर्मचारी, पुलिसकर्मी इत्यादि अंग्रेजों के तय किए गए लिबासों में ही दिखते हैं।
अब ये तो स्वाभाविक है कि हमारी स्थानीय भाषा हमको अच्छी लग सकती है, लगनी भी चाहिए। अपनी माँ की तरह प्यारी और पूजनीय भी लग सकती है। पर हम उनके विश्वसुंदरी होने की घोषणा नहीं ही कर सकते ना ? और हाँ ... पड़ोस की अन्य भाषा को माँ नहीं तो कम से कम अपनी चाची, मौसी या बुआ की तरह तो मान दे सकते हैं ना ? या नहीं ? उस से तो हम और समृद्ध ही होंगे, ना कि विपन्न ..शायद..।
आज हम फिलहाल बिहार की पाँच आंचलिक भाषाओं - अंगिका, बज्जिका, भोजपुरी, मगही और मैथिली में से बिहार की राजधानी- पटना जिला , उसके आसपास के क्षेत्रों और बुद्ध के ज्ञान-प्राप्ति वाला पावन स्थल- बोधगया वाले गया जिला की मूल उपभाषा - मगही उपभाषा की विशेषता के लिए बिना अपनी गर्दन अकड़ाए एक रचना/ विचार और उसके वाचन का विडिओ लेकर आएं हैं।
आज हम फिलहाल बिहार की पाँच आंचलिक भाषाओं - अंगिका, बज्जिका, भोजपुरी, मगही और मैथिली में से बिहार की राजधानी- पटना जिला , उसके आसपास के क्षेत्रों और बुद्ध के ज्ञान-प्राप्ति वाला पावन स्थल- बोधगया वाले गया जिला की मूल उपभाषा - मगही उपभाषा की विशेषता के लिए बिना अपनी गर्दन अकड़ाए एक रचना/ विचार और उसके वाचन का विडिओ लेकर आएं हैं।
दरअसल ब्लॉग के कई मंचों द्वारा साप्ताहिक रूप से दिए गए किसी विषय/शब्द या चित्र पर चिट्ठाकारों द्वारा रची गई रचनाओं की तरह ही यह भी पटना के एक ओपन मिक वाले मंच पेन ऑफ़ पटना (Pen of Patna = POP) द्वारा 2018 में दिए गए एक विषय/वाक्य - " मेरी भाषा ही मेरी पहचान है " के लिए इसा लिखा था। POP के द्वारा ही इसके वाचन का वीडियो भी बनाया गया था। वीडियो बनने का :-
स्थान :- पटना के गंगा किनारे का दीघा घाट पर .. दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल के पास, जिसे लोकनायक जय प्रकाश नारायण सेतु के नाम।से बुलाते हैं।
दिनांक :- 10.06.2018, लगभग दो साल पहले।
समय :- सुबह लगभग छः बजे से आठ बजे के बीच।
दिनांक :- 10.06.2018, लगभग दो साल पहले।
समय :- सुबह लगभग छः बजे से आठ बजे के बीच।
POP द्वारा इस वीडियो का यूट्यूब पर प्रसारण 23.10.2018 को किया गया था। इस दिन बिहार में मगही-दिवस मनाया जाता है। मगही का पहला महाकाव्य - गौतम - महाकवि योगेश द्वारा 1960-62 में रचे जाने के बाद से ही उनके जन्मदिन के दिन यह मनाया जाता है।
पहले मगही भाषा में रचना की प्रस्तुति कर रहे हैं और कुछ भी पल्ले ना पड़े तो आपकी सुविधा के लिए उसका हिन्दी अनुवाद भी इसके नीचे लिख रहा हूँ। उम्मीद है .. आप सभी डोमकच, ठेकुआ, छठ, द्वार-पूजा जैसे शब्दों से भली-भाँति परिचित होंगे। इसी उम्मीद के साथ आपके लिए मगही उपभाषा यानि बोली और हिन्दी भाषा, दोनों ही में रचना/विचार प्रस्तुत है। साथ ही पारम्परिक परिधान में इसके वाचन का वीडियो भी है। तो ...पढ़िए भी .. साथ ही ..सुनिए और देखिए भी ... (मेरी आवाज़ अगर थोड़ी कमजोर लगे तो शायद इअरफ़ोन लगाना पड़ सकता है वैसे।) ...
मागधी के गंगोत्री
( मगही भाषा में ).
हई मगही हम्मर भाषा
हम्मर भाषा ही हम्मर पहचान हई
मागधी के गंगोत्री से निकलल
समय-धार पर बह चललई कलकल
समय बितलई , मगही कहलैलई
जन-जन के भाषा बन गैलई
हई मगही हम्मर भाषा
हम्मर भाषा ही हम्मर पहचान हई।
जहाँ बुद्ध छोड़ अप्पन राज-पाट,
कनिया आ बुतरू के अलथिन
मागधी में ही जन-जन के उपदेश हल देलथिन
मागधिए में ही महावीरो अप्पन संदेश हल कहलथिन
वही मागधी से बनलई मगही
जे हई आज हमनीसभे के भाषा
हम्मर भाषा ही हम्मर पहचान हई।
आज मैथिली आ भोजपुरी सहोदर बहिन हई जेक्कर
लिपि देवनागरी के सिंगार-पटार हई ओक्कर
मुगलो अएलई, अएलइ हल इंग्लिस्तान
तइयो ना मरलई मगही भाषा हम्मर
अंग्रेजी मुँहझौंसा चाहे जेतनो बढ़ैतई झुट्ठो- मुट्ठो के शान ई
हम्मर भाषा ही हम्मर पहचान हई।
मौगिन सभे गाबअ हत्थिन मगहीए में
चाहे सादी-बिआह के दुआर-पुजाई होवे
चाहे डोमकच के गीत, आ चाहे ठेकुआ गढ़े बखत
छट्ठी मईया के पावन गीत, बजअ हई संघे ढोलक के संगीत।
दुःख, विपत्ति के बखत होए, चाहे खुसी के बतिया
मुँहवा से अकबका के निकल पड़अ हई
मींड़ लगल मगहीए में - " अगे ~~ मईया ~~ ... " *
काहे से कि हई मगही हम्मर भाषा
हम्मर भाषा ही हम्मर पहचान हई।
नएकन शहरू लइकन-लइकियन
ना जाने काहे ई बोले में सरमाबअ हथिन
माए-बाबु चाहे रहथिन जईसन
माए-बाबु तअ ओही रहथुन
अप्पन माए-बाबु जईसन हई मगही हम्मर भाषा
हम्मर भाषा ही हम्मर पहचान हई।
★~~~~~~~~~~~~~~~◆■◆~~~~~~~~~~~~~~★
मागधी की गंगोत्री
( हिन्दी भाषा में अनुवाद ).
है मगही हमारी भाषा
हमारी भाषा ही हमारी पहचान है
मागधी की गंगोत्री से निकली
समय-धार पर बह चली कलकल
कालान्तर में वही मगही कहलायी
जन-जन की भाषा बन गई
है मगही हमारी भाषा
हमारी भाषा ही हमारी पहचान है।
बुद्ध जहाँ अपना राज-पाट आए थे छोड़ कर
अपनी पत्नी और अपने बेटे को भी छोड़ कर
दिए थे उपदेश बौद्ध-धर्म का जन-जन को मागधी भाषा में ही
महावीर के जैन-धर्म के सन्देश की भाषा भी थी मागधी
उसी मागधी से बनी भाषा मगही
जो है आज हम सभी की भाषा
हमारी भाषा ही हमारी पहचान है।
आज मैथिली और भोजपुरी हैं सगी बहनें जिसकी
श्रृंगार है जिसकी लिपि देवनागरी
यहाँ मुग़ल भी आए, आए थे अंग्रेज भी
तब भी मिटी नहीं मगही भाषा हमारी
चाहे जितनी बढ़ाए अंग्रेजी हमारी झूठी शान
हमारी भाषा ही हमारी पहचान है।
औरतें सारी यहाँ की मगही में ही गाती हैं लोकगीत
चाहे शादी-विवाह की द्वार-पूजा की रस्म हो या डोमकच के गीत
या फिर छठ पूजा में ठेकुआ बनाते समय छठी मईया के गीत
साथ बजा-बजा कर ढोलक के संगीत
दुःख की घड़ी हो या ख़ुशी के लम्हें
अनायास मुँह से निकल पड़ती है आवाज़
मींड़ लगी मगही में ही - " अगे ~~ मईया ~~.. " *
क्यों कि है मगही हमारी भाषा
हमारी भाषा ही हमारी पहचान है।
ना जाने क्यों शहरी युवा लड़के-लड़की
शरमाते हैं बोलने में अपनी भाषा मगही
माँ-पिता जी जिस हाल में हों, हों वे जैसे भी,
बदले जा सकते नहीं, वे तो किसी के भी रहेंगे वही
हमारे अभिभावक जैसा ही है मगही हमारी भाषा
हमारी भाषा ही हमारी पहचान है।
★~~~~~~~~~~~~~~~◆■◆~~~~~~~~~~~~~~★
{ * :- अगे मईया = ओ माँ ! = ऊई माँ ! }.
{ विशेष :- दरअसल मगही एक बोली या उपभाषा है, परन्तु में रचना में इसे बार-बार भाषा कहा गया है। इस भूल को नजरअंदाज कर के ही आप सभी पढ़िए या विडियों को सुनिए या देखिए। }.
फिर मिलेंगे .. इसी उम्मीद के साथ ...☺
भाषा की विस्तृत व्याख्या, सूक्षम विश्लेषण, ज्ञानवर्धक,
ReplyDeleteशोधपरक जानकारी के लिए बहुत बहुत आभार आपका।
भाषा किसी प्रांत की संस्कृति की आत्मा की भीनी सुगंध की तरह होती है किंतु क्षेत्रीय भाषाएं दूसरे प्रदेशों से संवाद कायम करने में सफल नहीं हो पाती तो यही माटी का सोंधापन तिक्त भी लगता है।
मगही में लिखी रचना की मिठास और संदेश में आपके विचारों की छवि स्पष्ट है।
जी ! आभार आपका समीक्षात्मक और विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए ...🙏
Deleteगहन शोधात्मक लेख! आभार!
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...🙏
Deleteनई जानकारी...
ReplyDeleteआभार..
सादर..
जी ! आभार आपका ...बस यूँ ही .. इधर-उधर से ...🙏
Deleteज्ञान वर्धक लेखन।
ReplyDeleteजी ! आभार आपका ...
Deleteमैंने पहली बार मगही की रचना पढ़ी है परंतु एक दो शब्दों को छोड़कर पूरी रचना आसानी से समझ आ गई। हिंदी की शिक्षिका हूँ,विभिन्न बोलियों व भाषाओं को जानने सीखने का कुतूहल सदैव रहा है। केवल दक्षिण की भाषाओं के आगे मेरा यह कुतूहल घुटने टेक देता है।
ReplyDeleteभाषासंबंधी आपका यह लेख निश्चित तौर पर उपयोगी एवं सराहनीय है।
जी ! आभार आपका इतनी गहराई से पढ़ने के लिए .. वैसे अगर आप शब्दों को इंगित करें तो मैं अर्थ बतला सकता हूँ .. शायद ...
Delete