प्रत्येक वृहष्पतिवार को यहाँ साझा होने वाली साप्ताहिक धारावाहिक बतकही- पुंश्चली .. (१) से पुंश्चली .. (१५) तक के बाद पुनः प्रस्तुत है, आपके समक्ष पुंश्चली .. (१६) .. (साप्ताहिक धारावाहिक) .. बस यूँ ही ... :-
गतांक का आख़िरी अनुच्छेद :-
उस वर्ष सिनेमा हॉल में आयी फ़िल्म- आशिक़ी-2 के गाने ने दोनों के कच्चे मन में जली प्रेम (?) की पक्की आग में लोहबान-गुग्गल की तरह सुगन्धित ज्वलनशील सामग्री की तरह काम किया था .. "सुन रहा है ना तू , रो रही हूँ मैं ~~~~" ... सिनेमाघर की कुर्सी पर बैठे किशोर-किशोरी का ना जाने कब सिनेमा के पर्दे पर दिख रहे नायक-नायिका के चरित्र में पदार्पण हो जाता है .. कमरे में बैठे-बैठे भी कई बार उस देखी गयी फ़िल्म के गाने की आवाज़ की तरंगों पर ही सवार होकर तथाकथित प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे की बाँहों में समा जाने का सुख पा जाते हैं .. और पास बैठे घर-परिवार वालों को इसका भान तक भी नहीं हो पाता है .. शायद ...
गतांक के आगे :-
यूँ तो किसी के भी यौवन काल की प्रेम कहानियाँ .. ना .. ना .. प्रेम घटनाएँ इतनी भी छोटी नहीं होती, जिसे तीन घन्टे से भी कम समय वाले फ़िल्मी पर्दे पर देखा जा सके या फिर चंद पन्नों के उपन्यास में पढ़ा जा सके। उस काल की प्रेम घटनाओं की लम्बाई और गहराई निर्भर करती हैं .. दोनों ही प्रेमी-प्रेमिका की सम्वेदनशीलता पर .. मन से मन के जुड़ाव पर। वैसे तो .. तन से तन का जुड़ाव तो एक मौसम विशेष में राह चलते कुत्ते-कुत्तियों के बीच .. कहीं भी .. कभी भी हो जाते हैं .. शायद ...
ओह ! ... प्रसंगवश अभी-अभी .. कुत्ते-कुत्तियों की चर्चा होने से .. याद आयी कि हमलोग मन्टू को "पुंश्चली .. (९)" के दौरान मुहल्ले भर में घुमने वाली गली की काली कुतिया- बसन्तिया के पास छोड़ कर आयें हैं, तो .. अभी मन्टू और रजनी यानी .. मन्टू की रज्ज़ो की और भी ढेर सारी प्रेम घटनाओं की चर्चा आगे फिर कभी .. फिलहाल चलते हैं रसिकवा की "रसिक चाय दुकान" के निकट वाले कूड़ेदानों के समीप .. जहाँ मन्टू और बसन्तिया की नोक-झोंक से चाँद और भूरा के साथ-साथ हम सब भी रूबरू हुए हैं।
दरअसल रंजन के कोरोना के गाल में समाने के बाद मन्टू निःसहाय हो चुकी अपनी अंजलि भाभी के प्रति स्वाभाविक सहानुभूतिवश जुड़ते-जुड़ते ना जाने कब अपने मन में एक कोमल भावनाओं को पनपा लिया .. इसका उसे तो भान तक भी नहीं हो पाया है। फिर तो अपने मन में एकतरफा प्रेम के वशीभूत होकर घर, स्कूल के अलावा दोनों की दूरी तय करने के दौरान भी कभी आमने-सामने, तो कभी छुप-छुपा कर उस पर अपनी पैनी और कोमल नज़रें भी रखने लगा है। अंजलि की सुरक्षा के ख़्याल से भी और अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए भी। इन्हीं सब बातों के अंतर्गत अब मन्टू की दिनचर्या में शामिल है, रोजाना सुबह-सुबह तीन वर्षीय अम्मू यानी अमन के साथ-साथ अंजलि के स्कूल जाते वक्त अपने घर के एक दिन पहले के पूरे दिन-रात वाले कूड़े-करकट से भरी थैली को उसके द्वारा सार्वजनिक कूड़ेदान में फेंकने तक छुप-छुपा कर पीछा करना और फ़ेंक देने के बाद उस थैली का 'पोस्टमार्टम' करना या काली कुतिया- बसन्तिया से करवाना।
आज भी अंजलि भाभी के कचरे वाली थैली का बसन्तिया 'पोस्टमार्टम' नहीं कर रही है, तो ... मन्टू ने गुस्से में आकर उस पर एक पत्थर के टुकड़े से वार कर दिया है। वास्तव में बसन्तिया को सुबह-सुबह तेज भूख लगी थी और कूड़ेदान में उसे किसी के घर से माँसाहारी व्यंजन की चूसी-चबायी हुई अवशेष रूप में फेंकी गयी जूठी बची-खुची हड्डियाँ मिल गयी है, तो उसके लिए तो मनपसंद जलपान ही मिल गया है। उसी वक्त अंजलि वाली कचरे से भरी थैली को रोज की तरह बसन्तिया से उसको पुचकार कर खुलवाने की मन्टू की कोशिश नाकाम हो गयी है।
इसके बाद फ़ौरन उसे बसन्तिया को मारने पर बहुत ही अफ़सोस भी हो रहा है, क्योंकि मन्टू, भूरा और चाँद ही नहीं रसिकवा, परबतिया, शनिचरी चाची के साथ-साथ बुद्धनवा व उसकी पत्नी रामरतिया भी .. बल्कि यूँ कहें कि पूरे मुहल्ले भर की चहेती है बसन्तिया। ख़ैर ! .. पुनः उसकी पीठ और माथे को सहलाते हुए मन्टू उसे पुचकार कर कचरे वाली थैली की ओर अपनी दायीं तर्जनी से संकेत करता है। रोज-रोज मन्टू के इस काम में मदद करते हुए बसन्तिया भी उसके इशारे बख़ूबी जान गयी है।
मन्टू और भूरा के सामने कभी चाँद ने ही अपनी 'टैक्सी' में चढ़े सवारियों की अजीबोग़रीब और रहस्यमयी बातों की चर्चा करते हुए बोला था, कि उस दिन दो जासूस साहब लोग आपस में अजीबोग़रीब बातें 'डिस्कस' कर रहे थे।
एक साहब - " विदेशों में तो बड़े-बड़े जासूस लोग किसी भी व्यक्ति विशेष की जासूसी करके उसकी जानकारी हासिल करने लिए कई-कई महीने तक उसके घर से मिले कचरों का अध्ययन-विश्लेषण करते हैं। "
दूसरे साहब - " विदेशों में ही नहीं .. अपने देश में भी ये वाली पद्धति अपनायी जाती है। "
उस दिन इस तरह की अचरज भरी बातें सुनकर भूरा बीच में ही टपक पड़ा था।
भूरा - " भला कचरे से भी जासूसी की जा सकती है ? तब तो हम भी एक जासूसी वाली कम्पनी खोल लेते हैं। "
चाँद - " 213 नम्बर वाली भाभी के घर 'केचप् फ़ैक्ट्री' खुलने वाली बात की जानकारी भी तो कचरे से तेरी की जाने वाली जासूसी का ही तो परिणाम है बे। "
इन्हीं बातों को सुनकर मन्टू को अंजलि के घर के कचरों से जासूसी करने वाली 'आईडिया' आयी थी। इसी से उसे अंजलि की कई अनबोले बातों की जानकारी होती रहती है। इंसान को जिसमें भी दिलचस्पी होती है, वह उसके बारे में जितना भी जान ले .. उसे कम ही महसूस होता है। अब मन्टू क्या-क्या जानता रहता है अंजलि के बारे में .. ये सब तो हमलोगों को भी जानना ही चाहिए .. शायद ...
【 आज बस .. इतना ही .. अब शेष बतकहियाँ .. आगामी वृहष्पतिवार को .. "पुंश्चली .. (१७) .. (साप्ताहिक धारावाहिक)" में ... 】