हे प्रिये ! ..
काश ! .. कभी ...
ले पाओ जो तुम दृष्टि मेरी
और कभी ले लें तुम्हारी हम।
मन्दिरों में फिर हमें शायद
दिख जाएँ तुम्हारे पूज्य भगवन
और दिखने लग जाए प्रिये तुम्हें
पूजा की थाली में निर्मम पुष्प हनन।
हे प्रिये ! ..
काश ! .. कभी ...
ले पाओ जो तुम दृष्टि मेरी
और कभी ले लें तुम्हारी हम।
श्रद्धा से पढ़ पाएँ शायद तब हम
दोहे-चालीसे, कर पाएँ भजन-कीर्तन
और तुम्हें दिख पाए कभी भी,
कहीं भी .. मुरली की तानों में ही वृंदावन।
हे प्रिये ! ..
काश ! .. कभी ...
ले पाओ जो तुम दृष्टि मेरी
और कभी ले लें तुम्हारी हम।
देख सकें हम अनायास विधाता
मंदिरों-धामों के गढ़े हुए पाषाणों में और
हो दिव्य दर्शन प्रिये तुम्हें देख हर कीट-खग,
पशु-पादप, नदी-सागर, अनगढ़ पर्वत, बाग़-वन।
हे प्रिये ! ..
काश ! .. कभी ..
ले पाओ जो तुम दृष्टि मेरी
और कभी ले लें तुम्हारी हम।
सिर झुका पाएँ हम, मूँदें अपनी आँखें,
ढाक की थाप संग हो जब रक्तरंजित मंदिर प्राँगण
और दिख जाएँ तुम्हें वीभत्स छटपटाहट,
साथ सुन पाओ निरीह पठरुओं के तुम करुण क्रंदन।
हे प्रिये ! ..
काश ! .. कभी ...
ले पाओ जो तुम दृष्टि मेरी
और कभी ले लें तुम्हारी हम।
जिह्वा मचले तब हमारी लार भरे मुँह में,
देख कर कोई भी माँसाहारी व्यंजन
और हो भान तुम्हें प्रिये .. वध किए
प्राणी के मृत अंगों पे तेल-मसालों का लेपन।
हे प्रिये ! ..
काश ! .. कभी ...
ले पाओ जो तुम दृष्टि मेरी
और कभी ले लें तुम्हारी हम।
दिख पाए हमें दाह-संस्कार से ही
सम्भव हमारे मृत तन का निष्पादन
और शव में भी प्रिये तुम्हें दिख जाएँ,
सूरों के लिए शेष बचे मेरे दो अनमोल नयन।
हे प्रिये ! ..
काश ! .. कभी ...
ले पाओ जो तुम दृष्टि मेरी
और कभी ले लें तुम्हारी हम।
लग जाएँ करने हम मानव-मानव में अंतर,
जाति-धर्म, भाषा-भूषा, वर्ण-वर्ग के मापदण्ड पर
और हो जाए प्रिये प्रतीत तुम्हें सारे मानव समान,
सबकी एक ही धरती, एक ही सूरज-चाँद के आलंबन,
समान प्राणवायु में श्वसन, एक जीवन-स्रोत हृदय स्पंदन।
हे प्रिये ! ..
ReplyDeleteकाश ! .. कभी ... :)
:) :) सुन्दर
जी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 15 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
Deleteलाजबाब👌👌
ReplyDeleteजी ! .. नमन संग आभार आपका ...
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