पोखरों में सूने-से दोनों कोटरों के,
विरहिणी-सी दो नैनों की मछली।
मिले शुष्क पोखरों में तो चैन उसे,
तैरे खारे पानी में तब तड़पे पगली।
ताने तिरपाल अपने अकड़े तन के,
यादों में पी की बातें बीती पिछली।
कैनवास पर खुरदुरे-रूखे गालों के,
खींचे अक़्सर अँसुवन की अवली।
बाँधे गठरी हर पल पल्लू में अपने,
भर-भर कर बूँदें आँसू की बावली।
डालें गलबहियाँ पल्लू उँगलियों में,
मची हो मन में जब-तब खलबली।
काश ! बुझ पाती चिता संग पी के,
सुलगन मीठी बेवा के तन-मन की।
ना संदेशे, लगे अंदेशे, कई पीड़ाएँ,
झेलती विरहिणी बेवा-सी बेकली।
ReplyDeleteव्यथित हृदय की विकल अभिव्यक्ति।
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
सादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी ! नमन संग आभार आपका ...
Deleteगज्जब
ReplyDeleteजी ! नमन संग आभार आपका ...
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